दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग को गर्भपात की सुप्रीम कोर्ट से इजाजत

पीड़िता की ओर से गर्भपात की अनुमति के लिए दाखिल की गई थी याचिका

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उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की दुष्कर्म पीड़िता किशोरी को 28 हफ्ते का गर्भ गिराने की इजाजत दे दी है. सुप्रीम अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए और अस्पताल की ओर से प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया है. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (डज्च्) एक्ट के तहत शादीशुदा महिलाओं के लिए अबॉर्शन की ऊपरी सीमा 24 हफ्ते है. यह कानून विशेष परिस्थितियों में विकलांग, नाबालिग, मानसिक रूप से बीमार, रेप पीड़ित महिलाओं को 24 हफ्तों के भीतर गर्भपात कराने की अनुमति देता है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अहम माना जा रहा है.

मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ने की कही गई बात

रिपोर्ट में नाबालिग के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की बात कही गई थी. रिपोर्ट में नाबालिग की चिकित्सीय समाप्ति की राय दी गई थी और कहा गया था कि गर्भावस्था जारी रहने से नाबालिग के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने लोकमान्य तिलक नगर मेडिकल कॉलेज और जनरल अस्पताल (एलटीएमजीएच) के डीन को निर्देश दिया है. गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए मुंबई के सायन में डॉक्टरों की एक टीम गठित की जाएगी.

19 अप्रैल को दिया था जांच का आदेश

आपको बता दें कि पीड़िता ने 28 सप्ताह के गर्भ को गिराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. इस पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 19 अप्रैल को नाबालिग की मेडिकल जांच का आदेश दिया था. कोर्ट ने मुंबई के सायन स्थित लोकमान्य तिलक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल से इस मामले में रिपोर्ट मांगी थी. कहा था कि अगर पीड़िता चिकित्सकीय रूप से गर्भपात कराती है या उसे ऐसा न करने की सलाह दी जाती है तो इसका उसकी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति पर क्या असर पड़ने की संभावना है.

राज्य सरकार उठाएगी पूरा खर्च

रेप पीड़िता की मां ने मीडिया को बताया कि उसकी बेटी पिछले वर्ष लापता हो गई थी. तीन महीने बाद वह राजस्थान में मिली. पता चला कि उसके साथ एक व्यक्ति ने दुष्कर्म किया. इसके बाद उस व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा-376 (रेप) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो एक्ट) कानून के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया. मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को भी आदेश दिया है कि वो नाबालिग के अबॉर्शन का पूरा खर्चा उठाए. अबॉर्शन के बाद भी इलाज के दौरान जो खर्च आएगा, वो राज्य सरकार ही उठाएगी.

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