कारगिल युद्धः कई मायनों में खास, जाने इसका पूरा इतिहास

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भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में हमेशा खटास देखने को मिलता है, आखिर ऐसा हो भी क्यों न इसके एक नहीं बल्कि कई कारण हैं. इन्हीं एक कारणों में से एक है कारगिल युद्ध. इस युद्ध में भारत के कई जवानों ने अपनी शहादत दी थी जिसे कोई भी भारतीय कभी नहीं भूल सकता. यह दिन कई मायनों में कहीं खास व कहीं उतना ही दु:खद हो जाता है. भारत के वीर जवानों ने पाकिस्तान से कारगिल की ऊंची चोटियों को आजाद करने के लिए अपने प्राणों की आहूती देकर युद्ध को जीत लिया. यह किसी भी भारतीय के लिए एक गौरवान्वित क्षण है. इसी के साथ कारगिल युद्ध को इतिहास के पन्नों में दर्ज कर लिया गया, तो चलिए आइए जानते हैं .. कारगिल युद्ध से जुड़ी पूरी कहानी.

कारगिल युद्ध की शुरूआत व मुख्य कारण

कारगिल युद्ध 26 जुलाई 1999 को मई-जुलाई में लड़ा गया था. कहानी तब शुरू हुई जब मई की शुरुआत में भारतीय सेना को पता चला कि पाकिस्तानी लड़ाकों ने भारतीय प्रशासित क्षेत्र में घुसपैठ की है. इस घुसपैठ के जरिए पाकिस्तान के सैनिक कारगिल की चोटी पर चढ़ाई कर रहे थे, जिसे रोकने के लिए भारतीय सैनिकों ने चेतावनी दी. इसके बाद पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ भारतीय सैनिकों ने युद्ध छेड़ दिया. इस घुसपैठ के कारण दोनों पक्षों के बीच भीषण लड़ाई शुरू हो गई जो दो महीने से अधिक समय तक चली.

कारगिल की कहानी के पहले शहीद

कारगिल के दिनों की शुरूआती कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथियों के साथ शुरू होती है. जब 1999 के कारगिल युद्ध के पहले उन्हें 22 दिनों तक प्रताड़ित किया गया. इसमें उनको जलाया गया. इसके साथ-साथ क्षत-विक्षत कर उनकी आंखें और गुप्तांग काट दिए गए. उसके बाद पाकिस्तानी सेना के जवानों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.

हीरो बनकर जवान ने दी शहादत

शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को कारगिल युद्ध में एक नायक के रूप में देखा जाता है. इनका जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. युद्ध के मैदान में उनकी बहादुरी और निडरता को देखते हुए उन्हें “शेर शाह” कहा जाता था. इसी कारण से इस युद्ध का कोडनेम ‘ऑपरेशन विजय’ पड़ा था. कैप्टन ने कारगिल युद्ध में बड़ी बहादुरी के साथ लड़ते हुए शहादत हासिल की थी. विक्रम परमवीर चक्र (9 सितम्बर 1974 – 7 जुलाई 1999) भारतीय सेना के एक अधिकारी थे, जिन्हें भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर में 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान उनके कार्यों के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

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कारगिल में 527 जवानों को खोने का दर्द

मई से जुलाई 1999 तक जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले और एलओसी के साथ अन्य जगहों पर लड़ा गया था. 3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999… यह वही तारीख है जब भारत के वीर सपूतों ने जम्मू-कश्मीर के कारगिल की चोटियों से पाकिस्तानी सेना को खदेड़कर बाहर निकाला था और ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. दूसरी ओर इस युद्ध में भारत ने अपने 527 जवानों को खो दिया था, जबकि 1363 जवान घायल हुए थे. इनमें से 52 हिमाचली जवान थे. इस युद्ध में हिमाचल के वीर सपूतों को चार चक्रों से सम्मानित किया गया. इसमें कैप्टन विक्रम बतरा को मरणोपरांत, जबकि राइफलमैन संजय कुमार को सर्वोच्च गैलेंटरी पुरस्कार दिया गया.

Written BY- ऑंचल सिंह रघुवंशी 

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