इस ‘भगीरथ’ ने धरती पर उतार दी ‘गंगा’

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देहरादून सूखी रहने वाली पौड़ी जिले के उफरैंखाल से लगी गाडखर्क की जिस पहाड़ी पर कभी बारिश की बूंद नहीं रुक पाती थी वहां आज जलस्रोत रिचार्ज होने से बरसाती नदी जी उठी। पहाड़ी को यह ‘वरदान’ आधुनिक भगीरथ सच्चिदानंद भारती के अथक प्रयासों ने दिया।

जहां बारिश की बूंद तक नहीं ठहरती थी वहां जी उठी है बरसाती नदी

चिपको’ आंदोलन की धरती उत्तराखंड में पिछली सदी के आखिरी दशक में जंगल पनपाने के साथ ही बारिश की बूंदों को सहेजने की ऐसी धारा फूटी, जिसने न सिर्फ सिस्टम को आईना दिखाया, बल्कि जनमानस के लिए प्रेरणा बन गई। सूखी रहने वाली पौड़ी जिले के उफरैंखाल से लगी गाडखर्क की जिस पहाड़ी पर कभी बारिश की बूंद तक नहीं ठहरती थी, आज वहां न सिर्फ हरा-भरा जंगल है, बल्कि जलस्रोत रिचार्ज होने से बरसाती नदी भी जी उठी।

2010 से लोग इस गंगा का पानी पी रहे हैं

इसे नाम दिया गया है ‘गाडगंगा’। 2010 से लोग इस गंगा का पानी पी रहे हैं। भीषण गर्मी में भी इसमें तीन एलपीएम (लीटर प्रति मिनट) पानी रहता है। बदलाव की बयार यूं ही नहीं बही, गाडखर्क की पहाड़ी को यह ‘वरदान’ आधुनिक भगीरथ के रूप में आए सच्चिदानंद भारती के अथक प्रयासों ने दिया। पौड़ी जिले में एक छोटा सा गंवई कस्बा है उफरैंखाल। इसी से लगी है गाडखर्क की पहाड़ी, जो सच्चिदानंद भारती के प्रयासों की गवाही दे रही है। एक दौर में चिपको आंदोलन से जुड़े रहे सच्चिदानंद भारती बताते हैं कि वर्ष 1979 में जब वह अपने गांव गाडखर्क (उफरैंखाल) लौटे तो दूधातोली वन क्षेत्र में भी पेड़ों का कटान हो रहा था। इसे देखते हुए शुरू हुई पेड़ों को बचाने की मुहिम।

1990 में इस गंगा को खोदने का कार्य शुरू किया गया

1987 में पड़े भयावह सूखे का व्यापक असर इस क्षेत्र पर भी पड़ा। फिर शुरू की गई बारिश की बूंदों को सहेज पेड़ बचाने की मुहिम। आंदोलन को नाम दिया गया ‘पाणी राखो’। महिला मंगल दलों समेत ग्रामीणों की मदद से उफरैंखाल से लगी एकदम सूखी गाडखर्क की पहाड़ी को इसके लिए चुना गया। 1990 में महिला मंगल दलों समेत ग्रामीणों की मदद से 40 हेक्टेयर में फैली इस पहाड़ी पर छोटे-छोटे तालाब खोदने का कार्य शुरू किया। इन्हें नाम दिया गया जलतलैंया। इसके साथ ही जल संरक्षण में सहायक बांज, बुरांस, पंय्या, अखरोट जैसे पेड़ों के पौधे लगाए गए। फिर तो यह सिलसिला लगातार चलता रहा।

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