नेहरू को मैंने नहीं देखा!
शंभूनाथ
नेहरू जी जिस दिन मरे उसी दिन मेरा रिजल्ट आया था। मैं पाँचवीं कक्षा के बोर्ड इम्तिहान में पास हो गया था और छठे दरजे के लिए कानपुर में तब के एक अव्वल स्कूल नगर महापालिका गांधी स्मारक इंटर कालेज, गोविंद नगर में मुझे प्रवेश मिल गया था।
मैं उसके एडमिशन टेस्ट में भी पास हो गया था और कालेज के सूचना पट पर 40 छात्रों की जो सूची लगी थी उस पर मेरा भी नाम था। यह बताने के लिए मैं घर की तरफ भागा। लेकिन घर आकर देखा कि पिताजी खुद घर पर हैं और उदास-से हैं।
चाचा नेहरू नहीं रहे:
मैने उनकी उदासी अनदेखी करते हुए कहा पिताजी मैं पास हो गया। मगर पिताजी कुछ नहीं बोले। मैने फिर कहा, लिस्ट में मेरा नाम है, पर पिताजी फिर चुप। तब मैने पूछा क्या हुआ? पिताजी ने बताया कि चाचा नेहरू नहीं रहे। अम्माँ सुबक रही थीं और दादी भी। आसपास के सारे लोग रो रहे थे। वहां पंजाबियों की बस्ती थी मगर वे भी उदास थे। हालांकि पंजाबी नेहरू जी को पसंद नहीं करते थे।
किसी ने नहीं सोचा कि उनकी बेटी भी है:
बाहर आकर देखा कि नीलम की झाई से लेकर बाबा बस्तीराम तक सब पूछ रहे थे कि रेडियो किस के पास है। पर पूरे छह ब्लाक में किसी के पास रेडियो नहीं। तब हम सब बी ब्लाक स्थित एक शुक्ला जी के घर को भागे। शुक्ला जी वहां एक इंटर कालेज में फिजिक्स के लेक्चरर थे और उनके घर पर रेडियो से लगातार सूचनाएं प्रसारित हो रही थीं। उनके घर के बाहर मेला लगा था। ठठ के ठठ लोग जुटे थे और रो रहे थे। हम वहां शाम तक रहे और सबके सब चुपचाप आंसू बहाते वहां बैठे रहे।
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नेहरु का कोई जोड़ीदार नहीं था:
सूचना आई कि तमिलनाडु में एक औरत ने आत्मदाह कर लिया। कुछ लोगों को भरोसा ही नहीं हो रहा था कि अब देश का क्या होगा। तब किसी ने नहीं कहा कि उनकी बेटी तो है। सब यह सोच रहे थे कि देश फिर गुलाम हो जाएगा क्योंकि एक ऐसा आदमी चला गया जिसका कोई जोड़ीदार नहीं था। देर रात हम लौटे। मां तब तक जाग रही थीं।
अस्थियों के प्रवाह के दौरान महाकुम्भ जैसा हुजूम था:
पिताजी को छोड़कर किसी ने नेहरू जी को देखा नहीं था लेकिन नेहरू का नाम ही सबको सिहरा देता था। मरे आदमी को जीवन दे सकता था। नेहरू जी मर गए, नेहरू जी मर सकते थे, ऐसा सोचना भी असंभव लग रहा था। इसके बाद नेहरू जी अंत्येष्टि और उनकी अस्थियों का संगम में प्रवाह देखने हेतु लोग इलाहाबाद गए। पिताजी मुझे तब पहली बार संगम ले गए थे। वहां की भीड़ देखकर लगा कि महाकुंभ शायद ऐसा ही होता होगा। आज नेहरू जी को दिवंगत हुए 55 साल हो गए।
नेहरु ने जनसंघ को नेस्तनाबूद करने की तमन्ना नहीं रखी:
केंद्र सरकार नेहरू जी की स्मृति में एक सरकारी स्तर पर आयोजन करे। भले वे कांग्रेस पार्टी के रहे हों मगर नेहरू जी वह प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने कभी भी जनसंघ (जो बाद में भारतीय जनता पार्टी बनी) को नेस्तनाबूद करने की तमन्ना नहीं की।
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अटल जी के प्रधानमन्त्री बनने की भविष्यवादी की थी:
उलटे 1957 में जनसंघ के युवा सांसद अटलबिहारी वाजपेयी ‘भारत की विदेश नीति’ पर अपना ओजस्वी भाषण देकर जब अपनी सीट पर बैठे तो प्रधानमंत्री पंडित नेहरू उनके पास गए और उनकी वक्तृता की प्रशंसा की। अभिभूत वाजपेयी ने उनके पैर छुये, तो उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि यह युवा सांसद एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा। उन ब्राह्मण पंडित नेहरू की भविष्यवाणी सच निकली। अटल जी ने भी नेहरू की बेटी को देवी दुर्गा बताया था। उस विभूति को याद करना चाहिए जो आज के भारत का भाग्यविधाता था।
(शंभूनाथ राजधानी दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार हैं। इसे उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)
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