न जेल- न फांसी… अपराधियों के लिए हैं ये सजाएं…

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कोलकाता के RG कर अस्पताल में एक लेडी डॉक्टर के साथ हुई बर्बरतापूर्ण घटना के बाद पूरे देश आक्रोश है. इसी बीच महाराष्ट्र के बदलापुर में 4 वर्षीय दो बच्चियों की साथ हर यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया है. इस मामलों के बाद दोषियों को दरिंदा बताकर फांसी के मांग की जा रही है. ऐसे में ये जानना भी महत्वपूर्ण है कि पौराणिक आधार पर इस अपराध को कितना बड़ा पाप माना गया है और इसके लिए किस तरह के दंड का विधान था.

समाज में दुष्कर्म की जगह नहीं…

बता दें कि किसी भी सभ्य समाज में दुष्कर्म जैसे कार्य बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किए जा सकते. संस्कृति और संस्कार के देश भारत में दुष्कर्म और यौनाचार भयानक पापकर्म माने गए हैं. इनका किसी तरह का प्रायश्चित भी नहीं रखा गया है. कई पुराणों में तो भीषण दंड भोगने के बावजूद इस पाप से कभी भी मुक्ति न मिलती है. गरुड़ पुराण, नारद पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण सभी में दुष्कर्म को हत्या व अन्य पापों से भी भीषण नीच कर्म के तौर पर परिभाषित किया गया है.

गरुण पुराण में दुष्कर्म की सजा..

बता दें कि आज के दौरे में रेप के मामले सामान्य होते जा रहे हैं. बात करें गरुण पुराण की तो इसमें बलात्कार को घोर पाप माना गया है. इस पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति किसी के साथ दुष्कर्म करता है, उसे मृत्यु के बाद नरक में कठोर और अत्यंत कष्टदायक दंड भुगतने पड़ते हैं. इस पुराण में इन पापों के लिए यातनाएं दी गयी है. ऐसे पाप करने वालों को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आत्मिक पीड़ा का भी सामना करना पड़ता है.

गरुड़ पुराण: जानिए मरने के बाद मनुष्य को किस पाप के लिए मिलती है कौन-सी सजा?

गरुड़ पुराण में रूह कंपाने वाली सजा बताई गयी है. ये सजा पापी को धरती पर जीते जी तो मिलती ही हैं, साथ ही नरक में भी मिलती है…

ताम्रायसि स्त्रीरूपेण संसक्तो यस्य पापवान्।
नरके पच्यते घोरे यावच्चन्द्रदिवाकरौ॥

गरुण पुराण के इस श्लोक में कहा गया है कि यदि कोई पाप करता है तो उसे दुष्कर्म का दंड ऐसा है कि मृत्युदंड भी छोटा पड़ जाए. इसमें दुष्कर्म का दंड बहुत भीषण है. उसे ताम्र की स्त्री प्रतिमा से आलिंगन कराया जाए और वह अपने प्राण त्याग दे. उसकी आत्मा तब तक नर्क सहे जब तक सूर्य और चन्द्रमा रहे.

महाभारत में भी यौन संबंध की सजा…

महाभारत में भी यौन संबंध पर कठोर सजा का प्रावधान है. साथ ही इसमें कठोर दंड भी बताया गया है. इस महाकाव्य में धार्मिक और सामाजिक नियमों का पालन करने के महत्व को बार-बार बताया गया है और दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति को समाज में कोई जगह न मिलने की बात कही गई है.

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न चावमन्येत कदाचिदर्थान् धर्मार्थान् कामान् न हरेन मूढः।
धर्मेण यस्यैव सपत्नमिच्छेद्व्यभिचारिणं तं निहन्याच्च राज्ञः॥ (महाभारत, शांति पर्व)

महाभारत में कहा गया है कि राजा का कर्तव्य है कि वह व्यभिचारियों को दंडित करे, ताकि समाज में नैतिकता और धार्मिकता बनी रहे. ऐसे अपराधों के लिए न केवल सांसारिक दंड. बल्कि आत्मिक दंड और अधोलोक में भी कठोर यातना मिलने का जिक्र किया गया है.

शिवपुराण में दुष्कर्म और व्यभिचार का दंड…

यो हि धर्मं परित्यज्य भजते व्यभिचारिणीम्।
स नरः पतितो लोके नरके च विना किल्बिषम्॥

 

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तप्त लोहे की प्रतिमा का आलिंगन: व्यभिचार के पापी को तप्त (गर्म) लोहे की स्त्री या पुरुष प्रतिमा से आलिंगन करना पड़ता है. यह बहुत ही कष्टकारी दंड है. पापी को ऐसी पीड़ा सहनी पड़ती है कि माना जाता है कि जो जलन उसने पीड़िता को दी है, वह भी उसका अनुभव करे.

तप्त तेल के कड़ाह में डालना: गरुड़ पुराण के अनुसार, व्यभिचारी व्यक्ति को मृत्यु के बाद नरक में ले जाया जाता है और उसे तप्त तेल के कड़ाहे में डाला जाता है. इस तेल में उसे लगातार जलाया जाता है, जिससे उसकी आत्मा को अत्यधिक पीड़ा होती है.

लोहे की गर्म शैया पर लिटाना: व्यभिचार करने वाले को नरक में लोहे की तप्त शैया (बिस्तर) पर लिटाया जाता है. यह शैया इतनी गर्म होती है कि व्यक्ति की आत्मा को असहनीय जलन और पीड़ा का अनुभव होता है.

कांटेदार वन में दौड़ाना: पापी को कांटेदार वन से गुजरना पड़ता है, जहां उसके शरीर को कांटे चुभते हैं और उसे कष्ट पहुंचाते हैं.

तप्त धातु का पान: गरुड़ पुराण में कहा गया है कि व्यभिचार करने वाले को नरक में तप्त धातु (गर्म पिघली हुई धातु) का पान कराया जाता है, जिससे उसकी आत्मा असहनीय जलन और पीड़ा होती है.

नारद पुराण में दुष्कर्मी के लिए दंड…

 

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नरक में कठोर यातनाएं: दुष्कर्मी व्यक्ति को अत्यंत भयंकर नरक में भेजा जाता है, जहां उसे ऐसे कष्टों का सामना करना पड़ता है जो उसकी आत्मा को लंबे समय तक पीड़ा पहुंचाते है.

पुनर्जन्म में कठिन जीवन: नारद पुराण में यह भी उल्लेख है कि दुष्कर्म के पाप के कारण अगले जन्म में व्यक्ति को अत्यंत कठिन परिस्थितियों में जीवन जीना पड़ता है. उसे निम्न श्रेणी और योनि में जन्म मिलता है, और उसका जीवन दुःख और कष्ट से भरा होता है.

सामाजिक अपमान: इस पाप के कारण व्यक्ति को समाज में अपमान और तिरस्कार सहना पड़ता है. उसे समाज में अपने किए के लिए कभी क्षमा नहीं मिलती और वह हमेशा समाज के कोप का शिकार बना रहता है.

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