रामनगर की लीलाः सीता को कुटिया में देख व्याकुल हुए राजा जनक…
वाराणसीः रामनगर की प्रसिद्ध रामलीला में चित्रकूट में श्रीराम को मनाने के लिए गुरु वशिष्ठ की मौजूदगी में हुई पंचायत को देखकर देवता दुविधा में पड़ गए. जब भरत ने श्रीराम से अपने मन की बात कही तो देवता दुविधा में पड़कर घबरा पड़े. गुरु वशिष्ठ ने भरत को बुलाकर कहा कि श्रीराम जैसे अयोध्या वापस लौटे वही उपाय समझकर करना चाहिए. इस पर भरत ने उनसे कहा कि आप हमसे उपाय पूछ रहे हैं.
गुरु वशिष्ठ भरत से राम के साथ वन जाने तथा लक्ष्मण और सीता को अयोध्या वापस लौटने का उपाय बताते हैं. इसे सुनकर भरत इसे अपना सौभाग्य समझने लगे. सभी राम के पास गए तो गुरु वशिष्ठ ने श्रीराम से कहा कि भरत की बात सुनकर विचार करिए जिस पर राम तैयार हो गए.
हम तीनों भाई आपके बदले में वन चले जाएंगे
गुरु वशिष्ठ ने भरत से संकोच छोड़कर अपनी बात कहने को कहा. भरत अपनी माता की करनी पर ग्लानि करने लगे तो श्रीराम ने उन्हें समझाया. इसके बाद भरत ने श्रीराम से कहा कि राजतिलक की सब सामग्री साथ लाया हूं इसे आप सफल किजिए. मैं लक्ष्मण,शत्रुघ्न को वापस लौटाकर आपके साथ वन चलूंगा. अगर यह बात ठीक न लगे तो आप सीता के साथ लौट जाइए हम तीनों भाई आपके बदले में वन चले जाएंगे. आप वही कीजिए जिससे आप प्रसन्न हो सके. यह सुनकर सभी देवता दुविधा में पड़ गए.
राजा जनक ने सुनाई भरत की महिमा
इसी दौरान दूत ने गुरु वशिष्ठ को बताया कि जनक जी आए हैं. जनक जी श्रीराम और सीता को कुटिया में देखकर व्याकुल हो उठे. यह देखकर गुरु वशिष्ठ ने उन्हें समझाया. राजा जनक की पत्नी सुनयना तीनों रानियों से मिलने लगी. सुनयना ने अपनी पुत्री सीता को गले लगा लिया. जनक जी राम और भरत की महिमा सुनयना को सुनाने लगे. इतने में रात हो गई यहीं पर भगवान की आरती के बाद लीला को विश्राम दिया गया .