जलियांवाला बाग: यह कहानी तब की है जब मद्रास में अंग्रजों का राज चलता था. तब साल 1885 में एक मलयाली परिवार के चेट्टूर शंकर नायर ने मद्रास हाईकोर्ट में वकालत शुरू की. तब उन्होंने अपने देश की प्रति सम्मान के चलते अंग्रेजों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना ठीक समझा. वहीँ, 1884 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मालाबार जिले की जांच के लिए एक समिति का सदस्य बनाया. 1908 तक वे सरकार के एडवोकेट-जनरल रहे.कहा जाता है कि उसके बाद एक खौफनाक घटना घटी और नायर की जिंदगी बदल गई.
आइए जानते हैं उनकी कहानी के बारे में…
केसरी चैप्टर-2 में नायर की कहानी…
बता दें कि, सर चेट्टूर शंकरन नायर एक वकील, जज और राजनेता थे. 1857 में जन्मे नायर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने वायसराय की परिषद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने “गांधी एंड एनार्की” नामक एक किताब भी लिखी. करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शंस उनके जीवन पर ‘केसरी चैप्टर 2’ नामक एक फिल्म बना रहा है, जो 18 अप्रैल 2025 को रिलीज होगी. अक्षय कुमार इस फिल्म में नायर के किरदार में हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि नायर ने कैसे भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन और ब्रिटिश सरकार दोनों का विरोध किया.
हिंदू धर्म में धर्मांतरण को ठहराया जायज
शंकरन नायर ने एक महत्वपूर्ण फैसले में हिंदू धर्म में धर्मांतरण को सही ठहराया. उन्होंने कहा कि ऐसे धर्मांतरित लोगों को समाज से बाहर नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में परिवर्तन करने वाले लोग अब अछूत नहीं माने जाएंगे. उनका ये फैसला बहुत मशहूर हुआ. उन्होंने मद्रास रिव्यू और मद्रास लॉ जर्नल की शुरुआत की और उनका संपादन भी किया.
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नायर को ब्रिटिश सरकार ने दी नाइट उपाधि…
1902 में वायसराय लॉर्ड कर्जन ने उन्हें रैले विश्वविद्यालय आयोग का सचिव नियुक्त किया. 1904 में नायर को ब्रिटिश सम्राट द्वारा उन्हें साम्राज्य का साथी बनाया गया. 1912 में उन्हें नाइट की उपाधि दी गई. 1915 में वे शिक्षा विभाग के प्रभारी के रूप में वायसराय की परिषद के सदस्य बने. 1919 में उन्होंने भारतीय संवैधानिक सुधारों पर दो असहमतिपूर्ण टिप्पणियां लिखीं, जिसमें उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन की कमियों को बताया और सुधारों के सुझाव दिए. उस समय, किसी भारतीय द्वारा ऐसी आलोचना करना बहुत बड़ी बात थी. ब्रिटिश सरकार ने उनकी कई सिफारिशों को मान लिया.
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जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में दिया इस्तीफा
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ. यह ब्रिटेन के माथे पर एक दाग की तरह है. इस घटना के विरोध में नायर ने वायसराय की परिषद से इस्तीफा दे दिया. बाद में, वे भारत के लिए सचिव के सलाहकार बने (लंदन में, 1920-21). वे भारतीय राज्य परिषद के सदस्य भी रहे. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रिय रूप से हिस्सा लिया.