एक सौ साल में पहली बार लखनऊ को मिलने जा रही महिला मेयर

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देश को पहली महिला राज्यपाल और पहली महिला मुख्यमंत्री देने का गौरव उत्तर प्रदेश को हासिल है और अब प्रदेश की राजधानी नवाबों के शहर लखनऊ को सदी की पहली महिला मेयर मिलने जा रही है। इनका नाम है संयुक्‍ता भाटिया। खबर लिखे जाने तक संयुक्‍ता 40000 हजार वोटों से अपनी प्रतिद्वंदी सपा की साधना गुप्‍ता से आगे चल रही हैं।

दरअसल इस बार लखनऊ मेयर की सीट महिला के लिए आरक्षित है। सरोजिनी नायडू ‘यूनाइटेड प्राविंस’ :अब उत्तर प्रदेश: की पहली राज्यपाल थीं। वह 15 अगस्त 1947 से दो मार्च 1949 तक राज्यपाल रहीं। सरोजिनी नायडू, जो भारत कोकिला के नाम से मशहूर थीं, स्वतंत्रता सेनानी थीं। वह 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में एक बंगाली परिवार में पैदा हुई थीं। उनकी शिक्षा चेन्नई, लंदन और कैम्ब्रिज में हुई. वह महात्मा गांधी की अनुयायी बनीं और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं।

इसी तरह सुचेता कृपलानी के रूप में उत्तर प्रदेश से देश को पहली महिला मुख्यमंत्री भी मिलीं। वह दो अक्तूबर 1963 से 13 मार्च 1967 के बीच मुख्यमंत्री पद पर रहीं। भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाली सुचेता कृपलानी महात्मा गांधी के साथ आजादी की लडाई में भागीदार बनीं।

लखनऊ में मेयर भले ही कोई महिला नहीं रही हो लेकिन यहां से लोकसभा के लिए तीन बार महिलाएं जीतकर पहुंची हैं। लखनऊ से शीला कौल 1971, 1980 और 1984 में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं।

उत्तर प्रदेश म्यूनिसिपैलिटी कानून 1916 में अस्तित्व में आया। बैरिस्टर सैयद नबीउल्लाह पहले भारतीय थे, जो स्थानीय निकाय के मुखिया बने. उत्तर प्रदेश सरकार ने 1948 में स्थानीय निकाय का चुनावी स्वरूप बदला और प्रशासक की अवधारणा शुरू की। इस पद पर भैरव दत्त सनवाल नियुक्त हुए. संविधान में संशोधन के जरिए 31 मई 1994 से लखनऊ के स्थानीय निकाय को नगर निगम का दर्जा प्रदान किया गया1 1959 के म्यूनिसिपैलिटी एक्ट में मेयर के निर्वाचन के प्रावधान किये गये। रोटेशन के आधार पर महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछडे वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी।

बसपा ने पूर्व अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोदियाल को प्रत्याशी बनाया है। बसपा 17 साल बाद पहली बार पार्टी के चिन्ह पर नगर निकाय चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस की प्रेमा अवस्थी सपा की मीरा वर्धन और आप की प्रियंका माहेश्वरी इस पद के लिए मुकाबले में हैं।

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संयुक्ता भाटिया के पति सतीश भाटिया कैंट विधानसभा से दो बार विधायक रहे हैं और जनसंघ के समय से भाजपा के कार्यकर्ता रहे, लेकिन अचानक सतीश भाटिया का निधन हो गया। पहली बार उन्होंने ही इस सीट पर भाजपा को 1991 में जीत दिलाई थी। संयुक्ता के परिवार की पृष्ठभूमि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ी रही है। उनके बेटे प्रशांत भाटिया मौजूदा समय में आरएसएस के विभाग कार्यवाहक (लखनऊ विभाग) हैं। चुनाव की घोषणा से पहले हुए इंटरव्यू के दौरान 80 फीसदी वॉर्ड संयोजकों और प्रभारियों ने उनके पक्ष में समर्थन दिया था। इसके अलावा सूबे में भाजपा सरकार के गठन के बाद अगस्त 2017 में संयुक्ता को महिला आयोग का सदस्य भी नामित किया गया था। ये आरएसएस की बहुत ही करीबी हैं।

इन्होंने दो बार कैंट विधानसभा से भी टिकट मांगा, लेकिन नहीं मिला। यही नहीं, 2012 के निकाय चुनाव के दौरान भी इनकी नाम की अटकलें लगाई जा रही थी। घोषणा से पहले तक भाजपा खेमे के कई बड़े नेता इनकी दावेदारी के एलान के लिए सिफारिश कर रहे थे। यहां तक की संयुक्ता भाटिया ने नॉमिनेशन तक कर दिया था, लेकिन भाजपा ने डॉ. दिनेश शर्मा के नाम पर मोहर लगा दी थी जिसके बाद इन्होंने अपना नाम वापस ले लिया था। आखिरकार लखनऊ नगर निगम की महिला सीट होने के बाद उन्हें भाजपा से मेयर कैंडिडेट बनने की सफलता मिल ही गई।

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