बनारस के इस मंदिर का चमत्कारी शिवलिंग, जिनका हर वर्ष बढ़ता है आकार
काशी में ऐसी कई अद्भुत और अलौकिक चीजें हैं जिनके बारे में शायद हर कोई नहीं जानता. इनमें से एक है काशी में स्थापित तिलभांडेश्वर महादेव.इनकी पौराणिकता के साथ इनकी कहानी और किस्से भी उतने ही रोचक हैं जितना काशी नगरी का इतिहास. इसी कड़ी में वाराणसी के सोनारपुरा थाना क्षेत्र में स्थित तिलभांडेश्वर नाम का प्रसिद्ध शिव मंदिर है. यहां स्थापित भगवान भोलेनाथ का विशाल शिवलिंग अपने आप में कई कहानियों को बयां करता है. लेकिन इससे जुड़ी कहानी इसे और अनूठा बनाती है ऐसी मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग हर वर्ष एक तिल के बराबर बढ़ता है.
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जमीन से खुद प्रकट हुआ था यह शिवलिंग
दरअसल वाराणसी का तिलभांडेश्वर मंदिर दक्षिण भारत से आने वाले दर्शनार्थियों के लिए काफी महत्वपूर्ण स्थान है. यह शिवलिंग स्वयं-भू शिवलिंग है. यानी जमीन से खुद निकला हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि काशी नगरी के कण-कण में शिव का वास है. ऐसी ही एक पौराणिक कथा काशी के तिलभांडेश्वर मंदिर के बारे में भी है. शिव महापुराण में भी ऐसी कई बातें वर्णित हैं जो इस मंदिर को अन्य शिव मंदिरों से बिल्कुल अलग बना देती हैं.
क्या कहते हैं मंदिर के महंत
मंदिर के महंत स्वामी शिवानंद गिरि ने बताया कि इस शिवलिंग का आकार काशी के 3 सबसे बड़े शिवलिंग में से एक है. इसमें हर वर्ष तिल के सामान वृद्धि होती है. कहा जाता है यह मंदिर उस स्थान पर स्थापित है जहां द्वापर युग में तिल की खेती हुआ करती थी. इस मंदिर का इतिहास भी द्वापर युग से ही जुड़ा हुआ है. उस समय जब इस शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने देखा और तिल की खेती के बीच इस शिवलिंग को देखकर इसकी पूजा पाठ शुरू की तभी से इन्हें तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाने लगा.
शिव पुराण में मिलता है ज़िक्र
ऐसा कहा जाता है कि मुगल शासन के दौरान मंदिर को नष्ट करने की कोशिश की गई. इस दौरान मंदिर पर एक नहीं 3 बार मुस्लिम शासकों ने हमला भी किया. मगर उस समय इस शिवलिंग को कुछ भी नहीं हुआ. इसके बाद मुगल शासकों को यहां से वापस लौटना पड़ा. इसके अलावा ब्रिटिश शासन काल में अंग्रेजों ने शिवलिंग की महिमा सुनकर इसके आकार में हो रही बढ़ोतरी को जांचने के लिए इसके चारों तरफ धागा भी बांधा था. लेकिन धागा बार-बार टूट जा रहा था. इस शिवलिंग के बारे में शिव पुराण में भी जिक्र मिलता है. इसमें लिखा है कि यह शिवलिंग तिल के बराबर बढ़ता है. हालांकि शिवलिंग में हो रही बढ़ोतरी कैसे और क्यों होती है यह आज तक कोई नहीं जान पाया है.
क्या हैं इस मंदिर की मान्यता
मंदिर के महंत के अनुसार मान्यता है कि अति प्राचीन काल में यह स्वयंभू शिवलिंग उस वक्त के प्रख्यात ऋषि विभांड की तपस्या के बाद प्रकट हुआ था. इसलिए इस शिवलिंग को तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाता है. उस वक्त भगवान शिव ने ऋषि को कहा था कि कलयुग में यह शिवलिंग हर वर्ष तिल के समान बढ़ेगा और इसके दर्शन मात्र से ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा. इसके बाद इस शिवलिंग का नाम तिलभांडेश्वर पड़ा. ऐसी भी मान्यता है कि यह शिवलिंग साल में एक बार मकर संक्रांति के दिन तिल के बराबर बढ़ता है.
क्या कहते हैं भक्त
एक कथा के अनुसार यह भी कहा गया है कि यहां पर इस शिवलिंग को 15 दिन शुक्ल पक्ष में बढ़ोतरी के रूप में देखा जाता है. जबकि कृष्ण पक्ष के 15 दिन यह शिवलिंग घटता है. इस शिवलिंग की आकृति को बढ़ने से रोकने के लिए इसे नारियल की जटाओं से सुबह-शाम घिस घिसकर साफ किया जाता है ताकि इस में होने वाली बढ़ोतरी रोकी जा सके. यहां आने वाले भक्त शिखर श्रीवास्तव और अभिनव सिंह का भी कहना है कि हम लोग काफी वक्त से शिवलिंग के दर्शन कर रहे हैं और जब भी दर्शन करते हैं तो यह शिवलिंग पहले की अपेक्षा ज्यादा बढ़ा प्रतीत होता है.
written by Harsh Srivastava