‘स्क्रिप्टेड’ थी सपा की पारिवारिक कलह!

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एक तरह से यह जनधारणा बन चुकी कि समाजवादी पार्टी के भीतर जो भी घटनाक्रम रहा है, वह ‘स्क्रिप्टेड’ है और यह ‘स्क्रिप्ट’ बेटे को पार्टी का उत्तराधिकारी बनाने के लिए खुद मुलायम सिंह यादव की रजामंदी से लिखी गई। ऐसा होना मुमकिन भी हो सकता है क्योंकि राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं होता लेकिन यह ‘स्क्रिप्ट’ जिसने भी लिखी उसने मुलायम सिंह यादव को ऐसे स्थान पर ला खड़ा किया है, जहां से उनकी आगे की राजनीतिक सम्भावनाएं शून्य हो गई हैं।

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नेता की राजनीति को वक्त से कहीं पहले विराम लगा दिया

एक गलत रणनीति ने बड़े जनाधार वाले नेता की राजनीति को वक्त से कहीं पहले विराम लगा दिया है। कभी देश की राजनीति में अहम किरदार निभाने वाले ‘नेताजी’ फिलहाल अलग-थलग और अकेले हो गए हैं।मुलायम सिंह यादव परिवार और पार्टी में इतने ताकतवर हुआ करते थे कि उनके किसी फैसले पर अंगुली उठाने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता था।

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जहां उन्हें पिता के रूप में दिखना चाहिए था

अगर वह अखिलेश यादव को पार्टी की कमान सौंपने की इच्छा जाहिर करते तो भी उनसे कोई जवाब-तलब नहीं कर पाता, लेकिन उनसे सबसे बड़ी चूक यही हुई कि वह अपने रिश्तों और भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से रेखांकित नहीं कर पाए। जहां उन्हें पार्टी प्रमुख की भूमिका निभानी चाहिए थी, वहां वह पिता की भूमिका निभाते दिखे और जहां उन्हें पिता के रूप में दिखना चाहिए था, वहां वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप नजर आए।

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बेटे को कामयाबी की ऊंचाइयों पर देखने की ख्वाहिश…

एक आम पिता की तरह उनके भीतर भी अपने सामने ही अपने बेटे को कामयाबी की ऊंचाइयों पर देखने की ख्वाहिश दिन-रात हिलोरें मारती रही लेकिन जाहिरा तौर पर वह अपने उस भाई के साथ खड़े होते दिखना चाहते थे, जो उनके संघर्ष के दिनों का साथी रहा था, जिसे किनारे लगा कर वह अपने ऊपर उसके साथ हकतलफी (हक छीनने का अपराध) करने का दाग अपने दामन पर नहीं लेना चाहते थे।

नेता जी’ का रास्ता क्या होगा…

इसी के चलते विरोधाभास का ऐसा दलदल तैयार हुआ जहां से निकल पाना फिर ‘नेताजी’ के लिए मुमकिन नहीं हो पाया। उन्होंने उससे निकलने की जितनी कोशिश की, उतना ही उसमें और फंसते गए। उनकी अस्पष्ट भूमिका ने उनके राजनीतिक संघर्ष के तमाम पुराने साथियों को भी उनसे अलग कर दिया। दरअसल ये साथी समझ नहीं पा रहे थे कि ‘नेता जी’ का रास्ता क्या होगा, इस वजह से उन लोगों के लिए अपना रास्ता बनाना या तलाशना मजबूरी हो गई थी।

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