महाभैरवाष्टमी कल, काशी में मिली थी ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति…

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वाराणसी में भैरव सभी रूपों में विराजमान हैं. सनातन धर्म में भैरव जयंती का बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. इस शुभ दिन पर लोग भगवान शिव के उग्र स्वरूप काल भैरव की पूजा करते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह 22 नवंबर, 2024 को मनाई जाएगी. ऐसी मान्यता है कि इस शुभ तिथि पर पूजा-पाठ और व्रत करने से जीवन की सभी बाधाओं का अंत होता है. इसके साथ ही घर में खुशहाली आती है, तो चलिए इस दिन से जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं.

महाभैरवाष्टमी पर बाबा लाट भैरव का महात्म्य

अविनाशी काशी में हर देवस्थान का विशेष महत्व हैं. साथ ही उससे जुड़ी तमाम पौराणिक कथाएं एवं मान्यताएं, अनन्य प्रकार की किवदंतियां सुनने को मिलती हैं. ऐसी ही रोचक विशेषताओं से भरा हुआ है बाबा लाट भैरव का महात्म्य व इनका दिव्य मंदिर.

अंग्रेजों के दिये लाट भैरव नाम से प्रसिद्ध

बाबा के लाट भैरव नाम का भी इतिहास है. बहुधा भक्तों को यह संशय होता है कि कपाल भैरव और लाट भैरव दोनों अलग-अलग देवता हैं, जबकि कपाल भैरव बाबा श्री लाट भैरव का ही पौराणिक नाम है. लाट भैरव शब्द अंग्रेजी शासन में अंग्रेजों द्वारा दिया गया. काशी में इसी नाम से बाबा अधिक विख्यात हैं.

भैरव मंदिर के समीप कपाल मोचन कुंड-

शास्त्रोंक्त कथानुसार भैरवनाथ को ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति काशी में गंगा और वरुणा नदी के संगम स्थल वर्तमान समय में कज्जाकपुरा नाम से विख्यात इसी स्थान पर मिली थी. तीनों लोकों में भटकने के बाद काशी में प्रवेश करते ही ब्रम्हा का कटा हुआ पांचवा (कपाल) मुंड बाबा भैरवनाथ के हाथों से छूटकर चिघ्घाड़ मारते हुए धरती में प्रविष्ट कर गया. तब से इस पावन स्थल को तीर्थ के रूप में श्री कपाल मोचन कुंड के नाम से जाना जाता हैं. कुंड के जल में स्नान करने से ब्रह्म दोष, चर्म रोग व बांझपन आदि से मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही बाबा के सम्मुख अति प्राचीन भैरवी कूप भी स्थित है. 450 वर्ष पुरानी रामलीला की दृष्टि से भी यह कूप पूजित हैं.

लिंग रूप में प्रथम भैरव

लाट भैरव का दर्शन विशाल लिंगाकार स्वरूप में होता है. अन्य सभी भैरव मूर्त रूप या पिंड रूप में दर्शनीय हैं. किंतु बाबा लाट भैरव लिंग रूप में प्रथम भैरव हैं. इस कारण इन्हें कपालेश्वर महादेव के रूप में भी पूजा जाता है. श्रावण मास में भक्तों द्वारा इनका जलाभिषेक किया जाता है. सामान्यतः अन्य भैरव अपने प्रिय वाहन पर विराजमान मिलेंगे, जबकि बाबा कपाल भैरव का प्रिय वाहन स्वान उनके विग्रह के समीप स्थित है. कहा यह भी जाता है कि इनका संसार मे कोई उपमंदिर नहीं हैं.

काशी के न्यायाधीश है कपाल भैरव, अष्ट भैरव की कचहरी

श्री आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा रचित भैरवाष्टकं के श्लोकानुसार काशीवास लोक पुण्य पाप शोधकं विभूम अर्थात बाबा कपाल भैरव काशी में वास करने वाले लोगों के पाप और पुण्य कर्मों का शोधन करने वाले देवता हैं. इसका प्रमाण मंदिर के गर्भगृह में विद्यमान अष्ट भैरव के चौकियों से प्रत्यक्ष तौर पर मिलता है. कहा जाता है कि इन आठ चौकियों पर काशी के आठों दिशाओं (चारों दिशा और चार कोण) के रक्षक अष्ट प्रधान भैरव बाबा के समक्ष अपने क्षेत्रों की समस्त शुभाशुभ कर्मों का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं.

उत्तराभिमुख बाबा कपाल भैरव के चारो ओर गर्भगृह में क्रमानुसार ईशानकोण पर संहार भैरव, पूर्व दिशा में असितांग भैरव, आग्नेय कोण पर रुरु भैरव, दक्षिण दिशा में चंड भैरव, नैऋत्य कोण पर क्रोधन भैरव, पश्चिम में उन्मत्त भैरव, वायव्य कोण पर कपाल भैरव, उत्तर में भीषण भैरव का स्थान है. न्यायाधीश की भूमिका में बाबा श्री कपाल भैरव कर्मानुसार काशीवासियों के सद्कर्मो के पुण्य फल तथा पापकर्मों के निमित्त दंड का विधान तय करते हैं.

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प्रत्येक दिन का अलग भोग

भैरव उपासना के अनुसार रविवार को पायसान्न अथवा खीर, सोमवार को खोवे का लड्डू, मंगलवार को शुद्ध घृत में गेहूं के आटे व गुड़ से निर्मित हलुआ, बुधवार को उड़द के दाल का बारा अलोना (बिना नमक), गुरुवार को ठोकवा या लड्डू, शुक्रवार को हलुआ घुघरी, शनिवार को उड़द दाल, चना दाल मूंग दाल व चावल से निर्मित खिचड़ी का भोग अर्पित करने से भैरव शीघ्र प्रसन्न होतें हैं तथा भक्तों के मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

इसके अलावा पाक्षिक अष्टमी पूजन का विशेष महत्व हैं. इसमें भी कालाष्टमी के दिन दर्शन पूजन से भक्तों की मनवांछित कामना पूरी होती है. भक्तों द्वारा सच्चे हृदय से किए जाने वाले पूजन से शोक, मोह, दैन्य, लोभ, कोप, ताप आदि का नाश तो होता ही है. ज्ञान और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो जाता है.

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