Navratri Specials: मां महागौरी भक्तों के दुखों को करेंगी परास्त…

जानें काशी के महागौरी मंदिर की मान्यता ...?

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Navratri Specials:  वैश्विक धार्मिक राजधानी के नाम से मशहूर काशी बाबा भोलेनाथ की नगरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर शिव के अनेकों रूप की उपासना की जाती है. अब जहां महादेव का वास हो और वहां माता पार्वती ना हो, ऐसा तो हो ही नहीं सकता. यही कारण है कि काशी में मां पार्वती के भी अनेक रूपों की पूजा व उपासना की जाती है. अब ये सभी मंदिर काशी में स्थित है तो जाहिर इन सभी मंदिरों की अपनी एक कहानी है, एक पौराणिक कथा है, एक मान्यता है और उनके महिमा का वर्णन करता इनका इतिहास है, जो भक्तों को मंदिरों की ओर से खींच ले जाता है.

मां महागौरी की पूजा का विशेष महत्व

मां महागौरी की पूजा- अर्चना करने से विवाह में आ रही समस्याएं दूर हो जाती है. मां की कृपा से मनपंसद जीवनसाथी मिलता है. मां महागौरी की अराधना करने से संकट दूर होते हैं पापों से मुक्ति मिलती है. व्यक्ति को सुख-समृद्धि के साथ सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है.

कैसे हुई मां महागौरी की उत्पत्ति

एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है. देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा.

मां महागौरी की पूजन विधि

महाअष्टमी के दिन साधक सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान करें और फिर एक लकड़ी की चौकी स्थापित करें और उसपर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके बाद माता की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें और मूर्ति पर सिंदूर और अक्षत अर्पित करें. इसके बाद घर में स्थापित कलश और अखंड ज्योति की पूजा करें. फिर माता की पूजा गंध, पुष्प, धूप, दीप इत्यादि से करें. माता महागौरी को मोगरा पुष्प अत्यंत प्रिय है और उन्हें लाल और गुलाबी रंग भी प्रिय है. इसलिए हो सके तो माता को मोगरे के फूलों से बनी माला अर्पित करें और पूजा के समय साधक लाल या गुलाबी रंग का वस्त्र धारण करें। इसके बाद माता महागौरी को नारियल का भोग अर्पित करें. फिर दुर्गासप्तशती और माता महागौरी की आरती का पाठ करें.

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काशी में महागौरी का विशेष महत्व

कहा जाता है कि भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए माता गौरी जब तपस्या कर रही थीं, तभी वो कृष्ण वर्ण हो गईं. कहा जाता है कि बाद में माता गौरी को भगवान भोले ने गंगाजल से गौर वर्ण कर दिया. इसी के बाद से मां पार्वती को महागौरी देवी का नाम मिला और वो काशी में ही विराजमान हो गईं. काशी में महागौरी को मां विशालाक्षी के नाम से भी जाना जाता है.

written by – Tanisha Srivastava

 

 

 

 

 

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