नेपाल: ऐसे पहले PM जिनको विपक्षी पार्टी के सदस्यों का मिला समर्थन, ऐन मौके पर बदला पाला, क्या होगा भारत पर असर

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बीते मंगलवार को नेपाल की संसद कुछ ऐसा हुआ जिसे संसदीय लोकतंत्र में लंबे समय तक याद रखा जाएगा. दरअसल, नेपाल के पीएम पुष्पकमल दाहाल उर्फ प्रचंड ने प्रतिनिधि सभा में भारी बहुमत से विश्वास मत जीता. उनको नेपाली कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का भी अप्रत्याशित समर्थन मिला. एनसीपी, पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा की पार्टी है. 275 सदस्यों वाली नेपाल की प्रतिनिधि सभा में दाहाल को बहुमत साबित करने के लिए 138 सदस्यों का समर्थन चाहिए था, लेकिन 268 सांसदों ने उनका समर्थन किया. जबकि केवल दो सांसदों ने उनके विरोध में मतदान किया.

इसके साथ ही, नेपाल के इतिहास में दाहाल ऐसे पहले पीएम बनकर उभरे हैं जिनको 99% सदस्यों का समर्थन मिला है. बता दें 25 दिसंबर, 2022 को तीसरी बार पुष्पकमल दाहाल नेपाल के पीएम बने थे और उन्हें मंगलवार को बहुमत साबित करना था.

Nepal Politics PM Pushkamal Dahal

दाहाल ने बदला पाला तो बिगड़ गया खेल…

पुष्पकमल दाहाल ने नवंबर, 2022 में हुए आम चुनाव को नेपाली कांग्रेस के साथ लड़ा था. उस समय चुनाव में नेपाली कांग्रेस ने 89 सीटों पर विजय प्राप्त कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. वहीं, दाहाल की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के पास सिर्फ 32 सांसद हैं. इस दौरान दाहाल को केपी शर्मा ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का समर्थन मिला. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के पास 78 सीटें हैं. फिर भी ऐसा लग रहा था कि नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा ही पीएम बने रहेंगे. मगर, दाहाल ने ऐन मौके पर पाला बदल लिया. दरअसल, दाहाल की मांग की थी कि नेपाली कांग्रेस उनको पीएम बनाए, लेकिन उनकी इस मांग को खारिज कर दिया गया था.

Nepal Politics PM Pushkamal Dahal

इसी बीच केपी शर्मा ओली और पुष्पकमल दाहाल ने आपस में हाथ मिला लिया था, जिससे नेपाली कांग्रेस विपक्ष में हो गई थी. अब कयास लगाए जाने लगे थे कि नेपाली कांग्रेस संसद में पुरजोर कोशिश करेगी कि दाहाल को बहुमत हासिल न होने पाए. लेकिन, नेपाली कांग्रेस के 89 सदस्यों ने भी दाहाल के समर्थन में वोट कर दिया. जिससे पूरा खेल बिगड़ गया और नेपाल का लोकतंत्र विपक्ष विहीन हो गया.

Nepal Politics PM Pushkamal Dahal

वहीं, नेपाली कांग्रेस द्वारा दाहाल को समर्थन देने से ओली भी असहज हो गए हैं. संसद में इस तरह का माहौल बनता देख ओली ने नेपाली कांग्रेस पर तंज किया. उन्होंने कहा कि देउबा ने जिस उम्मीद से समर्थन किया, उसमें निराशा ही हाथ लगेगी. साथ ही, दाहाल को लेकर भी ओली ने शक जताया. ओली के मुताबिक, कहीं कुछ और तो खेल नहीं हो रहा है.

नेपाली कांग्रेस ने क्यों दिया समर्थन…

दाहाल को समर्थन देने पर नेपाली कांग्रेस के संयुक्त महासचिव महेंद्र यादव ने कहा कि पार्टी ने सर्वसम्मति से फैसला किया था कि विश्वासमत के समर्थन में वोट करेंगे, लेकिन सरकार में शामिल नहीं होंगे. अब ऐसा कहा जा रहा है कि दाहाल को समर्थन करने पर नेपाली कांग्रेस बुरी तरह से बंट गई है. बीते सोमवार को नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा से मिलने दाहाल उनके आवास पर गए थे और उन्होंने मंगलवार के विश्वासमत में समर्थन में वोट करने का आग्रह किया था. नेपाली कांग्रेस के समर्थन देने के बाद से नेपाल की सिविल सोसाइटी और आम जनता में इसका गलत इम्प्रेशन गया है. लोगों को लगता है कि सारी पार्टियां सत्ता के लिए कुछ भी कर सकती हैं.

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भारत पर क्या असर…

भारत नेपाल का पड़ोसी है. ऐसे में भारत से जुड़े कुछ विवाद भी है. काठमांडू पोस्ट की एक खबर के अनुसार, दाहाल के नेतृत्व वाली सत्ताधारी गठबंधन सरकार ने भारत से लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को वापस लेने का वादा किया है. सत्ताधारी गठबंधन का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम सोमवार को सार्वजनिक हुआ और इसी में यह वादा किया गया है. दाहाल सरकार नेपाल की संप्रभुता, एकता और स्वतंत्रता को लेकर प्रतिबद्ध है. हालांकि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में चीन से लगी सरहद पर चुप्पी है.

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मई, 2020 में उत्तराखंड में धारचुला से चीन की सीमा लिपुलेख तक एक सड़क का उद्घाटन किया था. नेपाल का दावा है कि सड़क उसके क्षेत्र से होकर गई है. अभी यह इलाका भारत के नियंत्रण में है. नवंबर, 2019 में भारत ने जम्मू-कश्मीर के विभाजन के बाद अपने राजनीतिक मानचित्र को अपडेट किया था, जिसमें लिपुलेख और कालापानी भी शामिल थे. नेपाल ने इसे लेकर कड़ी आपत्ति जताई थी और जवाब में अपना भी नया राजनीतिक मैप जारी किया. नये मैप में नेपाल ने लिपुलेख और कालापानी को नेपाल में दिखाया था. नेपाल के तत्कालीन रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो नेपाल की सेना लड़ने के लिए तैयार है.

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कालापानी में इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस की भी तैनाती है. पूरे विवाद पर भारत के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल मनोज नरवणे ने कहा था कि नेपाल सरहद पर चीन की शह में काल्पनिक दावा कर रहा है. नेपाल एक लैंडलॉक्ड देश है और वो भारत से अपनी निर्भरता कम करना चाहता है. वर्ष 2015 में भारत की तरफ से अघोषित नाकाबंदी की गई थी और इस वजह से नेपाल में जरूरी सामानों की भारी किल्लत हो गई थी.

 

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