कभी मंदिर की फर्श पर रातें गुजारने वाला, आज है 5 हजार करोड़ का मालिक

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कभी-कभी इंसान जिंदगी से इतना परेशान हो जाता है कि उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं देता है और दूसरों के  कहने पर खुद के भाग्य का फैसला कर देता है। लेकिन कभी-कभी  ये फैसले सही भी साबित हो जाते हैं। गरीबी एक ऐसा दर्द है जिसे सहन करना बहुत मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी ये गरीबी इसांन को इतना तोड़ देती है कि हम सारी दुनिया में खुद से ज्यादा परेशान किसी को नहीं समझते हैं। पेट की भूख मिटाने के लिए इंसान अपना परिवार, घर और वतन छोड़ने को मजबूर हो जाता है।

कुछ ऐसी ही कहानी है हमारे आज के इस नायक की जिसने गरीबी के चलते अपने परिवार को छोड़कर सात समंदर पार जाकर एक ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर हो गया जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते हैं। लेकिन मेहनत और किस्मत का जब मिलन होता है तो रास्ते में आने वाली सभी मुश्किलें भी आपकी राहों में फूल बरसाने लगती हैं।

गुजरात के रहने वाले हैं नरेंद्र

गुजरात के एक छोटे से शहर में पले-बढ़े नरेंद्र(Narendra) आज सफल उद्योगपतियों में शुमार रखते हैं। आज उनकी कंपनी 5 हजार करोड़ की सूची में शामिल है। लेकिन नरेंद्र(Narendra) की इस सफलता की कहानी से पहले उनकी दर्द भरी एक और दास्तां है जो उनके दर्द को बयां करती है। दरअसल, नरेंद्र एक बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुए थे। उनके परिवार को कभी-कभी दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी।

कई-कई दिन भूखा रहता था परिवार

अपने परिवार की भूख मिटाने के लिए नरेंद्र(Narendra) दिन रात मजदूरी करते थे, बावजूद इसके उनके परिवार को भूखा रहना पड़ता था। इस दर्द को वो देख नहीं पा रहे थे जिसकी वजह से उन्होंने देश छोड़कर केन्या का रुख कर लिया कि शायद अपने परिवार की तकदीर बदल सकें।

देश छोड़कर केन्या चले गए

लेकिन केन्या पहुंचकर उन्हें पता चला कि पैसा कमाना इतना आसान नही है। कई दिनों तक नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकते रहे लेकिन नौकरी नहीं मिली। जब सब तरफ से नरेंद्र(Narendra) हार चुके थे तो इनके एक मित्र ने सलाह दी कि वो मंदिर में पुजारी बन जाएं।

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मंदिर में बन गए पुजारी

मित्र की सलाह मानकर नरेंद्र केन्या के किसुमु स्थित स्वामीनारायण मंदिर में पुजारी बन गए और समय कटने लगा। दिनभर पूजा करते थे और रात को मंदिर की फर्श पर ही सो जाते थे। कई सालों तक यही सिलसिला चलता रहा। कुछ सालों बाद उनकी शादी हो गई डिसके बाद अब दो लोगों की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। शादी के बाद नरेंद्र ने एक हार्डवेयर की दुकान पर नौकरी कर ली। 8 साल तक नरेंद्र इसी दुकान पर नौकरी करते रहे। नौकरी करते हुए इन्होंने पैसों को बचाने पर ज्यादा जोर दिया।

लोन लेकर शुरू किया बिजनेस

1990 में इन्होंने गिकोंबा मार्केट में अपनी खुद की दुकान खोल ली और इसी में पूरी मेहनत के साथ लग गए। दो साल के बाद साल 1992 में नरेंद्र ने रिस्क लेकर 70 हजार डॉलर लोन लेकर स्टील की चादरें बनाने का काम शुरू किया। नरेंद्र का ये फैसला उनकी लाइफ का टर्निंग प्वाइंट था, यहीं से इनका कारोबार फलने-फूलने लगा।

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एक साल के अंदर ही बढ़ गया बिजनेस

एक साल के अंदर ही इन्होंने अपना प्लांट अथी नदी के किनारे लगा दिया। आज के समय में इनके देवकी ग्रुप के अंदर दो सीमेंट कंपनी और 4 स्टील प्लांट शामिल हैं। कंपनी की मार्केट वैल्यू इस समय करीब 5 हजार करोड़ के आसपास है। नरेंद्र के इस अभूतपूर्व सफलता और परोपकारी कदम के लिए केन्या सरकार ने उन्हें एल्डर ऑफ द बर्निंग स्पीयर के खिताब से नवाज चुकी है।

मरने के बाद संपत्ति से गरीबों के लिए दिया जाएगा 250 करोड़ हर साल

आप को बता दें कि नरेंद्र(Narendra) की परोपकारी भावना का इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके वसीयत में लिखा हुआ है कि उनके मरने के बाद उनकी सारी संपत्ति में से 250 करोड़ हर साल गरीबों और असहायों की मदद के लिए दिया जाए।

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