45 मिनट में छोड़ा देश: क्या शेख हसीना का इस्तीफा बनेगी भारत के लिए चुनौती
बांग्लादेश में नैशनल रेज़र्वैशन पॉलिसी के विरोध में चल रहे दंगों के बीच वहाँ की आला-कमान यानि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से रिजाइन कर देश छोड़ दिया है. 76 साल की शेख हसीना पिछले 20 सालों से बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रह चूँकि है. इनके पिता शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले राष्ट्रपति थे. 1975 में तख्तापलट के दौरान उनके पिता को मार दिया गया था. शेख हसीना अपनी छोटी बहन के साथ भारत में करीब 6 साल तक अज्ञातवास में थी. 1996 में वापस चुनाव हुए और शेख हसीना को फिर प्रधानमंत्री बना दिया. 2009 से लगातार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रही शेख हसीना को मजबूरन अपना पद 2024 में छोड़ना पड़ा. सूत्रों की माने तो शेख हसीना अपने हेलीकॉपटर से गाज़ियाबाद के हिंडन एयरपोर्ट पर लैन्ड हुई है और यहाँ से वह लंदन जा सकती है. पिछले दो महीनों से चल रहे दंगों में अभी तक 280 लोगों की मौत हो चूँकि है.
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क्या था विवाद का मुद्दा National Reservation Policy?
1971 में आजादी की लड़ाई लड़ रहे बांग्लादेशी जवान और आम जनता जिनकी मौत हुई थी, वहाँ की सरकार ने उन्हें रेज़र्वैशन देने का वादा किया था. हालांकि यह पॉलिसी पढ़ने वाले बच्चों में बहुत लोकप्रिय नहीं थी. लोगों का कहना था कि वह रेज़र्वैशन पॉलिसी सिर्फ आवामी लीग के समर्थकों की लिए ही थी. चल रहे दंगों के बीच शेख हसीना की सरकार ने बहुत बुरी तरीके से वहाँ के दंगों को संभाला. वहाँ पर लोगों का दावा है कि आवामी लीग के समर्थकों ने और सरकार की सिक्युरिटी फोर्सेस से वहाँ के लोगों के साथ बदसलूकी भी की जिसके कारण जनता के अंदर सरकार के खिलाफ उबाल बढ़ता चला गया.
दंगों को खत्म करने के लिए कई चरणों में शेख हसीना ने देश में इंटरनेट सुविधाओं को भी बंद किया था.
ना नौकरी, ना सुविधा: उठता चल गया शेख हसीना से भरोसा
बांग्लादेश की बेटी शेख हसीना के पिता देश के पहले राष्ट्रपति थे. 2009 से प्रधानमंत्री पद पर विराजमान शेख हसीना की सरकार के खिलाफ लगतार आग बढ़ती जा रही थी. पिछले कई सालों से देश में बढ़ते आक्रोश पर शेख हसीना का ध्यान था लेकिन उसे अक्सर अनदेखा कर दिया जा रहा था. देश में लगातार बेरोजगारी बढ़ती जा रही थी, और ऐसा लग रहा था की देश की अर्थव्यवस्था कमज़ोर पड़ रही है. सिर्फ आक्रोश ही नहीं बल्कि 2024 के चुनाव में हसीना की पार्टी बहुत मेहनत से जीती और जीत का अंतर इस बार बेहद कम था.
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चलते आक्रोश को संभालना हो रहा था कठिन
सरकार के प्रति बढ़ते आक्रोश को संभालना हसीना की सरकार के लिए कठिन होता जा रहा था. लोगों के अंदर सरकार के खिलाफ लौ जल उठी थी और मुद्दे लगातार बढ़ते जा रहे थे. पिछले रविवार को इन्ही दंगो में बांगलादेश के 90 सिविल्यन की मौत से पूरा प्रशासन और वहां के लोग दहल चूकें थे. बढ़ते आक्रोश को देखते हुए सरकार ने यह भांप लिया था कि अब इन दंगों की वजह से उनकी कुर्सी मुश्किल में आ सकती है.
इन्ही दंगों को देखते हुए बांग्लादेश के आर्मी चीफ ने शेख हसीना को 45 मिनट का अल्टिमेटम दिया जिसके बाद ही उन्होंने अपने पद से रिजाइन किया और भारत की ओर रवाना हो गई. शेख हसीना ने अपनी बहन के साथ मात्र 45 मिनट में देश छोड़ दिया था.
बांग्लादेश के आर्मी चीफ वकर-उज़-ज़मान ने वहाँ के लोगों से शांत व्यवस्था बनाने का आग्रह किया. वहाँ के लोगों ने शेख हसीना के इस्तीफे को बताया एतिहासिक. बांग्लादेश की आर्मी अब बनाएगी इनटेरिम सरकार.
भारत के लिए हसीना के इस्तीफे के क्या हैं मायने
हसीना भारत की अच्छी पार्टनर के रूप में साबित हो रही थी. अर्थव्यवस्था से लेकर आतंकवाद तक भारत और बांग्लादेश की सरकार एक ही पन्ने पर चल रही थी यानि दोनों के बीच समझौतों की बयार अच्छे रास्ते पकड़ रही थी. इंडिया ने भी बांग्लादेश की सरकार पर भरोसा करना शुरू कर दिया था. यही नहीं बल्कि बांग्लादेश में हसीना की पार्टी आवामी लीग की Pro-Indian छवि बनती जा रही थी.
हसीना के कार्यकाल में भारत ने बांग्लादेश में कई प्रोजेक्ट किए, और कई ऐसे भी है जो अभी भी वहाँ चल रहे है. दोनों देश रेल, रोड, एनर्जी के सेगमेंट मेँ काम कर रहे है. टेरिटोरी और पानी को लेकर चल रहे प्रॉब्लेम में इस बार शेख हसीना के साथ बात चीत में वह मुद्दे भी सुलझा लिए गए थे. लेकिन अब सवाल इस बात का है कि आखिर आने वाली सरकार क्या भारत के साथ पुराने रिश्तों को संभालेगी या नहीं…
बांगलादेश में तख्तापलट, क्या इंडिया की बढ़ेगी परेशानियाँ
इंडिया और बांग्लादेश के रीलैशन बीतें सालों में सुधरे है. हालांकि जब शेख हसीना का इस्तीफा आया तब इंडिया उस एक्शन को कैसे देखता है यह जानना जरूरी है. हसीना की पार्टी के बाद बांग्लादेश की सबसे बड़ी पार्टी Bangladesh Nationalist Party के साथ भारत के रिश्ते उतने अच्छे नहीं है. Bangladesh Nationalist Party जब सत्ता में थी तभी भारत ने ULFA द्वारा बढ़ते आतंकवाद पर मदद मांगी थी. इस मामले में बीएनपी ने इंडिया की मदद करने से इनकार कर दिया था. बीएनपी के संबंध पाकिस्तान और चीन के साथ बहुत अच्छे है जिससे भारत के लिए खतरे प्रतीत होते है.
बीएनपी का सत्ता में आना इंडिया के लिए खतरनाक साबित हो सकता है. इंडिया ने हमेशा से शेख हसीना को सपोर्ट किया है चाहे वह इंदिरा सरकार हो या मोदी सरकार, ऐसे मे जब तख्तापलट हुआ तब इंडिया के लिए अब बांग्लादेश के सामने स्टैन्ड ले पान मुश्किल साबित हो सकता है.
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