कौरवों के लाक्षागृह में छिपे रहस्यों की खोज शुरु

महाभारतकालीन बरनावा लाक्षागृह में छिपे रहस्यों का पता लगाने के लिए बुधवार को उत्खनन कार्य मंत्रोच्चार के साथ प्रारंभ किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की शाखा द्वितीय लाल किला व भारतीय पुरातत्व संस्थान, नई दिल्ली के अधिकारियों ने तमाम औपचारिकताएं पूरी कर उत्खनन कार्य प्रारंभ कराया। छह माह तक उत्खनन कार्य चलने की संभावना है।

ट्रेंच पर खोदाई करने के तरीके बताए

बरनावा में उद्घाटन समारोह के अवसर पर भारतीय पुरातत्व संस्थान लाल किला नई दिल्ली के निदेशक डॉ. संजय मंजुल व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण उत्खनन शाखा द्वितीय की डायरेक्टर डॉ. अरविन मंजुल उपस्थित रहीं। उन्होंने पुरातत्व विभाग के सभी कर्मचारियों और शोध छात्रों को लाक्षागृह की भौगोलिक स्थिति बताई और लगाए गए ट्रेंच पर खोदाई करने के तरीके बताए।

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भूमि पूजन के बाद डॉ. संजय मंजुल और डॉ.अरविन मंजुल ने कुदाल व अन्य औजारों से उत्खनन प्रारंभ किया। पूर्व मंत्री ओमवीर तोमर, शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन और वरिष्ठ इतिहासकार डा. कृष्णकांत शर्मा ने भी कुदाल से शुभारंभ कराया। इस दौरान बरनावा गांव के प्रधान जहीर ने अधिकारियों को ज्ञापन भी दिया। उन्होंने बताया कि लाक्षागृह पर संत बदरुद्दीन महाराज की मजार है। वहां अन्य मजार भी हैं, लेकिन वर्तमान में वहां गंदगी पसरी है और देखरेख का अभाव है। मजारों का जीर्णोद्धार कराया जाए।

जानें लाक्षागृह की कहानी

लाक्षागृह कौरवों ने षड्यंत्र के तहत पांडवों के ठहरने के लिए बनाया था ताकि उन्हें मारा जा सके। यह लाख निर्मित भवन था। लाख आसानी से आग पकड़ने वाल पदार्थ है। यह वार्णावत यानी मौजूदा नाम बरनावा में था। पांडवों को पड्यंत्र का पता चल गया और वह सकुशल भवन से बच निकले। लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार हस्तिनापुर पहुँचने पर पांडवों को मरा समझ कर प्रजा अत्यन्त दुःखी हुई। दुर्योधन और धृतराष्ट्र सहित सभी कौरवों ने शोक मनाया और अन्त्येष्टि भी करवा दी।

दैनिक जागरण

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