मोदी सरकार गाल बजाते हुए अपने ही गुणगान में व्यस्त
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने चार साल पूरे हो चुके हैं। उनके प्रधानमंत्रित्व काल का यह आखिरी साल है। सन् 2019 के लोकसभा(Lok Sabha) चुनावों में अब कुछ ही महीने बाकी हैं। अत: वर्तमान सरकार के कामकाज के विश्लेषण का यह उपयुक्त समय है। इन चार सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने कई योजनाओं की घोषणा की, कई नारे दिये, बहुत से काम किये, बहुत से राज्यों के विधानसभा चुनाव जीते, हालांकि कुछ जगह हार भी हुई, लेकिन राजनीतिक पटल पर मोदी छाये रहे। देश में आज पूरी राजनीति मोदी के बिना शून्य ही है। मोदी इस कदर छाये हैं कि भाजपा ही नहीं, संघ भी मोदी के आभामंडल से चकाचौंध है।
एक तरफ मोदी के प्रशंसकों की बड़ी संख्या है तो दूसरी तरफ आलोचना करने वालों की भी कमी नहीं है। आलोचकों का कहना है कि ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जहां मोदी की असफलता स्पष्ट है लेकिन शब्दजाल का सहारा लेकर उन पर पर्दा डाला जा रहा है। मसलन, आज़ादी के समय भारत की कुल आबादी 32 करोड़ थी, आज देश में इतने ही लोग अत्यधिक गरीबी का जीवन जीने के लिए विवश हैं। हमारे देश में इस समय 30 करोड़ के आसपास युवा हैं और रोजग़ार सृजन की अवस्था अत्यंत शोचनीय है। जनता का मुद्दा है कि देश से गरीबी दूर हो, हर हाथ में रोजग़ार हो ताकि हमारे देशवासी समृद्धि का जीवन जी सकें। गरीबी दूर करने और रोजग़ार के अवसर सृजन करने के बजाए यह सरकार गाल बजाते हुए अपने ही गुणगान में व्यस्त है।
जीएसटी, नोटबंदी, रोजग़ार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी सरकार के बयान प्रचार मात्र साबित हुए हैं। नोटबंदी से काला धन तो बाहर नहीं निकला लेकिन छोटे व्यापारियों का गला अवश्य घुट गया। जीडीपी 7.93 प्रतिशत से गिरकर 6.50 प्रतिशत पर आ गई। नये नोट छापने में सरकार ने 21,000 करोड़ खर्च कर दिये जबकि रिज़र्व बैंक के पास सिर्फ 16,000 हजार करोड़ ही आये। नोटबंदी से आतंकवाद पर भी कोई अंकुश नहीं लगा। हर साल एक करोड़ रोजग़ार पैदा करने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री ने मात्र दो लाख से कुछ ही ज्य़ादा युवाओं को रोजग़ार दिया। मोदी ने तो पकौड़े बेचने वाले लोगों की मेहनत का श्रेय भी खुद को दे दिया।
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के दाम घटने के बावजूद भारत में पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ते जा रहे हैं। सन् 2014 में मुंबई में पेट्रोल की कीमत 68.86 रुपये प्रति लीटर थी जो अप्रैल 2018 में बढकऱ 81.92 रुपये हो गई। देश के सत्रह राज्यों में किसानों की मासिक आय सिर्फ रु.1666 है, ऐसे में कर्ज़ के बोझ तले दबे किसान आत्महत्या के लिए विवश हैं। कज़र् माफी के नाम पर किसानों को 10 रुपये, जी हां, सिर्फ 10 रुपये या इससे भी कम की राशि के चेक थमा दिये गए।
सरकार ने दो लाख के लगभग सरकारी स्कूल बंद कर दिये हैं जिससे ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान, तेलंगाना और गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों की बच्चियों का स्कूल जाना बंद हो गया है। बीते चार सालों में एजुकेशन सेस के नाम पर मोदी सरकार ने 1 लाख 60 हज़ार 786 करोड़ रुपये वसूले हैं, मगर यह पैसा शिक्षा के किस क्षेत्र में खर्च किया गया, इसका हिसाब नहीं है, यूजीसी का बजट 67.5 प्रतिशत कम कर दिया गया है, सो अलग। यही नहीं, बीते चार सालों में शिक्षा नीति का निर्धारण तक नहीं किया गया।
“पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक” पर कुल 180 देशों में हम 177वें पायदान पर है। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, प्रधानमंत्री कार्यालय में कार्यरत प्रोजेक्ट मानिटरिंग ग्रुप ने 500 करोड़ या 1000 करोड़ के एफडीआई की परियोजनाओं के लिए उद्योगपतियों को ई-सुविधा पोर्टल के माध्यम से नीतियों में परिवर्तन करवाकर क्लीयरेंस लेने की नई नीति लागू कर दी है। देश पहले से ही प्रदूषण से परेशान है, अब इस नीति से पर्यावरण को और भी नुकसान होगा और आने वाले कुछ सालों में सांस लेना दूभर हो जाएगा।
वाहवाही लूटने और रोज़-रोज़ नया नारा देने के चक्कर में मोदी ने पहले से चली आ रही बहुत सी योजनाओं को नया नाम देकर अपनी योजना के रूप में पेश किया है, लेकिन मोदी की महंगी रैलियों और अंधाधुंध प्रचार के बावजूद “स्टैंड-अप इंडिया”, “स्किल इंडिया”, “स्टार्ट-अप इंडिया” आदि योजनाओं में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है, और हमें आज तक नहीं पता कि स्मार्ट सिटी किस देश में बन रहे हैं?
इतने सारे झोल-झाल के बावजूद सरकार जनता का पैसा मूर्तियां बनाने में उड़ा रही है। सरदार पटेल की मूर्ति पर 3000 करोड़ रुपये, शिवाजी की मूर्ति पर 2500 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान है मानों मूर्तियां बनाने से देश की समस्याएं हल हो जाएंगी। पिछले चार सालों में सरकार ने 4343 करोड़ रुपये विज्ञापनों खर्च किये हैं। दरअसल, भाजपा एक सोची-समझी रणनीति पर चलते हुए अपना रास्ता बना रही है। अत्यधिक ऊंचे स्वर में मोदी का गुणगान जारी है। मोदी देश में लोकप्रिय हैं, विदेश में लोकप्रिय हैं, अप्रवासी भारतीयों में लोकप्रिय हैं, भारत की साख बढ़ी है, मोदी वैश्विक नेता हैं, आदि-आदि।
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शासन-प्रशासन के बजाए सिर्फ और सिर्फ चुनावी राजनीति तथा प्रधानमंत्री का हमेशा चुनाव की लय में रहना ही सबसे बड़ा मकसद बन गया है। सरकार के पास बताने को कुछ नहीं है। जो लोग पहले कहते थे कि मोदी ही अकेले विकल्प हैं और मोदी ये कर देंगे, वो कर देंगे, बाद में कहने लग गये कि मोदी अकेला क्या कर लेगा, कुछ और पूछो तो जवाब मिलता है कि कांग्रेस ने क्या किया? बहाना तो यहां तक है कि यदि कुछ अच्छा नहीं किया तो कुछ गलत भी नहीं किया, और अंतत: यह कि अगर मोदी ने कुछ अच्छा नहीं किया तो भी विकल्प क्या है?
भाजपा को अपनी कारगुजारी का जवाब देना है, जनता ने भाजपा को वोट इसलिए नहीं दिये थे कि वे कांग्रेस की कमियां गिनवायें बल्कि इसलिए वोट दिये थे कि वे कुछ काम करें। मोदी और भाजपा अपनी नाकामियों का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोडकऱ अपनी ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा या तो विकास के झूठे आंकड़े दे रही है या फिर मुद्दों से हट कर मोदी को मुद्दा बना रही है। यही कारण है कि भाजपा “मोदी नहीं, तो कौन?” का नारा बुलंद कर रही है।
जनता का सवाल यह है कि इन चार सालों में आपने क्या किया, अगले एक साल आप क्या करने वाले हैं और सन् 2019 का चुनाव आप किन मुद्दों पर लडऩा चाह रहे हैं? सवाल आपसे है क्योंकि वायदे आपने किये थे। विपक्ष ने गलतियां कीं तो जनता ने उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया। आप भी यदि विपक्ष नहीं होना चाहते हैं तो विपक्ष की गलतियां मत गिनवाइये, हमारे सवालों का जवाब दीजिए, और याद रखिए, मुद्दा आप नहीं हैं, हमसे मुद्दों की बात कीजिए वरना 130 करोड़ की जनता में हम किसी और को ढूंढ़ ही लेंगे।
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
(दि हैपीनेस गुरू के नाम से विख्यात, पी. के. खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे।
एक नामचीन जनसंपर्क सलाहकार, राजनीतिक रणनीतिकार एवं मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ- साथ वे एक नियमित स्तंभकार भी हैं और लगभग हर विषय पर कलम चलाते हैं।)