यूपी में कोरोना की भेंट चढ़ा पत्रकार, फिर भी सोती रही सरकार…!

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प्रधानमंत्री ने कोरोना के खिलाफ जंग में पत्रकारों को कर्मवीर की संज्ञा दी। उनके सम्मान में ताली-थाली पीटने की अपील की, लेकिन उनके ही राज में एक पत्रकार कोरोना से बेमौत मर जाता है, लेकिन उसे पूछने वाला कोई नहीं है।

आप जानते हैं क्यों ? क्योंकि उसका कसूर सिर्फ इतना है कि वो एक पत्रकार है। हिंदी के प्रमुख अखबार दैनिक जागरण के आगरा संस्करण के चीफ सब एडिटर पंकज कुलश्रेष्ठ कोरोना की जंग हार गए।

पंकज की मौत, देश के उन तमाम पत्रकारों के दिलो-दिमाग पर एक दहशत छोड़ गई है, जो दिन रात जान हथेली पर लेकर कोरोना से जुड़ी एक-एक खबर लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

पंकज की तरह कोई और पत्रकार, कोरोना की भेंट ना चढ़ जाए, इसे लेकर अब आवाज उठने लगी है। अखिलेश यादव से लेकर प्रियंका गांधी ने पत्रकारों को कोरोना वॉरियर बताते हुए, सरकार से मदद की अपील की है।

सरकार को लेकर पत्रकारों में गुस्सा-

journalist pankaj

कोरोना के खिलाफ जंग में पत्रकार अहम कड़ी बनकर उभरे हैं। इस लड़ाई में जितनी शिद्दत से डॉक्टर, पुलिसकर्मी और सफाईकर्मी जुटे हैं। उतने ही मेहनत के साथ पत्रकार भी मैदान में डटे हैं। लेकिन विडंबना ये है कि पत्रकारों को पूछने वाला कोई नहीं है।

आगरा के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत, बताती है कि सरकार के लिए पत्रकारों की जान का कोई मोल नहीं है। शायद यही कारण है कि उनकी मौत के 24 घंटे बाद भी राज्य सरकार ने कोई सुध नहीं ली। राज्य सरकार की ओर से ना कोई संवेदना जताई गई और न ही किसी तरह का मुआवजा दिया गया।

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पत्रकारों ने उठाई आवाज-

राज्य सरकार के रवैये को लेकर उत्तर प्रदेश के पत्रकारों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। लखनऊ में पत्रकार संगठनों ने सरकार से पंकज के परिजनों को 50 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग की है।

[bs-quote quote=”कोई भी प्राकृतिक या मानवीय आपदा हो लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ अपनी सक्रिय भूमिका निभाता रहता है। आगरा में वरिष्ठ पत्रकार पकंज कुलश्रेष्ठ का कोरोना संक्रमण के चलते निधन हो गया। अब तक दर्जन भर से ज्यादा पत्रकार कई जगहों पर कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। डॉक्टरों, पुलिस और सफाईकर्मियों के संग संग मीडियाकर्मी भी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं, इन्हीं की वजह से जरूरी जानकारी लोगों तक पहुंचती है, पर विडंबना है कि इस चतुर्थ स्तंभ की सियासी प्रशासनिक तौर पर अनदेखी हो रही है। चंद गिनेचुने पत्रकारों को अपवाद मान लें तो ज्यादातर मीडियाकर्मी निम्न एवं मध्यमवर्ग से ताल्लुक रखते हैं। अपने परिवार की रोजीरोटी का वही एकमात्र सहारा होते हैं, उनकी मृत्यु से का भविष्य तो अँधकारमयय हो ही जाता है साथ ही खाने तक का संकट आ जाता है।” style=”style-13″ align=”center” author_name=”ज्ञानेंद्र शुक्ला” author_job=”वरिष्ठ पत्रकार ” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/05/gyanendra-shukla.jpeg”][/bs-quote]

वही इस मामले पर राजधानी लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार राजीव श्रीवास्तव ने भी ट्वीट कर पंकज के निधन पर शोक जताया। साथ ही उन्होंने पत्रकारों के हित में सरकार से मांग की।

[bs-quote quote=”मीडिया संस्थाओं को वर्क फ्रॉम होम दिया जाना चाहिए। साथ ही पत्रकारों को दी जाने वाली सुविधााओं को बढ़ाया जाए।” style=”style-13″ align=”center” author_name=”राजनाथ तिवारी” author_job=”काशी पत्रकार संघ अध्यक्ष ” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/05/rajnath-tiwari.jpeg”][/bs-quote]

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