Kissa EVM ka: भारत किन – किन देशों में करता है ईवीएम का निर्यात ?

0

Kissa EVM ka: दौर चुनावी है, जिसमें दो चरण पार भी हो चुके हैं. इन सबके बीच चुनाव का मूल आधार ईवीएम हमेशा से ही सियासत में विवाद और बहस का मुद्दा रहा है. विपक्ष हमेशा से ही अपनी हार का ठिकरा ईवीएम पर फोड़ता रहता है. ऐसे में चुनाव में ईवीएम की चर्चा हो या न हो लेकिन मतगणना के बाद इसकी चर्चा जोरों से शुरू हो जाती है.

ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि करोड़ों मतदाताओं की मत शक्ति के तौर पर प्रयोग होने वाली ईवीएम का इतिहास क्या रहा, क्यों इसकी जरूरत पड़ी, कैसे मतपत्र से बेहतर है ईवीएम. ऐसे न जाने कितने ही सवाल हैं जो ईवीएम को लेकर लोगों के मन में उठते होंगे ? यदि आप के मन भी इस तरह के कई सवाल रहते हैं तो यह सीरीज आपके इन सभी सवालों का जवाब बनने वाली है क्योंकि, इस सीरिज में हम बात करने जा रहे ईवीएम निर्माण से लेकर अब तक के सफर के बारे में… इस सीरिज के नौवें और अंतिम एपिसोड में हम जानेंगे भारत किन – किन देशों में करता है ईवीएम का निर्यात और ईवीएम के फायदे ?

पांच से अधिक देशों को भारत करता है निर्यात

कल के एपिसोड में हमने जाना था कि, ईवीएम के निर्माण में आखिर कितनी लागत लगती है, इसके अलावा ईवीएम को लेकर एक दिलचस्प बात यह भी है कि, भारत में न सिर्फ स्वनिर्मित ईवीएम मशीन का प्रयोग होता है, बल्कि भारत बड़ी संख्या में बाहरी देशों को इसका निर्यात भी करता है. हालांकि, ईवीएम को लेकर विदेश में कई प्रकार के रूझान देखने को मिलते हैं, जिसमें यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे देश समय के साथ ईवीएम से दूरी बनाते जा रहे हैं, वही दक्षिणी अमेरिका और एशिया में बड़ी संख्या में लोग इसमें रूचि लेते नजर आते हैं.

ऐसे में यदि आंकड़े उठाकर देखें तो, कुल 31 देशो में ईवीएम का इस्तेमाल किया जाता है, जिनमें से चार ऐसे देश है जिनमें पूरे देश में ईवीएम का प्रयोग किया जाता है, 11 देशों ने EVM का उपयोग देश के कुछ हिस्सों या कम महत्वपूर्ण चुनावों में किया है, 3 देशों (जर्मनी, नीदरलैंड और पुर्तगाल) ने इसका उपयोग पायलट प्रोजेक्ट के रूप में किया है और 11 देशों ने इसका उपयोग बंद कर दिया है.इसके साथ ही भारत ने जॉर्डन, मालदीव, नामीबिया, मिस्र, भूटान, नेपाल और मिस्र को EVM से संबंधित तकनीकी सहायता दी है. भूटान, नेपाल और नामीबिया भारत द्वारा निर्मित इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग कर रहे हैं. वही ब्राजील, भारत और फिलीपींस विश्व के कुछ सबसे बड़े लोकतंत्रों में जिसमें ईवीएम का प्रयोग किया जाता है.

मतदान के समय लगने वाली काली स्याही का इतिहास

भारत में लोकतांत्रिक सिद्धांतों का प्रतीक एक उंगली पर चुनावी स्याही का निशान है, चुनावों में दोहराव को रोकने के लिए भारत और अन्य देशों में अमिट चुनाव स्याही का उपयोग किया जाता है.फर्जी मतदान को रोकने के लिए मतदाता की उंगली पर स्याही लगाई जाती है. यह लक्षण लगभग एक महीने तक रहता है. मतदान के समय प्रयोग की जाने वाली स्याही को साल 1937 में मैसूर के महाराजा नालवाडी कृष्णराज वाडियार ने मैसूर लैक एंड पेंट्स लिमिटेड कंपनी में बनवाया था, लेकिन इसका पहला उपयोग 56 साल पहले 1962 के चुनाव में हुआ था.

Also Read: Varanasi: बनियां को चोर कहने वाले राहुल गांधी का मानसिक संतुलन बिगड़ा

EVM के क्या है फायदे

-ईवीएम मतदान को आसान बनाती हैं, मतदाता केवल एक बटन दबाकर वोट दे सकते हैं. इन मशीनों को बड़े-बड़े बैलेट बॉक्स की तुलना में आसानी से स्थानांतरित किया जा सकता है.

-बैलेट पेपर मतदान में बहुत अधिक कागज खर्च होता था, जिसमें पेड़ों पर अप्रत्यक्ष रूप से असर पड़ा था. ईवीएम का उपयोग चुनाव के दौरान कागज की बर्बादी को कम करने के कारण पर्यावरणीय दृष्टि से भी फायदेमंद है.

-ईवीएम मशीन में बैलेट पेपर से कम खर्चीला होता है, यह मशीनें बैटरी से चलती हैं, इसलिए बिजली की लागत कम होती है.

-इन उपकरणों से मतगणना तेज और सरल होती है, मैन्युअल गिनती कई दिनों ले लेती है, लेकिन ईवीएम से चुनाव परिणाम कुछ घंटों में आते हैं.

 

 

 

 

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More