श्राद्ध कर्म के जरिए बेटी बचाने का संदेश, काशी में अजन्मी बेटियों का तर्पण

अजन्मी अभागी बेटियों को मोक्ष के लिए 11वें वर्ष श्राद्ध कर्म

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वाराणसी: एक बार फिर अपने सामाजिक कर्तव्यों का पूरा करते हुए आगमन सामाजिक संस्था ने उन अजन्मी बेटियों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध – कर्म किया जन्‍म से पहले मार दिया गया. संस्था का स्पष्ट विचार है कि कोख में मारी गयी उन अभागी बेटियों को जीने का अधिकार तो नहीं मिल सका लेकिन उन्हें मोक्ष तो मिलना ही चाहिए. लगातार गर्भ में मारी जा रही अजन्मी अभागी बेटियों को मोक्ष की नगरी काशी में 11वें वर्ष भी मोक्ष दिलाने के लिए सविधिक श्राद्ध कर्म हुआ.

गंगा तट के दशाश्वमेध घाट पर गर्भ में मारी गयी बेटियों के मोक्ष की कामना लिए हुए “आगमन सामाजिक संस्था ” के द्वारा वैदिक ग्रंथो में वर्णित परम्परा के अनुसार श्राद्ध कर्म और जल तर्पण कराया. गंगा तट पर मिटटी के बनी वेदी पर 18 हजार पिंड निर्माण कर मन्त्रों से आह्वान कर बारी बारी मृतक को प्रतीक स्वरूप स्थापित करने के बाद मन्त्र के अभिसिंचन से उनके मोक्ष की कामना की गयी. पांच वैदिक पुरोहितों द्वारा उच्चारित वेद मंत्रो के बीच श्राद्धकर्ता संस्था के संस्थापक सचिव डॉ संतोष ओझा ने 18000 बेटियों का पिंडदान और जल तर्पण के उपरान्त ब्राम्हण भोजन के साथ आयोजन सम्पन्न कराया.

अब तक एक लाख अजन्मी बेटियों का श्राद्ध

संस्था प्रतिवर्ष पितृ पक्ष के मातृ नवमी को अजन्मी बेटियों का सनातन परम्परा और पुरे विधि विधान से श्राद्ध कर उनके मोक्ष की कामना करती है. बताते चलें की ये वो अभागी और अजन्मी बेटी हैं जिन्हें उन्ही के माता पिता इस धरा पर आने से पहले ही सदा सदा के लिए अंधियारे में झोक देते है। इस अनूठे आयोजन के साक्षी समाज के अलग अलग वर्ग के लोग बने. जिन्होंने मृतक बच्चियों को पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें अपनी श्रद्धा सुमन भी अर्पित किए.

अब तक 1 लाख बेटियों के श्राद्धकर्ता और आगमन संस्था के संस्थापक डॉ संतोष ओझा का कहना है कि आमतौर पर आमजन द्वारा गर्भपात को एक ऑपरेशन माना जाता हैं लेकिन स्वार्थ में डूबे परिजन यह भूल जाते हैं कि भ्रूण में प्राण-वायु के संचार के बाद किया गया गर्भपात जीव ह्त्या है, जो 90% मामले में पायी जाती है. साफ़ है कि अधिकाँश गर्भपात के नाम पर जीव -हत्या की जा रही हैं. धर्म -ग्रन्थ की बात करें तो किसी भी अकाल मृत्यु में शांति प्राप्ति न होने से जीव भटकता है जो परिजनों के दुःख का कारण भी बनता है.

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इनकी रही मौजूदगी…

शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार किसी जीव की अकाल मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए शास्त्रीय विधि से पूजन -अर्चन ( श्राद्ध ) करा कर जीव को शांति प्रदान की जा सकती है. जिससे उनके परिजनों को अनचाही परेशानियों से राहत मिलती है. सम स्मृति में श्राद्ध के पांच प्रकारों का वर्णन है. नित्य, नैमित्तिक, काम्य ,वृध्दि ,श्राध्दौर और पावैण.

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ये श्राद्ध , नैमित्तिक श्राध्द ,जो विशेष उद्देश्य को लेकर किया जाता हैं. श्राद्धकर्म और जल तर्पण आचार्य दिनेश शंकर दुबे के नेतृत्व में सीताराम पाठक, नितिन गोस्वामी, उमेश तिवारी, बजरंगी पांडेय रहे. पिंड निर्माण कार्य में जादूगर जितेंद्र ,किरण,राहुल गुप्ता, साधना, गुड्डो, सन्नी कुमार, हरिकृष्ण प्रेमी, अरुण कुमार गुप्ता , मानस चौरसिया,राजकुमार, ओमप्रकाश,मदन गुप्ता,भानु ,सोनी और गोपाल शर्मा रहे.

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