आज भी होता है नीब करौरी बाबा के कैंची धाम में चमत्कार, भक्त चढ़ाते हैं कंबल

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लोगों की किस्मत बदलने वाले नीब करौरी (नीम करोली) बाबा का नाम देश में ही नही बल्कि विदेशों में पूजनीय है। नीब करौरी बाबा एक अत्यंत पूजनीय संत और भगवान हनुमान के बहुत बड़े भक्त थे। इन्हें नीम करोली बाबा भी कहते हैं। नीम करोली बाबा के नाम से ही ये विश्व भर में ज्यादा मशहूर हैं। हर किसी ने बाबा के जीवन से जुड़े कई चमत्कारी किस्से सुने होंगे। यहीं नहीं कहते हैं जो एक बार बाबा के कैंची धाम के दर्शन कर लेता है, उसके हर काम बन जाते हैं। दुनिया भर के लोग नीम करौली बाबा के आश्रम में उनका आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। कंबल पहने हुए बाबा के चमत्कारों के चलते उन्हें भगवान हनुमान का अवतार भी माना जाता है। आज 15 जून के दिन नीम करोली बाबा ने कैंची धाम की स्थापना की थी। हर साल 15 जून को कैंची धाम में मेला आयोजित होता है, जहां लाखों भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है।

हनुमान भक्त थे नीब करौरी बाबा

जिन नीब करौरी बाबा के लाखों की संख्या में भक्त हैं। वो नीब करौरी बाबा खुद भगवान हनुमान के परम भक्त थे। बाबा रोजाना हनुमान जी की उपासना के बाद ही दिन की शुरूआत करते थे। बाबा नीम करोली अपने अनुयायियों को भी रोजाना हनुमानजी का चालीसा का पाठ करने को कहते थे। नीम बाबा करोली हिंदू गुरु थे, फिर भी कई धर्मों के लोग उनकी भक्ति-पूजा करते हैं। नीम करोली बाबा भगवान हनुमान के अनुयायी थे। उनके भक्त उन्हें महाराज-जी के रूप में संदर्भित करते थे। लेकिन बाबा के भक्त उनको भगवान हनुमान का अवतार मानते हैं।

बाबा ने 17 साल में प्राप्त किया था ज्ञान

बाबा नीम करोली एक हिंदू संत थे। उनका पूरा जीवन एक रहस्यवाद ही रहा। नीब करौरी बाबा 1900-1973 तक भारत में रहें थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। कहा जाता है कि 17 साल की आयु में ही बाबा को ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। बाबा के जीवनकाल और उनकी मृत्यु के बाद भी भक्तों ने कई अलौकिक और दिव्य चमत्कारों का अनुभव किया। इसलिए कैंची धाम आज भी श्रद्धालु मनोतियां लेकर जाते हैं। 1960 और 1970 के दशक में नीब करौरी बाबा भारत की यात्रा करते हुए की देशों तक पहुंचे। बाबा कई अमेरिकियों के गुरु बन गए थे।

बाबा का असली नाम लक्ष्मीनारायण था 

नीब करौरी बाबा को इस युग का सबसे महान संत माना जाता है। बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। नीब करौरी बाबा हनुमानजी के परम भक्त थे लेकिन उनके भक्त उन्हें हनुमान जी का अवतार मानते थे। उनका जन्म अकबरपुर गांव में करीब 1900 के आसपास हुआ था।

रोजाना करते थे हनुमान चालीसा पाठ 

नीम करोली बाबा ने बताया कि हर व्यक्ति को धनवान और सुखी जीवन पाना है, तो रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। साथ ही बाबा जी ने बताया कि हनुमान चासीला की प्रत्येक पंक्ति अपने आप एक महामंत्र है। इसलिए जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का पाठ करता है, वह व्यक्ति सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

आज के दिन हुई थी कैंची धाम की स्थापना

उत्तराखंड में हिमालय की सिल्वन तलहटी में स्थित नीम करोली बाबा आश्रम या कैंची धाम नाम का एक छोटा सा विचित्र आश्रम है। मंदिर के प्रांगण में भरपूर हरियाली और इसके चारों ओर साफ-सुथरे कमरों के साथ, आश्रम एक शांत और एकांत रिट्रीट के लिए एकदम सही जगह प्रस्तुत करता है। वर्ष 1964 में 15 जून को नीम करोली बाबा ने खुद कैंची धाम आश्रम की स्थापना की थी। तब से हर साल यहां 15 जून को भव्य मेला लगता है। आश्रम को Apple के संस्थापक और सीईओ, स्टीव जॉब्स और फेसबुक के अध्यक्ष, मार्क जुकरबर्ग की यात्रा के कारण मान्यता मिली है। कैंची धाम ध्यान कार्यक्रम और आध्यात्मिक शिविर आयोजित करता है जिसमें दुनिया भर के भक्त शामिल होते हैं।

 

कैंची धाम मेले में भक्तों लगती है भीड़

किस्मत बदलने वाले बाबा नीम करौली महाराज के कैंची धाम के स्थापना दिवस पर भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा। सुबह करीब सवा पांच बजे मंदिर गेट खुलते ही मंदिर के भीतर बाबा के अनुयायियों का ताता लग गया। बाबा को भोग लगाने के बाद प्रसाद वितरित शुरू किया गया। देर रात से ही मंदिर परिसर से बाहर श्रद्धालुओं की आमद शुरू हो गई थी। दोपहर तक भारी संख्या में श्रद्धालुओं का पहुँचना जारी है। जिससे कुछ ही घंटों में करीब दो लाख श्रद्धालु मंदिर दर्शन कर चुके है। मेले को शांतिपूर्ण संपन्न कराने में जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, मंदिर ट्रस्ट समेत तमाम भक्त जुटे पड़े है।

डायबिटीक कोमा से हुआ था बाबा का निधन

नीब करौरी बाबा का 11 सितंबर, 1973 की सुबह लगभग 1:15 बजे वृंदावन में निधन हो गया था। भारत के एक अस्पताल में डायबिटिक कोमा में जाने के बाद उन्होंने आखिरी सांसें ली। उनके निधन के बाद उनके अनुयायियों ने कैची धाम को संभाला। आज यहां आश्रम में बाबा के शिष्य और अनुयायी भक्तों की समस्याएं सुनते हैं। भक्तजन बताते हैं आज भी कैची धाम में चमत्कार होते हैं।

हमेशा कंबल ओढ़ते थे बाबा

नीम करोली बाबा हमेशा ही कंबल ओढ़ा करते थे। रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने अपनी किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ पर बुलेटप्रूफ कंबल से जुड़ी घटना का जिक्र किया है। रिचर्ड एलपर्ट ने बताया कि बाबा के कई भक्तों में एक बुजुर्ग दंपति भी थे, जोकि फतेहगढ़ में रहते थे। बाबा के चमत्कारी कंबल की यह घटना 1943 से जुड़ी है।

बाबा का चमत्कारी किस्सा

बाबा के चमत्कारी किस्सों पर किताब भी लिखी गई है, जिसका नाम है ’मिरेकल ऑफ लव’ है। इस किताब में बाबा के चमत्कारों के कई किस्से बताए गए हैं। इस किताब में बाबा के ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ से जुड़ी एक घटना का भी जिक्र मिलता है।

बुजुर्ग दंपति के घर रुके थे बाबा

एक दिन बाबा अचानक बुजुर्ग दंपति के घर पर पहुंच गए। इसके बाद बाबा ने कहा कि वह रात में यहीं रुकेंगे। बाबा की बात सुनकर बुजुर्ग दंपति भक्त को बहुत खुशी हुई। लेकिन बुजुर्ग दंपति गरीब थे और वे सोचने लगे कि अगर बाबा रुके तो सत्कार और सेवा के लिए उनके पास कुछ नहीं है। दंपति के पास उस समय जो कुछ भी पर्याप्त था, उन्होंने उस समय बाबा को दिया और उनका सत्कार किया। भोजन के बाद उन्होंने बाबा को सोने के लिए एक चारपाई और ओढ़ने के लिए कंबल दी, जिसे ओढ़कर बाबा सो गए।

कंबल ओढ़ने के बाद भी कराह रहे थे बाबा

इसके बाद बुजुर्ग दंपत्ति भी बाबा के चारपाई के पास ही सो गए। बाबा कंबल ओढ़कर सो रहे थे और ऐसे कराह रहे थे जैसे उन्हें कोई मार रहा है। दंपति सोचने लगे कि बाबा को आखिर क्या हो गया। जैसे-तैसे रात बीती और सुबह हो गई। बाबा ने सुबह कंबल लपेटकर बजुर्ग दंपति को दे दी और कहा कि इसे गंगा में प्रवाहित कर देना। लेकिन इसे खोलकर नहीं देखना वरना मुसीबत में फंस सकते हो। बाबा ने यह भी कहा कि आप चिंता न करें, आपका बेटा महीने भर के भीतर लौट आएगा। दंपति भी बाबा की कही बातों का पालन करते चादर को गंगा में प्रवाहित करने के लिए ले जा रहे थे।

दंपति को दिया था चमत्कारी कंबल

कंबल लेकर जाते समय दंपति को ऐसा महसूस किया हुआ कि चादर में कुछ लोहे जैसा सामान है। लेकिन बाबा ने तो खाली चादर दी थी। बाबा ने चादर खोलने को मना किया था। इसलिए दंपति ने बिना उसे खोले वैसे ही नदी में प्रवाहित कर दिया। बाबा के कहेनुसार एक महीने बाद बुजुर्ग दंपति का बेटा भी बर्मा फ्रंट से घर लौट आया। यह दंपति का इकलौता बेटा था, जोकि ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के समय बर्मा फ्रंट पर तैनात था। बेटे को घर पर देख बुजुर्ग दंपति की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन बेटे ने अपने माता-पिता को ऐसी घटना के बारे में बताया, जिसे सुनकर वो हैरान रह गए।

कंबल ने बचाई बेटे की जान

बेटे ने कहा कि लगभग महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के बीच घिर गया और रातभर गोलीबारी होती रही। इस युद्ध में उसके सारे साथी भी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। बेटे ने कहा कि मैं कैसे बच गया यह मुझे भी मालूम नहीं। उसने कहा कि उसपर खूब गोलीबारी हुई लेकिन एक भी गोली उसे नहीं लगी।

कैंची धाम भक्त चढ़ाते हैं कंबल

कंबल की ये घटना बाबा की किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ में भी बताई गई है। पुस्तक में रिचर्ड एलपर्ट ने इस कंबल को बुलेटप्रूफ कंबल कहा है। आज भी कैंची धाम स्थित मंदिर में बाबा के भक्त उन्हें कंबल चढ़ाते हैं। क्योंकि बाबा हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे। लोगों की आस्था है कि कंबल चढ़ाने से बाबा प्रसन्न होंगे और उनकी मनोकामना पूरी करेंगे।

 

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