Kissa EVM ka: जानें ईवीएम के निर्माण में कितनी आती है लागत ?

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Kissa EVM ka: दौर चुनावी है, जिसमें दो चरण पार भी हो चुके हैं. इन सबके बीच चुनाव का मूल आधार ईवीएम हमेशा से ही सियासत में विवाद और बहस का मुद्दा रहा है. विपक्ष हमेशा से ही अपनी हार का ठिकरा ईवीएम पर फोड़ता रहता है. ऐसे में चुनाव में ईवीएम की चर्चा हो या न हो लेकिन मतगणना के बाद इसकी चर्चा जोरों से शुरू हो जाती है.

ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि करोड़ों मतदाताओं की मत शक्ति के तौर पर प्रयोग होने वाली ईवीएम का इतिहास क्या रहा, क्यों इसकी जरूरत पड़ी, कैसे मतपत्र से बेहतर है ईवीएम. ऐसे न जाने कितने ही सवाल हैं जो ईवीएम को लेकर लोगों के मन में उठते होंगे ? यदि आप के मन भी इस तरह के कई सवाल रहते हैं तो यह सीरीज आपके इन सभी सवालों का जवाब बनने वाली है क्योंकि, इस सीरिज में हम बात करने जा रहे ईवीएम निर्माण से लेकर अब तक के सफर के बारे में… इस सीरिज के आठवें एपिसोड में हम जानेंगे ईवीएम के निर्माण में कितनी आती है लागत और खर्च ?

EVM की क्या होती है कीमत ?

कल के एपिसोड में हमने आपको बताया था कि, भारत में वो कौन सी कंपनियां है जो ईवीएम को बनाने का काम करती है. इसके साथ ही आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि, ईवीएम के तीनों हिस्सों के साथ वीवीपैट के निर्माण कार्य में कितना खर्चा आता है और हमारे देश में ईवीएम की कीमत आखिर कितनी होती है.

वर्तमान में भारत में EVM के दो संस्करण हैं: M2 EVM और M3 EVM. M2 ईवीएम जो 2006 और 2010 के बीच बनाया गया था. प्रति ईवीएम रु.8670/- (बैलटिंग और कंट्रोल यूनिट सहित) की लागत लगती है. इसके अलावा M3 EVM में प्रति यूनिट लगभग 17,000 की लागत लगी है. कुछ लोगों को लगता है कि EVM मशीन महँगी है, लेकिन यह सच नहीं है क्योंकि बैलट पेपर पर होने वाले खर्चों (जैसे छपाई, परिवहन, मतगणना कर्मचारियों के वेतन और मतपत्रों के भंडारण) को जोड़कर EVM की कीमत बहुत कम हो जाती है.

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आलोचक करते है ये दावा 

हालाँकि, आलोचकों का कहना है कि चुनावों के बाद ईवीएम को स्टोर करके उनकी निरंतर तकनीकी निगरानी करना बहुत महंगा होता है, लेकिन चुनाव आयोग का कहना है कि, भले ही शुरुआती निवेश कुछ अधिक हो, लेकिन हर चुनाव में लाखों मतपत्र छापने, ढोने और स्टोर करने में होने वाले खर्च से बचत होती है.चुनाव आयोग ने कहा कि मतगणना के लिए अधिक कर्मचारियों की आवश्यकता नहीं होती और उनके पारिश्रमिक में कमी से निवेश की तुलना में कहीं अधिक भरपाई होती है.

 

 

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