प्रेरणा: पत्रकारिता छोड़, भूखों का भर रहे हैं पेट
संयुक्त राष्ट्र की भूख संबंधी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे अधिक 19.4 करोड़ लोग भारत में भुखमरी के शिकार हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एएफओ) ने अपनी रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड इनसिक्युरिटी इन द वर्ल्ड 2015’ में यह बात कही है। रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर यह संख्या 2014-15 में घटकर 79.5 करोड़ रह गई जो कि 1990-92 में एक अरब थी।
भूखमरी के मामले में भारत अपने पड़ोसी देश चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश और यहां तक कि दक्षिण अफ्रिकी देश इथोपिया और नाईजीरिया से भी आगे हैं। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने अपनी जनसंख्या में भोजन से वंचित रहने वाले लोगों की संख्या घटाने में महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं, लेकिन एफएओ के अनुसार अब भी भारत में 19.4 करोड़ लोग भूखे सोते हैं। भूखों का पेट भरना भारत सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है।
बेसहारों का सहारा बना ‘रोटी बैंक’
बैंक तो आप ने बहुत देखे और सुने होंगे। शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा, जिसका किसी बैंक में कोई खाता न हो, लेकिन बुंदेलखंड के महोबा जिले में एक ऐसा अनोखा बैंक खुला है जहां नोट नहीं बल्कि रोटियां गिनी जाती हैं। यहां लोग पैसा नहीं, बल्कि रोटियां जमा करने आते हैं। इस बैंक का नाम ‘रोटी बैंक’ है। इसके जरिए गरीब, बेसहारा, अनाथ और लाचार लोगों की रोटियां देकर भूख मिटाई जाती है।
पत्रकार के दिमाग की उपज है ‘रोटी बैंक’
इस दौर में कोई किसी का नहीं है, लेकिन ‘रोटी बैंक’ एक ऐसी संस्था है जो लोगों का पेट भर रही है। यह काम एक पत्रकार के दिमाग की उपज है, जिससे सैकड़ों लोगों का पेट भर रहा है। दरअसल उत्तर प्रदेश के सबसे बड़ा क्षेत्र बुंदेलखंड अकाल की मार झेल रहा है। यहां गरीबी और भूख से परेशान लोग पलायन कर रहे हैं।
दैनिक अखबार में काम करने वाले पत्रकार तारा पाटकर का ध्यान जब इस और गया तो उन्होंने पत्रकारिता को छोड़ जरूरतमंद लोगों तक रोटी पहुंचाने का फैसला लिया। भूख से आजादी के लिए सामूहिक जिम्मेदारी से बुंदेलखंड इलाके के महोबा जिले में शुरू किए गए ‘रोटी बैंक’ की अवधारण पूरे देश में फैल रही है। पत्रकार और समाजिक कार्यकर्ता तारा पाटकर द्वारा साल भर पहले शुरू किए गए रोटी बैंक से प्रेरणा लेकर वर्तमान में देश भर में सौ से अधिक ‘रोटी बैंक’ खुल चुके हैं।
घर-घर जाकर इकट्ठा करते हैं रोटियां
शाम होते ही हाथों में थैला लिए हुए कुछ युवक घरों से रोटियां इकट्ठा करने के लिए पहुंच जाते हैं। उनकी टोली जैसे ही दरवाजे पर पहुंच कर ‘रोटी बैंक’ की आवाज लगाती है, वैसे ही लोग बाहर आकर दो रोटी जमा कर देते हैं। इसके बाद बैंक के यह युवा कार्यकर्ता घरों से इकट्ठा की गई रोटियों को मोहल्ला मिल्कीपुरा में बने बैंक के दफ्तर में जमा करते हैं। यहां रोटियों की गिनती और रजिस्टर में उनकी इंट्री होने के बाद पैकेट्स को लोगों तक पहुंचाया जाता है। इस काम में लगी टीम को पहचान पत्र दिए गए हैं, ताकि कोई भी गलत शख्स इसका फायदा नहीं उठा सके। इस बैंक की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसमें सभी धर्मों के लोग सेवा कर रहे हैं और सभी धर्मों के लोगों के घरों से रोटी-सब्जी ली जाती है।
…ताकी कोई न रहे भूखा
रोटी बैंक का आइडिया देने वाले तारा पाटकर चाहते हैं कि देश में रहने वाला कोई भी आदमी भूखा न रहे। जिन लोगों के खाने की कोई व्यवस्था नहीं है, उनके लिए समाज के सक्षम लोगों को अपनी जिम्मेदारी उठानी चाहिए। पाटकर ने ‘रोटी बैंक’ का अभियान चलाने के अलावा भी कई सफल आंदोलनों का संचालन किया है। पर्यावरण संरक्षण का मसला हो या फिर बुंदेलखंड के किसानों की आवाज उठाने का मामला। वह हमेशा से जनता की आवाज बनते हैं। उनके हक की लड़ाई लड़ते हैं। वह पिछले 39 दिनों से अकालग्रस्त बुंलेदखण्ड के किसानों के बिजली मांफी के लिए भूख हड़ताल पर हैं।
महोबा में खुला देश का पहला ‘रोटी बैंक’
तारा पाटकर ने 15 अप्रैल 2015 को महोबा जिला मुख्यालय में पहली बार ‘रोटी बैंक’ की स्थापना की। इसके लिए उन्होंने 10 लोगों की एक टीम बनाई। ये लोग अपने-अपने घरों से दो-दो रोटी और सब्जी लेकर एक स्थान पर जमा करते थे। वहां से जरूरतमंद लोगों को रोटी दी जाती थी। तीन माह के अंदर ही शहर के लगभग 500 घरों से खाना जमा होने लगा। लोग स्वेच्छा से खाना दान कर इस काम में सहयोग करने लगे। अब शहर के कई जगहों पर ये काउंटर हैं, जहां से भूखों को मुफ्त में खाना दिया जाता है।
20 साल की सक्रिय पत्रकारिता
46 वर्षीय तारा पाटकर यूपी और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके के महोबा में पैदा हुए थे। पत्रकारिता और समाज सेवा के जुनून के कारण उन्होंने शादी तक नहीं की। तारा के मुताबिक शादी के बारे में उन्हें सोचने का कभी मौका ही नहीं मिला। लगभग 20 साल तक सक्रिय पत्रकारिता करने के बाद वह समाज सेवा के क्षेत्र में आ गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने स्वराज पार्टी की टिकट पर लखनऊ सीट से चुनाव भी लड़ा था। चुनाव में वह 12वें स्थान पर थे और 17 उम्मीदवार उनसे भी पीछे थे।
लखनऊ में बनवाया ‘साइकिल ट्रैक’
तारा पाटकर आज भी साइकिल से चलते हैं और चप्पल नहीं पहनते हैं। साइकिल से चलकर जहां वह पर्यावरण संरक्षण का लोगों को संदेश देते हैं, वहीं चप्पल उन्होंने तब तक न पहनने का प्रण लिया है, जब तक कि सरकार बुंदेलखंड में एक एम्स की स्थापना को मंजूरी नहीं दे देती है। पाटकर पर्यावरण और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए दैनिक जीवन में साइकिल के प्रचलन का बढ़ावा देना चाहते हैं। उन्हीं की कोशिशों से लखनऊ के प्रमुख मार्गों पर सरकार ने साइकिल ट्रैक का निर्माण कराया है।