महिलाओं के लिए मिसाल हैं देश की दूसरी महिला आईपीएस कंचन

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बचपन से ही हमे सिखाया जाता है कि अन्याय करने से बड़ा अपराध अन्याय सहना है। इसलिए हम जब भी कभी किसी के साथ गलत होता देखते हैं तो उसके खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करते हैं। कई बार ऐसा होता है कि हम चाहकर भी हो रहे उस अन्याय के खिलाफ कुछ नहीं कर पाते हैं, और खुद को बेसहारा समझ लेते हैं। ऐसे में हमारे अंदर की इंसानियत को इस कदर ठेस पहुंचती है, जिसे बयां करना मुश्किल हो जाता है।

हमारे समाज में आज बहुत से ऐसे लोग हैं जो बड़े पदों पर बैठे या फिर रसूखदार होने की वजह से लोगों को परेशान करते रहते हैं, लेकिन वो बेचारे कुछ नहीं कर पाते हैं क्योंकि उनके पास पैसा और पॉवर होती है जिसके आगे वो मजबूरी में नतमस्तक हो जाते हैं। इनमें से कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो इन लोगों की आवाज बनने के लिए कुछ ऐसा कर जाते हैं जो सभी के लिए आसान नहीं होता है। कुछ ऐसी ही कहानी है हमारे आज के इस किरदार की जिसने अपने पिता के साथ पुलिस द्वारा हुई ज्यादती से आहत होकर खुद एक पुलिस अधिकारी बनने का फैसला कर लिया।

देश की दूसरी महिला आईपीएस

देश की दूसरी महिला आईपीएस अधिकारी कंचन चौधरी भट्टाचार्य ने भारतीय पुलिस सेवा ज्वॉइन कर महिलाओं के लिए एक मिसाल पेश की। कंचन की पढ़ाई अमृतसर के गवर्नमेंट कॉलेज फॉर वुमन से ग्रैजुएशन की पढ़ाई करने के बाद दिल्ली की आईपी यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद साल 1973 में पहली बार सिविल सेवा की परीक्षा दी। कंचन चौधरी को उनके 33 सालों के करियर में उनको कई बार सम्मानित किया गया।

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ट्रेनिंग के दौरान 13 डकैतों को कराया था आत्मसमर्पण

कंचन चौधरी ने अपने ट्रेनिंग के दौरान उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के आसपास एक साल के अंदर 13 डकैतों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया था। साल 2004 में उत्तराखंड की पहली महिला डीजीपी बनने के बाद उन्होंने पुलिस की छवि सुधारने के लिए कहा कि या तो सुधर जाओ या फिर घर जाओ। साल 2007 में कंचन चौधरी डीजीपी के पद से रिटायर हो गईं।

रिटायर होने के बाद भी कर रही हैं समाज सेवा

कंचन चौधरी आज भी समाज सेवा की भावना दिल में लेकर समाज के लिए काम कर रही हैं। कंचन चौधरी की दो बेटिया हैं। आज महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार और शोषण को लेकर कंचन बहुत परेशान हो जाती हैं। उनका मानना है कि महिलाओं के लिए सरकार और इस समाज के द्वारा कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं जिससे उनकी सुरक्षा और समाज में एक अलग पहचान बने। कंचन चौधरी का सफर उनके अदम्य साहस और उपलब्धियों से भरा हुआ है। कंचन उन महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं जो अपने जीवन में कठिनाइयों से हारकर अपने लक्ष्य को छोड़ देती हैं और समाज के दोहरे रवैये के आगे खुद को असहाय महसूस करने लगती हैं।

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