राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों की चिरौरी में जुटीं?
कर्नाटक, तेलंगाना की सरकारों की अपील- मत जाओ, रुक जाओ
प्रवासी मजदूरों migrant workers के बड़ी संख्या में अपने अपने प्रदेशों और गांवों में चले जाने से सभी राज्यों के सामने अर्थव्यवस्था को चलाने का बड़ा संकट पैदा हो गया है। इसे निकट से जानना हो तो चीन के उस वुहान शहर को जानना जरूरी है जहां से कोरोना महामारी पूरी दुनिया में फैली और अब वहां से कामगारों के चले जाने से वहां अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में कम से कम तीन साल का वक्त लग जाने का अंदेशा आ खड़ा हुआ है।
migrant workers की हमारी अर्थव्यवस्था को चलाने में कितनी अहम भूमिका है, इसे ये राज्य सरकारें भली भांति समझ रही हैं। ऐसे में राज्यों में मजदूर संकट हो सकता है जहां जल्द ही आर्थिक गतिविधियां शुरू होने वाली हैं।
दूसरे प्रदेशों में फंसे लाखों migrant workers किसी भी तरह बस अपने घर पहुंचना चाहते हैं। ऐसे में बहुत से प्रदेशों की समझ में आने लगा है कि जैसे ही उनके यहां आर्थिक गतिविधियां चालू होंगी उनके यहां migrant workers की किल्लत होने लगेगी। इसलिए इन प्रदेशों की सरकारें अपने यहां रहने वाले migrant workers से वहीं रुके रहने का आग्रह करने लगी हैं।
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कहा, ‘हमने एंप्लायर्स से अपील की है कि वे अपने यहां काम करने वालों के हितों की रक्षा करें और उन्हें सैलरी वगैरह दें।’
गड़बड़ा सकती है बेंगलुरु की अर्थव्यवस्था
बेंगलुरु में आईटी और आईटी से जुड़ी सेवाओं को छोड़ दिया जाए तो करीब 8 लाख migrant workers यहां रहते हैं जिन पर यहां की अर्थव्यवस्था निर्भर है। ठेकेदारों, बिल्डरों, ट्रेड यूनियन और कार्यकर्ताओं का कहना है कि इनमें से लगभग 50 पर्सेंट अपने गांवों को लौट जाएंगे और इसका असर शहर की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
हैदराबाद में भी श्रमिक संकट की आशंका
हैदराबाद में भी खतरे की घंटी बज चुकी है। तेलंगाना सरकार ने अपने जिला अधिकारियों से कहा है कि वे मजदूरों की पहचान करके उन्हें भरोसा दिलाने की कोशिश करें कि जल्द ही काम शुरू होने वाला है। राज्य के चीफ सेक्रटरी सोमेश कुमार का कहना है कि चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग शुरू होने वाले हैं इसलिए अधिकांश migrant workers ने रुकने का फैसला किया है।
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कर्मचारी बाहर निकलने में कतरा रहे
दूसरी ओर चीन की ओर देखें तो वहां हालत अब भी ठीक नहीं है। वुहान के बिजनसमैन का कहना है कि सबकुछ सामान्य होने में कई महीने लग सकते हैं। क्योंकि ज्यादातर कर्मचारी अभी भी बाहर निकलने में कतरा रहे हैं। जब उनका डर खत्म होगा तो वे काम पर लौटेंगे। फिर कंपनियों का प्रॉडक्शन सुधरेगा। उसके बाद कहीं जाकर खपत बढ़ेगी। इस प्रक्रिया में तीन साल लग सकते हैं। इन सबके बीच लोगों के चेहरे पर कोरोना की दूसरी लहर आने का डर साफ दिखाई देता है।
छोटे धंधे डूब गए
लॉकडाउन खत्म होने के बाद कई रेस्तरां शुरू हुए थे। लेकिन कस्टमर नहीं आ रहे। रोजाना सिर्फ 2 से 3 ऑनलाइन ऑर्डर आए। ज्यादातर रेस्तरां दोबारा बंद हो गए। छोटी दुकानों को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए वे बंद हैं। फिटनेस सेंटर, मूवी थिएटर भी नहीं खुले। बड़ी फूड चेन- स्टारबक्स, मैकडी, बर्गर किंग, केएफसी और पिज्जा हट ने अपने स्टोर खोले हैं। लेकिन लोगों को बैठकर खाने नहीं दिया जा रहा है। लोग स्टोर के बाहर खड़े होकर ऑर्डर ले जा सकते हैं या ऑनलाइन ऑर्डर करें।
migrant workers की भारी कमी के चलते अनेक उद्योग वहां शुरू ही नहीं हो पाये हैं।
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