जानें कौन हैं मास्टर गुलाम हैदर, जिनके बेशकीमती सलाह से स्वर कोकिला बनी लता मंगेशकर

लता मंगेशकर नूरजहां की आवाज़ों के तो आप सभी दीवाने होंगे, और हो भी क्यों नहीं जब गले से सुरीली मधुर स्वर निकलेंगे तो कोई भी मुर्दा उठ के ताल देने लगेगा।

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लता मंगेशकर नूरजहां की आवाज़ों के तो आप सभी दीवाने होंगे, और हो भी क्यों नहीं जब गले से सुरीली मधुर स्वर निकलेंगे तो कोई भी मुर्दा उठ के ताल देने लगेगा। लेकिन इन दोनों नाम के पीछे कौन हीरो था आइये आज उसके बारे में जानते है।

फ़िल्मी संगीत का आइंस्टीन:

मास्टर गुलाम हैदर को फ़िल्मी संगीत का आइंस्टीन माना गया है। दुनिया को नूरजहां और लता मंगेशकर की आवाज़ का तोहफा गुलाम हैदर ने ही दिया था। शायद यही कारण रहा कि आज भी भारतीय संगीत का प्लेबैक म्यूजिक आज भी उन्ही के अंदाज़ पे चलता है।

बैठे-बैठे बनाते थे धुन:

कला की बेमिसाल उपलब्धियों से जुड़े मास्टर साहब कभी चिंतित नहीं हुआ करते थे। लता मंगेशकर के अनुसार मास्टर साहब हर जगह अपनी धुन खोज ही लेते थे। किस्सा उन दिनों का का है जब फिल्म ‘मजबूर’ के गाने की पहली धुन रेलवे स्टेशन पे बनाई गई थी।

किस्सों में यह भी एक कहानी है कि मास्टर जी उस वक़्त 555 ब्रांड की सिगरेट पिया करते थे। उस वक़्त डब्बे का ढक्कन टीन के बनते थे। मास्टर जी स्टेशन पे ट्रैन का इन्तेज़ार करते करते उसी सिगरेट के डब्बे पर ही गाने की धुन बना दिए थे।

मास्टर जी ने किया फ़िल्मी संगीत को स्पष्ट

गुलाम हैदर अली को फ़िल्मी संगीत का संस्थापक माना गया है। उन्होंने ने फ़िल्म की संगीत को कई हिस्सों में बाटा। शुरूआती दौर में उसमे म्यूजिकल इंट्रोडक्शन होगा फिर गाने में धुन और सुर ताल का तालमेल बैठेगा। इसी दौरान गीत का मुखड़ा गाया जाएगा जिसके साथ ही गीत को सजाया जाएगा।

कैसे बने संगीतकार?

1906 में गुलाम साहब का जन्म सिंध के हैदराबाद में हुआ था। बचपन से ही उन्हें संगीत में रूचि थी, लेकिन घर के लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए वह दन्त विशेषज्ञ बन गए थे। लेकिन कहानी उसी बीच की है। उस बीच मशहूर फिल्म निर्माता पंचोली स्टूडियो के मालिक सेठ दिलसुख अपने दांतों में कुछ शिकायत लेकर गुलाम साहब के पास पहुंचे। बातचीत होती रही तभी सेठ दिलसुख ने बताया की उन्हें एक म्यूजिक डायरेक्टर की तलाश है।

और कहानी यही पे मोड़ ले लेती है। तुरंत मास्टर जी ने अपने क्लिनिक से ही अपना हारमोनियम निकाला और अपनी कला का प्रदर्शन किया। ऐसे ही नहीं हैदर साहब को मिली थी महान संगीतकार की उपाधि। जैसे जैसे संगीत में लोगों की रूचि बढ़ती गई या यूँ कहें तो हैदर साहब की कला ने लोगों को खींचा।

 

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