काशी की फिर बढ़ी शान,तिरंगा बर्फी संग ढलुवा धातु शिल्प को मिला GI टैग
Varanasi: बाबा की नगरी बनारस के नाम और रिकॉर्ड जुड़ गया है. अब देश की आजादी से जुडी तिरंगा बर्फी को एक नई पहचान मिल गई है . अब बनारस की तिरंगा बर्फी और ढलुआ धातुशिल्प की चीजों को GI टैग मिल गया है. इस टैग के बाद इन दोनों उत्पादों को भौगोलिक पहचान पहचान मिलेगी. इस तरह प्रदेश में अब कुल 75 उत्पाद जबकि बनारस के 34 उत्पाद को जीआई टैग मिल चुका है.
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चेन्नई की कंपनी ने जारी की अधिसूचना
गौरतलब है कि नवरात्रि में चेन्नई की वेबसाइट पर काशी की तिरंगा बर्फी और ढलुआ धातुशिल्प को टैग देने की अधिसूचना जारी कर दी गई है. काशी के इन दो उत्पादों को GI टैग मिलने के बाद यहाँ पर कुल GI टैग उत्पादों की संख्या करीब तीन दर्जन हो गई है. इतना ही नहीं इसी के साथ बनारस सबसे ज्यादा GI टैग पाने वाला जिला बन गया है.
इनको भी मिला GI टैग का तमका..
गौरतलब है कि काशी की तिरंगा बर्फी के साथ बरेली की जरदोजी, केन-बंबू क्राफ्ट, थारू इंब्रायडरी, पिलखुआ हैंडब्लाक प्रिंट टेक्सटाइल को भी पहचान दी गई है. इन्ही के साथ अब प्रदेश में अपनी पहचान के लिए जाने जाने वाले उत्पादों की संख्या 75 हो गई है. इसमें 58 हाथ से बने और 17 खाद्य एवं कृषि उत्पाद हैं. यह किसी प्रदेश के नाम सर्वाधिक जीआइ टैग का रिकार्ड है.
बनारस को मिली नई पहचान..
बनारस के मशहूर GI टैग विशेषज्ञ डा. रजनीकांत ने बताया कि आज से 10 साल पहले वाराणसी में केवल दो ही उत्पाद भगौलिक पहचान में शामिल थे .लेकिन इसके बाद वाराणसी को नई पहचान मिली है और अब कुल 34 उत्पादों को भौगोलिक पहचान हासिल हुई है.
तिरंगी बर्फी..
बताया जाता है कि आजादी के आन्दोलन में क्रान्तिकारियों की खुफिया बैठकों एवं गुप्त सूचनाओं केे लिए इसका इजाद हुआ जो आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य धारा में अलख जगाने लगा. इसमें केसरिया रंग के लिए केसर, हरे रंग के लिए पिस्ता और बीच के सफेद रंग में खोए की सफेदी व काजू का प्रयोग किया जाता रहा है.
बनारस ढलुआ शिल्प
ठोस छोटी मूर्तियां जिसमें मां अन्नपूर्णा, लक्ष्मी-गणेश, दुर्गाजी, हनुमानजी के साथ ही विभिन्न प्रकार के यंत्र, नक्सीदार घंटी-घंटा, सिंहासन, आचमनी पंचपात्र व सिक्कों की ढलाई वाले सील ख्यात रहे हैं. इसे बनारस के काशीपुरा मोहल्ले में बनाया जाता रहा है.