कश्मीरी युवाओं की सोच अलग, मीडिया में कोई आवाज नहीं
मीडिया में प्रचलित धारणाओं से उलट कश्मीरी युवाओं की कोई एक सोच, कोई एक ही आवाज नहीं है। मीडिया से आने वाली आवाज ऐसा आभास देती है कि कश्मीर की युवा आबादी भारत विरोधी और पाकिस्तान समर्थक है। लेकिन, सच यह है कि यह असंख्य आवाजों का मिश्रण है। इसमें गुस्सा है, निराशा है, मायूसी और नफरत है और इन सभी के साथ उम्मीद भरी आवाजें भी हैं, युवा सपनों और आकांक्षाओं से भरपूर।
आईईएफ आंत्रप्रेन्योरशिप फाउंडेशन की कार्यक्रम प्रमुख इंशा मीर जैसों की अपनी अलग सोच है। यह अब इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि कश्मीर का मुद्दा कभी भी सुलझाया नहीं जा सकेगा और युवाओं को इस विवाद के बीच जीने के लिए अब एक वैकल्पिक योजना (प्लान बी) की जरूरत है।
इनके साथ ही, सांस्कृतिक क्षेत्र में सक्रिय सैयद मुजतबा रिजवी जैसे लोग हैं जो जम्मू एवं कश्मीर प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार से आजिज आ चुके हैं। यह इंटरनेट को बार-बार बंद किए जाने से भी परेशान हैं जो युवा उद्यमियों को कश्मीर से बाहर ढकेल रहा है या फिर उन्हें अपने जीवन में कुछ नया नहीं करने दे रहा है।
भारतीय उद्योग परिसंघ के ‘इंटरनेशनल इंगेजमेंट्स, यंग इंडियन्स’ की सह प्रमुख शाजिया बख्शी जैसी आवाजें भी हैं जो खुद को पहले भारतीय मानती हैं, कश्मीरी और मुसलमान बाद में। शाजिया पूछती हैं कि आखिर क्यों उन्हें हर मंच पर बार-बार अपनी भारतीयता का प्रमाण देना पड़ता है?
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जम्मू एवं कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 पर देश में चल रही बहस के बीच कश्मीर में समीर यासिर जैसे पत्रकार भी हैं जो कहते हैं कि कश्मीरी युवा निर्भीक हैं जिन्हें मौत का डर नहीं सताता और जो इस बात की परवाह नहीं करते कि इस अनुच्छेद का क्या हश्र होने वाला है।
और, वकील शेख सज्जाद जैसे लोगों की आवाजें भी हैं जिनका मानना है कि कश्मीरी युवाओं को भारतीय राज्य और उनके अपने नेतृत्व, दोनों ने छला है। जिनका मानना है कि नई दिल्ली को आत्मचिंतन करना चाहिए कि उसके समाज में क्या हो रहा है, नहीं तो वह कश्मीर को पूरी तरह खो बैठेगी।
यह वे आवाजें हैं जो राष्ट्रीय राजधानी में शुक्रवार और शनिवार को ‘अंडरस्टैंडिंग कश्मीर कांक्लेव’ में सुनाई दीं। और, निश्चित ही कश्मीर से आ रही हैं सैन्य वाहनों पर फेंके जाने वाले पत्थरों की आवाजें, गोलीबारी, जाकिर मूसा और बुरहान वानी जैसे लड़कों की जंग की आवाजें और बेटे-बेटियों, भाइयों-बहनों की सिसकियों और विलाप की आवाजें..वो आवाजें जिनसे शेष भारत अधिक परिचित है।
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शाजिया बख्शी का कहना है कि मूसा और वानी कश्मीरी युवाओं के रोल मॉडल नहीं हैं क्योंकि ‘कोई भी जो बंदूक उठाता हो, रोल मॉडल नहीं हो सकता।’ शाजिया ने पूछा, “इन लोगों को प्रासंगिक बनाने वाला कौन है? वास्तविक सवाल है कि बुरहान वानी को किसने बनाया? मेरा भारतीय सिस्टम क्यों फेल हो गया जिससे बुरहान पैदा हुआ? इस सवाल का जवाब खोजिए, कश्मीर मसले का हल मिल जाएगा।”
उन्होंने कहा, “कश्मीर के युवा को एक कोने में ढकेल दिया गया है। उनके लिए कोई स्वीकृति नहीं है..हमें दिन-रात मीडिया चैनलों पर बुरा-भला कहना बंद कीजिए जहां हमें सभी के सामने खुद को साबित करना पड़ता है।”
शाजिया ने कहा कि कश्मीरी युवाओं को कुछ ऐसा देने की जरूरत है जिसे खोने का उन्हें डर हो। उन्होंने कहा, “उन्हें प्रतिष्ठा और सम्मान दीजिए, उन्हें रोजगार दीजिए, उन्हें जीने की वजह दीजिए..न कि मरने की।”
भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से त्रस्त सैयद मुजतबा रिजवी ने कहा कि समस्या कुप्रबंधन की है। साथ ही उन्होंने कहा कि कश्मीर से कला के क्षेत्र में कुछ बेहतरीन सामने आ रहा है लेकिन जिसे टीवी समाचार चैनलों में किनारे लगा दिया गया है।
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समीर यासिर ने कहा कि भारत को समझने में कश्मीरी युवाओं की सोच में बहुत बड़ा बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि ‘बीते 70 सालों में किए गए काम को बीते एक साल में दो-तीन समाचार चैनलों ने मिट्टी में मिला दिया है।’
यासिर ने कहा, “युवा कश्मीरी अब आतंकियों को पसंद करते हैं, उनकी तस्वीर अपने फोन में रखते हैं। ऐसा क्यों हुआ? मीडिया ने इस नफरत को पैदा करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।” शेख सज्जाद ने कहा कि कश्मीर में बढ़ रहे चरमपंथ की प्रकृति राजनैतिक है, धार्मिक नहीं। भारत को यह खुद सोचना होगा कि उसके समाज में क्या हो रहा है।
उन्होंने कहा, “कश्मीरी लड़के पूरे भारत में कालेजों में पढ़ रहे हैं। जब वे वापस लौटते हैं, तो पहले के मुकाबले अधिक कट्टर होकर लौटते हैं। ऐसा क्या हुआ जाकिर मूसा के साथ कि वह चंडीगढ़ के कालेज में पढ़ता था और जब वहां से लौटा तो हिंसा की बातें करने लगा?”
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