बड़ी दिलचस्प है रेडियम की खोज की कहानी, कैंसर के इलाज में हुई आसानी, मैडम क्यूरी को मिला था नोबेल प्राइज

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आज से करीब 120 वर्ष पहले रेडियम की खोज से विज्ञान जगत में हलचल मच गई थी. दुनिया भर में मैडम मैरी क्यूरी का नाम छा गया था. इस जादुई तत्व की खोज करने वाली मैडम क्यूरी को दो नोबल प्राइज भी मिले. रेड‍ियम की खोज ने उस जमाने में कैंसर का इलाज आसान बना दिया था. आइए जानते है रेडियम की खोज की पूरी कहानी.

21 दिसंबर, 1898 की तारीख विज्ञान और मानवता के इतिहास में इसलिए अमर है क्‍योंकि इसी दिन अपने लैब में काम करते हुए अचानक उस महान वैज्ञानिक स्‍त्री को वो तत्‍व मिला, जिसने आने वाले दिनों में विज्ञान की, चिकित्‍सा विज्ञान की और समूची मनुष्‍यता की दिशा बदल देनी थी. अंधेरे में सितारे की तरह चमकने वाला यह जादुई तत्‍व रेडियम था. आज ही के दिन रेडियम की खोज हुई थी और इसके खोजकर्ता पोलैंड की रसायन शास्त्री मैरी स्कोलोडोव्सका क्यूरी और फ्रांस के रसायन शास्त्री पियरे क्यूरी थे.

Radium Madame Marie Curie

रेडियम की खोज…

रेडियम की खोज की कहानी बड़ी दिलचस्‍प है. बात 21 दिसंबर, 1902 की है, उस समय मैरी और पियरे को पीचब्लेंड नामक अपनी प्रयोगशाला में साथ काम करते हुए पूरे 3 साल 9 महीने बीत चुके थे. कड़ी मेहनत के बाद मैरी और पियरे पीचब्लेंड से यूरेनियम नामक एक तत्‍व को अलग करने में सफल हुए थे. यूरेनियम को अलग करने के बाद जो वेस्‍ट बचा था, उसमें काफी मात्रा में रेडियोधर्मिता मौजूद थी. उन्‍हें यकीन था कि यूरेनियम को निकालने के बाद अब भी पीचब्लेंड में कोई और तत्‍व छिपा हुआ है, जिसे उनकी लैब की मशीन पकड़ नहीं पा रही.

पीचब्लेंड का खनन अपने आप में एक महंगी प्रक्रिया थी. पियरे और मैरी अपना पैसा लगाकर पिंचब्‍लेड का खनन करवा रहे थे और प्रयोग कर रहे थे. उन्‍हें किसी तरह की आर्थिक सहायता नहीं मिल रही थी. मौजूदा प्रयोगशाला और मशीनों की अपनी सीमा थी. लेकिन, मैरी को यकीन था कि कुछ तो है जो हमारी पकड़ में नहीं आ रहा. लेकिन, मैरी ने अपने सीमित संसाधनों के साथ ही रिसर्च का काम जारी रखा.

Radium Madame Marie Curie

 

काफी दिनों तक कई टन पीचब्लेंड को रिफाइंड करने के बाद उन्‍हें थोड़ी सी मात्रा में एक नया तत्‍व मिला. यह तत्‍व अंधेरे में तारे की तरह चमकता था. उन्‍होंने इसे रेडियम नाम दिया और इस तरह रेडियम की खोज हुई. मैरी और पियरे ने इसे मापकर देखा, जिसका परमाणु भार 226 था. उनकी इस खोज की कहानी फ्रांस के प्रतिष्ठित साइंस जरनल में छपी थी, जिसके चर्चे पूरे यूरोप के विज्ञान जगत में हो रहे थे.

रेडियम क्‍या है…

रेडियम एक धातु है, जिसमें अपनी अंदरूनी चमक होती है. यह एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है, जो रौशनी में देखने पर नमक की तरह दिखाई देता है, लेकिन अंधेरे में चमकता है. रेडियोएक्टिव पदार्थ होने का अर्थ यह है कि वह तत्‍व, जिसका नाभिकीय केंद्र बहुत जल्‍दी और आसानी से टूट सकता है और टूटने की प्रक्रिया में इसमें से एक किरण या रौशनी निकलती है. रेडियम यूरेनियम के अयस्‍क से मिलता है. हालांकि, बहुत बड़ी मात्रा में यूरेनियम को प्‍योरीफाई करने के बाद बहुत थोड़ी सी मात्रा में रेडियम प्राप्‍त होता है. कह सकते हैं कि यह एक तरह से यूरेनियम का बाई-प्रोडक्‍ट है.

Radium Madame Marie Curie

रेडियम का इस्‍तेमाल…

रेडियम का इस्‍तेमाल सबसे ज्‍यादा मेडिसिन के क्षेत्र में होता है. रेड‍ियम की खोज ने उस जमाने में कैंसर का इलाज आसान बना दिया था. रेडियम आमतौर पर रेडियम क्लोराइड या रेडियम ब्रोमाइड के रूप में होता है, जिसका उपयोग दवा में रेडॉन गैस का उत्पादन करने के लिए किया जाता है और यह कैंसर के उपचार को बहुत ही आसान बना देता है. वैसे कैंसर की इलाज के लिए दवाओं में आज भी रेडियम का उपयोग किया जाता है. एक्‍सरे से लेकर कैंसर के इलाज के लिए की जाने वाली रेडिएशन थैरेपी तक में रेडियम का प्रयोग किया जाता है.

Radium Madame Marie Curie

इसके अलावा, घड़ी के डायल में, विमान में रेडियम का इस्‍तेमाल होता है. आपको कोई भी चीज अगर अंधेरे में चमकती हुई दिखे तो समझ जाएं कि इसमें रेडियम का प्रयोग किया गया है.

रेड‍ियम का महत्व…

रसायन विज्ञान के इतिहास में रेड‍ियम के अव‍िष्कार का बहुत भारी महत्व था. मूल तत्व के गठन को जांचते जांचते मालूम हुआ कि उसके केंद्र में दो तरह के कण जुड़े होते हैं. एक होता है न्यूट्रॉन और दूसरा प्रोटॉन. रेडियम के केंद्र में बहुत सारे न्यूट्रॉन-प्रोटान होते हैं.

मैरी और पियरे को मिला नोबेल प्राइज…

रेडियम के अविष्कार ने दुनिया के बहुत देशों में हलचल पैदा कर दी थी. लेकिन, फ्रांस में इस अविष्कार की कद्र नहीं हुई, पियरे को नौकरी में कोई तरक्की नहीं हुई. मगर, रेडियम की खोज करके मैरी क्यूरी वैज्ञानिकों के बीच पहुंच गई थीं, उस दौर में एक स्त्री के लिए इतनी ऊंचाई पर जाना बड़ी बात होती थी.

Radium Madame Marie Curie

 

वर्ष 1902 में हुई इस खास खोज को चंद ही दिनों में हर जगह पहचान मिलने लगी. साल 1903 में पति-पत्नी दोनों को इसके लिए नोबल प्राइज भी मिला. हालांकि, मैरी क्यूरी को वर्ष 1911 में एक बार फिर नोबल प्राइज मिला था.

 

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