एक अनोखी पूजा, जब जन्म और मृत्यु भी हो जाते हैं प्रतिबंधित
त्रिपुरा में सदियों से एक ऐसी पूजा का चली आ रही है, जिसके शुरु होने पर जन्म और मृत्यु पर भी प्रतिबंध रहता है। केर पूजा स्वतंत्रता के पहले से की जाती रही है। उस समय के तात्कालिक राजा के द्वारा यह पूजा संपन्न करवाई जाती थी और वह इस पूजा का पूरा खर्च वहन करते थे।
इसके बाद जब त्रिपुरा भारत से जुड़ा तो यह निर्धारित हुआ कि जो भी सरकार इस राज्य में आएगी वह इस पूजा का खर्च वहन करेगी। फिलहाल त्रिपुरा की राज्य सरकार इस पूजा का खर्ज उठाती है।
केर पूजा लगातार 31 घंटे तक चलती है। इस पूजा की विशेषता यह भी है कि इस दौरान जन्म और मृत्यु पर भी प्रतिबंध रहता है। इस पूजा के कुछ और अनोखे नियम हैं जो इसे खास बनाते हैं।
Also read : लुप्त होने की कगार पर ‘मंथनी गांव’ का गोमतेश्वर मंदिर
केर का अर्थ इस पूजा का उद्देश्य बुरी आत्माओं और राक्षसों को दूर करना होता है। यह पूजा रात के वक्त शुरू की जाती है और यह निश्चित किया जाता है कि पूजा के दौरान न तो किसी का जन्म हो न ही किसी की मृत्यु हो। पूजा के दौरान ऐसा होना प्रतिबंधित है, नहीं तो केर पूजा खंडित मानी जाती है।
इसी के चलते पूजा के स्थान के आसपास से गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों को कहीं और भेज दिया जाता है। यह पूजा पुराने समय में अगरतला के राजवड़ी हवेली में की जाती थी। अब यह पूजा अगरतला की पुरानी हवेली पर आयोजित की जाती है।
(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)