लखनऊ: बनना था दुनिया का 8वां अजूबा और बन गई सबसे मनहूस, जानिये इस इमारत का पूरा इतिहास
नवाबों का शहर कही जाने वाली उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में वैसे तो कई ऐसी इमारतें बनी हैं, जिसे देखने के लिए देश-विदेश के बहुत पर्यटक आते हैं. लेकिन, आपको पता है कि यहां एक ऐसी भी इमारत है, जिसे पर्यटकों के लिए आज तक खोला ही नहीं गया. साथ ही शहर की सबसे बड़ी इमारत को मनहूस होने का दर्जा प्राप्त है. बता दें इस इमारत को दुनिया का 8वां अजूबा बनना था. जानिए पूरी कहानी…
दरअसल, इस इमारत का नाम है सतखंडा, जो हुसैनाबाद में घंटाघर और पिक्चर गैलरी के ठीक बीचोंबीच बनी हुई है. यह इमारत देखने में बेहद आकर्षिक है और कई एकड़ में फैली हुई है. सतखंडा को अवध के तीसरे बादशाह मुहम्मद अली शाह ने वर्ष 1842 में बनवाया था. बादशाह ने सत्ता 8 जुलाई, 1837 में संभाली थी. उनका सपना था कि लखनऊ में एक ऐसी इमारत बने, जो कि शहर की सबसे ऊंची इमारत हो, ताकि पूरे लखनऊ को निहारा जा सके.
इतना ही नहीं, बादशाह मुहम्मद अली शाह का ये ख्वाब भी था कि इस इमारत को दुनिया के आठवें अजूबे का खिताब मिले. इसे इमारत को तेज रफ्तार से बनाने का काम किया जा रहा था, इसी बीच बादशाह का इंतकाल हो गया. इसके बाद इस इमारत को अधूरा ही छोड़ दिया गया और इस पर ताला लटका दिया गया.
इस इमारत की खूबी यह है कि इसकी हर मंजिल पर कोण बदल गए हैं और मेहराबों की बनावट भी बदल गई है. उन्होंने कई खूबसूरत इमारतें बनवाईं लेकिन अफसोस कि वह सतखंडा को बने हुए नहीं देख सके. नवाब नौखंडा पैलेस, जुम्मा मस्जिद और बारादरी भी नहीं देख पाए थे. नवाबी दस्तूर था कि जिस इमारत को बनवाने वाला बीच में मर जाता था तो उसे मनहूस करार देकर उसे ज्यों का त्यों ही छोड़ दिया जाता था. यही वजह है कि आज तक इस इमारत को किसी ने हाथ नहीं लगाया और न किसी ने सतखंडा को बनाने की सोची.
मशहूर इतिहासकार रवि भट्ट के मुताबिक, सतखंडा की हिस्ट्री और मिस्ट्री दोनों ही दिलचस्प हैं. कुछ इतिहासकार बताते हैं कि इसे नौखंडा बनना था. ऐसे में अगर इसे नौखंडा और दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बनना था तो यह इमारत 9 मंजिला होती. ऐसे में इसे सतखंडा नाम क्यों दिया गया.
रवि भट्ट ने कहा यह बात बहुत से इतिहासकारों ने कही है कि बादशाह की मृत्यु के बाद इसे मनहूस मानकर इसका काम बीच में रोक दिया गया था. इसे किसी ने पूरा नहीं किया. यह चार मंजिला अधूरी इमारत है, लेकिन इसे प्रमाणित करना थोड़ा मुश्किल है.
भले ही यह इमारत आज खंडहर में तब्दील हो रही हो, लेकिन इसकी खूबसूरती के मायने कहीं से भी कम नजर नहीं आते.