”नगा” खोपड़ी की ब्रिटेन में नीलामी, जानें क्या है इसकी वजह और इतिहास ?
ब्रिटेन से बीते बुधवार को काफी चौंका देने वाली खबर सामने आई. इसमें नगा जनजाति के एक इंसान की सींग वाले सर को नीलामी के लिए रखा गया था. इस खोपड़ी को ‘लाइव ऑनलाइन बिक्री’ के लिए रखा गया था. वहीं जब इस बात की जानकारी भारत को हुई तो इसका कड़ा विरोध शुरू हुआ और फिर नागालैंड के मुख्यमंत्री समेत नॉर्थ ईस्ट में चर्च लीडर्स और सिविल सोसाइटी के लोगों के साथ फोरम फॉर नगा ने भी भारत की तरफ से इसका सख्त विरोध किया. इसके बाद ब्रिटेन को इस नगा जनजाति के मानव के सींग बाले सिर की नीलामी आखिरकार रूकवानी पड़ी. ऐसे में आइए जानते हैं आखिर भारत नगा जनजाति के मानव की खोपड़ी ब्रिटेन पहुंची कैसे. इसका इतिहास क्या रहा होगा और क्या आज भी पाई जाती है नगा जनजाति ?
ब्रिटेन कैसे पहुंची नगा मानव की खोपड़ी ?
प्राप्त जानकारी में बताया गया है कि इंग्लैड के ऑक्सफोर्ड नामक स्थान पर स्थित पिट रिवर्स म्यूजियम में नगा जनजाति की करीब 6,500 वस्तुएं रखी गई हैं. इनमें नगा जनजाति के नर कंकाल को भी संग्रहित किया गया है. बताते है कि, ब्रिटीश साम्राज्यवाद के समय में यह सारी वस्तुएं इकट्ठा की गई थी, जो लगभग एक शताब्दी से संग्रहालय में रखी हुई है. नगा समुदाय के लोग सालों से लगातार अपने पूर्वजों के इन अवशेषों को प्राप्त करने के लिए लगातार मांग भी करते आए हैं.
कितने रूपए में हो रही नीलामी ?
ऑक्सफोर्ड ऑक्शन हाउस ने इस बार 20 से अधिक वस्तुओं को नीलामी के लिए रखा था, जिसमें मानव अवशेषों को भी शामिल किया गया था. नौ अक्तूबर को द क्यूरियस कलेक्टर सेल नामक एक नीलामी हुई, जिसमें विश्व भर से प्राचीन पुस्तकें, पांडुलिपियां, पेंटिंग और नगा खोपड़ी को शामिल किया गया था. विशेषज्ञों का कहना है कि, एंथ्रोपोलॉजी और जनजातीय संस्कृति में रुचि रखने वालों के लिए यह विशेष आकर्षण का केंद्र था. नीलामी में इस खोपड़ी का मूल्य लगभग करीब 2.30 लाख रुपये रखा गया था और नीलामी में इसकी कीमत 4.39 लाख पहुंच गयी थी. दूसरी ओर भारत के विरोध के चलते इस नीलामी को रूकवा दिया गया था.
नागालैंड सीएम ने जताया कड़ा विरोध
इसकी बिक्री को लेकर नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने विरोध जताया था और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से इस बिक्री को रोकने में हस्तक्षेप की मांग की थी. रियो ने अपने पत्र में लिखा, ब्रिटेन में हो रही नगा जनजाति की बिक्री को लेकर नागालैंड के सीएम नेफ्यू रियों ने विरोध जताया है. साथ ही इसको लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर को ब्रिक्री रोकने में हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए एक पत्र भी लिखा था. इसमें रियो ने लिखा था कि, ‘ब्रिटेन में नगा मानव खोपड़ी की नीलामी के प्रस्ताव की खबर ने सभी वर्ग के लोगों पर नकरात्मक असर डाला है क्योंकि हमारे लोगों के लिए यह बेहद भावनात्मक और पवित्र मामला है. दिवंगत लोगों के अवशेषों को सर्वोच्च सम्मान और आदर देने की हमारे लोगों की पारंपरिक प्रथा रही है.”
वहीं इस नीलामी को लेकर नीलामी घर के मालिक टॉम कीन ने कहा है कि, ”इसमें शामिल सभी लोगों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए नगा खोपड़ी की बिक्री को वापस लेकर अब इसे नहीं बेचा जा रहा है. हमने व्यक्त किए गए विचारों को सुना. भले ही बिक्री के साथ आगे बढ़ना कानूनी था, हमने लॉट वापस लेने का फैसला किया क्योंकि हम किसी को परेशान नहीं करना चाहते थे.” रियो ने फोरम फॉर नगा रिकॉन्सिलीएशन (NRC) द्वारा चिंता व्यक्त करने के बाद विदेश मंत्री से कहा कि, वे इसे लंदन में भारतीय उच्चायोग के समक्ष उठाएंगे ताकि खोपड़ी की नीलामी रोकी जा सके.
क्या पहले भी हुई मानव अवशेष की नीलामी ?
मानव अवशेषों की नीलामी एक ऐसा विषय है जो नैतिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से कई सवाल उठाता है. इतिहास में कई बार मानव अवशेषों को नीलाम किया गया है, जिसके कारण ये नीलामियां विवादों का केंद्र बन गई हैं. 19वीं और 20वीं सदी के दौरान औपनिवेशिक शक्तियों ने विभिन्न संस्कृतियों के मानव अवशेषों को एकत्रित किया. इस समय के दौरान, ममी, कंकाल, और अन्य मानव अवशेषों को संग्रहालयों में प्रदर्शित करने के लिए एकत्रित किया गया. वहीं कई संग्रहकर्ताओं ने इन अवशेषों को नीलामियों में खरीदा, जिससे मानव अवशेषों का व्यापार सामान्य हो गया.
दूसरी ओर हाल ही के वर्षों में कई ऐसी नीलामियां हुई है, जिसमें मानव अवशेषों की बोलियां लगाई गयी हैं. उदाहरण के लिए – साल 2015 में ब्रिटेन ने ही एक मानव कंकाल की ब्रिकी के लिए नीलामी में रखा था, जिसका काफी विरोध किया गया था. वहीं साल 2018 में कैलिफोर्निया में एक नीलामी में एक ममी का हिस्सा बेच गया था, जिसका भी काफी विरोध किया गया था. इन नीलामियों में मानव अवशेषों का सम्मानपूर्वक उपचार नहीं किया गया, जिससे संबंधित संस्कृतियों के लोगों में आक्रोश उत्पन्न हुआ. मानव अवशेषों की नीलामी को लेकर जागरूकता बढ़ने के साथ-साथ इस प्रथा के खिलाफ कई संगठनों और व्यक्तियों ने आवाज उठाई.
Also Read: राजनेता होने के बाद भी कैसे बना बाबा सिद्दीकी का बॉलीवुड कनेक्शन ?
जानें क्या आज भी पाई जाती है नगा जनजाति और कहां ?
हां, नगा जनजाति आज भी पाई जाती है. यह जनजाति भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्रमुख जनजातीय समुदाय है, जो मुख्यतः नॉर्थ – ईस्ट इंडिया के नागालैंड में पाई जाती है. इसके अलावा यह जनजाति म्यांमार के बर्मा के कुछ इलाकों में पाई जाती है. नगा जनजातियों की विविधता, उनकी संस्कृति, भाषा, और परंपराएं उन्हें एक अद्वितीय पहचान देती हैं. नगा जनजाति का मुख्य निवास स्थान नागालैंड है, जो भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित है. इसके अलावा, यह जनजाति म्यांमार के चिन राज्य के कुछ हिस्सों में भी फैली हुई है. नागालैंड की पहाड़ी इलाके जंगली वनस्पति और विविध जलवायु नगा लोगों की संस्कृति को आकार देती है.
नगा जनजातियों में 16 प्रमुख जनजातियां शामिल हैं, जिनमें एओ, आओ, चकछा, लोटा, लोंगपांग, और कई अन्य शामिल हैं.प्रत्येक जनजाति की अपनी विशिष्ट संस्कृति, परंपराएं और भाषाएं हैं. नगा लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा, अनुष्ठान, और उत्सवों के लिए प्रसिद्ध हैं. नगा जनजातियों की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है. धान, मक्का, और सब्जियां उनकी मुख्य फसलें हैं. इसके अलावा, पारंपरिक शिकार और मछली पकड़ना भी उनके जीवन का हिस्सा है. नगा समाज में कबीले की संरचना महत्वपूर्ण है. प्रत्येक जनजाति में एक प्रधान होता है जो सामुदायिक निर्णय लेने में मदद करता है. नगा समाज में महिला का स्थान महत्वपूर्ण है और वे कई मामलों में आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं.