सांसद जी! आप लोग कैसे हार गए चुनाव…

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कभी अपने काम से तो कभी अपने बयान से सुर्खियों मे रहने वाले बीजेपी कुछ नेता इस बार अपनी खुद की जमीन भी नहीं बचा पाए. जी हाँ, लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ चुकें है. इस बार के नतीजों ने एनडीए के खेमे को छोड़कर अपनी उपस्थिति इंडिया गठबंधन में दर्ज कराई है. हालांकि एनडीए ने बहुमत के आकड़ें को पार जरूर किया है, लेकिन पिछले बार की तुलना में इस बार के नतीजे उतने अच्छे नहीं रहे है.

एनडीए को बहुमत लेकिन विपक्ष से मिली मज़बूत टक्कर

2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने एनडीए को बहुमत तो दिला दी लेकिन उसके साथ ही इस बार के चुनाव ने यह भी ज़ाहिर कर दिया की चुनावी टक्कर में इस बार विपक्ष ने भी बहुत मज़बूती से अपना नाम दर्ज कराया है. बीजेपी के कई स्टार प्रचारक का जादू इस बार के चुनाव में अधूरा रह गया. वहीं इंडिया ब्लॉक के गठबंधन ने बहुत मजबूती से इस चुनाव में अपनी पारी खेली है. बात करें आंकड़ो की तो एनडीए को इस बार के चुनाव मे 290 सीट मिली है. वहीं इंडिया ब्लॉक के खेमे में 235 सीट गई और अन्य को 18 सीटें मिली है.

सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर लेकिन हार गए चुनाव

उत्तरप्रदेश में 6 सांसद ऐसे थे जो मोदी सरकार के कैबिनेट में मिनिस्टर थे. वो इस बार अपनी सीट तक नहीं बचा पाए. आपको बता दें कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कैबिनेट में कुल 75 मिनिस्टर थे. मिनिस्टर की लिस्ट मे 28 कैबिनेट मिनिस्टर, 3 मिनिस्टर ऑफ स्टेट विद इंडिपेंडेंट चार्ज और 44 संसाद मिनिस्टर ऑफ स्टेट थे.

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यूपी के कुल 11 में से 6 मिनिस्टर नहीं जीत सके चुनाव

मोदी सरकार की 75 लोगों की कैबिनेट में 11 मिनिस्टर यूपी से आते थे जिसमें खुद प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल थे. हाल ये रहा कि 10 मिनिस्टर में से 6 मिनिस्टर अपनी संसदीय सीटों पर चुनाव हार गए. ऐसे में बीजेपी के आला-कमान पर भी सवाल खड़े होते हैं. नामचीन नेताओं की हार शायद अब बीजेपी को कमजोर करना शुरू कर दिया है.

हार गए यह सांसद 

1)स्मृति ईरानी-: मोदी सरकार की कैबिनेट मिनिस्टर रही स्मृति ईरानी भी अपनी सीट को नहीं बचा सकीं. आपको बता दें कि स्मृति ईरानी पिछली सरकार में भी कैबिनेट मिनिस्टर थी. 2014 के चुनाव में स्मृति ईरानी 1,00,903 वोट से हार गई थी. वहीं 2019 के चुनाव में उन्होंने, काँग्रेस का किला माने जानने वाले अमेठी सीट पर 55,120 वोट के अंतर से जीत हासिल की थी. उन्होंने तबके कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को शिकस्त दी थी. जिसके बाद उन्हें मोदी सरकार के कैबिनेट में जगह दी गई थी. उन्हें मिनिस्ट्री ऑफ वुमन एण्ड चाइल्ड डेवलपमेंट और मिनिस्ट्री ऑफ माईनोरिटी अफेयर का ज़िम्मा मिला.

किशोरी लाल शर्मा उर्फ केएल शर्मा-: कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली सीट से उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा ने बीजेपी से उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को 1,60,000 वोटों हराया है. आपको बता दें कि, के.एल शर्मा गांधी परिवार के काफी करीबी माने जाते है और वह  लंबे समय तक रायबरेली में सोनिया गांधी का प्रतिनिधित्व करते आए है. इसके साथ ही वह  पार्टी के मामलों और चुनाव अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे है. वह  अमेठी में साल 1983 से लेकर 1991 तक के राजनीति के बड़े खिलाड़ी रहे है. उन्होने 1999 में सोनिया गांधी के पहले चुनाव अभियान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके परिणाम स्वरूप उन्होने जीत भी हासिल की थी.

2) डॉ.महेंद्रनाथ पांडे-: बीजेपी से यूपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे महेंद्रनाथ पांडे ने इस बार के आम चुनाव में चंदौली सीट से अपनी हार को स्वीकार कर लिया. आपको बता दें कि चंदौली से 2014 के लोकसभा चुनाव में महेंद्रनाथ पांडे ने 1,56,756 वोट से जीत हासिल की थी. वहीं 2019 के चुनाव में यह अंतर मात्र 13,959 वोटों पर सिमट गया था. 2019 के मोदी सरकार के कार्यकाल में महेंद्रनाथ पांडे को मिनिस्ट्री ऑफ हेवी इंडस्ट्रीज़ का पोर्टफोलीओ मिला. हालांकि 2024 के चुनाव में दो बार से सांसद रहे महेंद्रनाथ पांडे 21,565 वोट से हार गए. उनको इस बार समाजवादी पार्टी के वीरेंद्र सिंह के हाथों हार मिली. आपको बता दें कि वीरेंद्र सिंह प्रदेश की भूतपूर्व सरकारो में बतौर मंत्री काम कर चुके हैं.

वीरेंद्र सिंह-: सपा के टिकट पर चंदौली सीट से उम्मीदवार वीरेंद्र सिंह ने भाजपा उम्मीदवार डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय को कुल 4,74,476 वोटों से मात दी. 1993 में वीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के टिकट पर चिरईगांव से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन वह  जीत नहीं पाए थे. इसके बाद 1996 में उन्होने फिर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता. इसके बाद में उन्हें राजनीतिक परिस्थितियों के कारण यूपी विधानसभा से बाहर कर दिया गया, जिसके बाद वह बसपा की सरकार में कैबिनेट मंत्री बन गए. कांग्रेस से अलग होने के बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, जिसमें असफल रहे. लेकिन बाद में पूर्व विधायक रामजीत राजभर की अचानक मृत्यु के कारण उन्होंने बसपा के टिकट पर उप-चुनाव जीता. वह  राज्य के कैबिनेट मंत्री बनने के बाद समाजवादी पार्टी में आए, लेकिन 2009 में फिर से कांग्रेस में चले गए. इसके बाद वह  फिर समाजवादी पार्टी में सक्रिय राजनीति लौटे और कैबिनेट मंत्री के रूप में कई मंत्रालयों का नेतृत्व किया.

3)साध्वी निरंजन ज्योति-: भाजपा के हिन्दू चेहरों में से एक साध्वी निरंजन ज्योति को भी इस बार के चुनाव में हार नसीब हुई है. ज्योति मोदी सरकार में राज्यमंत्री का कार्यभार संभाली हुई थी. इनके पास रुरल डेवलपमेंट, फूड एण्ड डिस्ट्रब्यूशन जैसे महत्वपूर्ण विभाग थे. बीजेपी की निरंजन ज्योति इस बार 33,199 वोट से अपने गढ़ फतेहपुर से हार गई है. बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव मे वह 1,87,206 वोट से जीतीं थी और 2019 के चुनाव में वोट का अंतर बढ़ाते हुए 1,98,205 वोटों से जीत हासिल की थी.

नरेश उत्तम पटेल-: सपा के टिकट पर फतेहपुर सीट से उम्मीदवार नरेश उत्तम पटेल ने भाजपा की उम्मीदवार निरंजन ज्योति 33,199 मतों से मत दी है. अपने राजनीतिक कैरियर में उत्तम ने पांच बार विधान सभा चुनाव लड़ा है. पहली बार 1985 उन्होंने जहानाबाद विधानसभा सीट से लोकदल के टिकट विधानसभा चुनाव लड़ा और हार गए. दूसरा 1989 में जनता दल से लड़ा और जीत कर विधायक बने. इसके बाद साल 1989 से 1991 तक नरेश उत्तम पटेल मुलायम सिंह यादव की पहली सरकार में मंत्री रहे. साथ ही तीन बार विधायक भी रहे. नरेश उत्तम पटेल जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट और पिछड़ा वर्ग आयोग दोनों में शामिल थे. उन्हें यूपी सपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, जब राज्य में समाजवादी पार्टी का नेतृत्व अखिलेश यादव ने किया था.

4)संजीव कुमार बाल्यान-: मुजफ्फरनगर से सांसद और केंद्र सरकार मे राज्य मंत्री रहे बाल्यान को भी इस बार के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. बाल्यान के पास डेयरी, फिशरी जैसे महत्वपूर्ण विभाग थे. यह मोदी 2.0 यानि 2019 के मोदी सरकार के कैबिनेट में राज्यमंत्री रहे है. समाजवादी पार्टी के हरेन्द्र सिंह मलिक ने इन्हें 24,672 वोटों से पराजित किया. अगर बात करें पुराने चुनाव की तो बाल्यान 2014 के चुनाव में 4,01,150 वोट से जीते थे वही 2019 के चुनाव में यह आंकड़ा घट कर 6,256 वोट पर सिमट गया था. हालांकि कम अंतर से चुनाव जीतने के बाद भी उन्हें राज्यमंत्री का पद मिल गया था.

हरेंद्र मलिक-: सपा के टिकट पर मुजफ्फनगर सीट से उम्मीदवार हरेंद्र मलिक ने भाजपा के उम्मीदवार संजीब कुमार बालियान को 470721 वोटों से मात दी है. हरेंद्र का राजनीतिक कैरियर साल 1985 में शुरू हुआ था, इसके बाद वह  लोकदल के टिकट पर मुजफ्फनगर के खतौली से विधानसभा चुनाव लड़े थे. जनता दल में शामिल होने के बाद 1989 में मुजफ्फरनगर के बघरा निर्वाचन क्षेत्र में चले गए, जहां से वह  सात वर्ष तक विधायक रहे. लोकसभा चुनाव से पहले हरेंद्र सिंह ने राज्यसभा के सदस्य के रूप में भारतीय संसद के ऊपरी सदन में काम किया था. साल 2002 में वह  राज्यसभा सदस्य चुने गए थे. जिसका कार्यकाल 10 अप्रैल 2002 से 9 अप्रैल 2008 तक रहा था.

5)कौशल किशोर-: मोहनलालगंज से सांसद रहे कौशल किशोर को भी इस बार हार झेलनी पड़ी. मोदी सरकार में राज्यमंत्री रहे कौशल किशोर के पास मिनिस्ट्री ऑफ हाउज़िंग एण्ड अर्बन अफेयर जैसे विभाग है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कौशल किशोर ने 1,45,416 वोटों से जीत हासिल की थी वहीं 2019 के चुनावी परिणाम में यह अंतर घटकर 90,229 वोट पर आ गया था. हालांकि जीत के साथ उन्हें मोदी कैबिनेट में राज्यमंत्री का ओहदा मिला.

आर.के चौधरी-: सपा के टिकट पर लखनऊ की मोहनलालगंज लोकसभा से उम्मीदवार आरके चौधरी ने भाजपा उम्मीदवार कौशल किशोर 70292 वोटो से मात देकर जीत हासिल की है. भाजपा के दिग्गज नेता को मात देने के तौर पर आरके चौधरी की इस जीत को काफी बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है. वही आपको बता दें कि, आर के चौधरी कांशीराम के करीबी हैं और बसपा के संस्थापक सदस्यों में से हैं. वह इससे पहले भी तीन बार मोहनलालगंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन हर बार हार गए हैं. 2019 में बसपा छोड़ दी थी. कांग्रेस में भी कुछ समय रहे, लेकिन बाद में उन्होंने सपा को अपनाया. उनको समाजवादी पार्टी ने मोहनलालगंज से टिकट दिया.

6)अजय कुमार मिश्र ‘टेनी’-: अजय मिश्र टेनी उत्तरप्रदेश की खेरी सीट से संसाद थे हालांकि इस बार का चुनाव उनके लिए अनुकूल साबित नहीं हुआ. अजय मिश्र के लड़के आशीष मिश्र पर आरोप था कि कृषि कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों को अपनी कार से कुचल दिया था. वाद-विवाद मे घिरें रहे टेनी को इस बार हार का सामना करना पड़ा है. 2014 के चुनाव में 1,10,274 वोट से जीतें अजय मिश्र टेनी का वोट अंतर 2019 के चुनाव में बढ़ा जब उन्हें 2,18,807 वोटों से जीत मिली. मोदी सरकार 2.0 के कैबिनेट में उन्हें गृह मंत्रालय में बतौर राज्यमंत्री का पद मिला.

उत्कर्ष वर्मा-: सपा के टिकट पर खीरी सीट से उम्मीदवार उत्कर्ष वर्मा ने भाजपा के उम्मीदवार अजय मिश्र टेनी को 35 हजार वोटों मत दी है. वही बात करें अगर उत्कर्ष के राजनीतिक कैरियर की तो, वह कुछ खास लंबा नहीं रहा है. सांसद बनने से पहले वह दो बार लखीमपुर खीरी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने जा चुके है. हालांकि, यह पहला मौका था जब वह  लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरे थे. पहली बार साल 2010 में 25 साल की उम्र में सपा के टिकट पर विधायक चुने गए थे, वही दूसरी बार साल 2012 में चुनाव लड़ा और दूसरी बार भी जीत दर्ज की थी.

 

इस बार के चुनावी नतीजों ने यह साबित कर दिया कि बीजेपी के नेताओं के ऊपर लोगों का भरोसा उठता जा रहा है. बीजेपी की हॉट सीट रही अयोध्या से भी इस बार बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. हालांकि तीसरी बार नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर 9 जून को शपथ लेंगे. देखने वाली बात यह हीगी कि इस बार भाजपा सरकार अपने नेताओं को कैसे मैनेज करेगी.

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