आइपीएस कृष्ण के जुनून ने बनाया ‘अल्ट्रामैन’, विदेश में जीत का परचम

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कई साल पहले हजारीबाग के एक लड़के ने आईपीएस अधिकारी बनने का ख्वाब देखा। उसने उस ख्वाब को अपने पढ़ाई के जुनून से पूरा किया। खाकी वर्दी मिली और वह महाराष्ट्र चला आया। पुलिस की व्यस्त नौकरी में अमूमन लोग वक्त निकालने को तरस जाते हैं, पर इंस्पेक्टर जनरल कृष्ण प्रकाश वक्त की इस मारामारी में भी जिंदगी के कई और ख्वाब देखते रहे और इसे साकार करने के लिए देर रात कभी मुंबई से पुणे तक दौड़ते रहे, तो कभी नासिक तक साइकल भगाते रहे।

फ्रांस में आयरन मैन बने आइपीएस

पिछले साल फ्रांस में आयरन मैन बने इस जांबाज पुलिस अधिकारी को पिछले पखवाड़े जब ऑस्ट्रेलिया में एक और नाम- ‘अल्ट्रामैन’ मिला, तो वह पूरे देश के लिए जिद, जुनून और फिटनेस का नया पर्याय बन गए। कृष्ण प्रकाश की यह कामयाबी सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है, क्योंकि उन्होंने 12 से 14 मई के बीच हुई इस ट्रायथलान प्रतियोगिता में 36 घंटे के लक्ष्य को महज 34 घंटे 21 मिनट में पूरा किया।

उनकी कामयाबी इसलिए भी बहुत काबिले तारीफ है, क्योंकि पिछले साल बुरी तरह घायल होने और डॉक्टरों के बार-बार मना करने के बावजूद वह इस प्रतियोगिता में भाग लेने ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए। वह देश के इकलौते सिविल सर्विस अधिकारी हैं, जिन्होंने आयरन मैन और अल्ट्रामैन दोनों को पूरा किया।

आयरनमैन बनाम अल्ट्रामैन

कृष्ण प्रकाश कहते हैं कि आयरन मैन स्पर्धा एक दिन की स्पर्धा होती है। 16 घंटे के अंतराल में आपको 3.86 किलोमीटर तैराकी करनी होती है। 180. 20 किलोमीटर साइकलिंग करनी होती है और 42.20 किलोमीटर की दौड़ पूरी करनी पड़ती है। ‘मैंने पिछले साल इसे 14 घंटे 8 मिनट में पूरा किया था, जबकि अल्ट्रामैन तीन दिन का इवेंट है।

यह बहुत ही कठिन स्पोर्ट्स इवेंट माना जाता है। पहले दिन आपको कुल 12 घंटे में 10 किलोमीटर की तैराकी के साथ 146 किलोमीटर से कुछ अधिक साइकलिंग भी करनी होती है। इसमें स्वीमिंग का कट ऑफ टाइम है- 6 घंटे से भी कम। दूसरे दिन सुबह साढ़े 5 बजे आपको साइकल प्रतियोगिता में फिर से भाग लेना पड़ता है। पहले दिन की साइकलिंग के बाद आपकी आगे की प्रकिया खत्म नहीं हो जाती।’

उन्होंने बताया, ‘तमाम दर्द, तमाम मोच और जख्म के बावजूद आपको दूसरे दिन 12 घंटे के अंदर ही 275 किलोमीटर साइकल चलानी पड़ती है। इन दो दिन की थकावट और दर्द के बावजूद तीसरे दिन आपको सुबह साढ़े 5 बजे 84.30 किलोमीटर रनिंग करनी होती है। यानी डबल मैराथन, वह भी अधिकतम 12 घंटे में।

मतलब जहां एक दिन भाग लेने में ही आदमी का दम निकल जाए, वहां दूसरे और फिर तीसरे दिन के बारे में सोचना ही कइयों के लिए किसी डरावने सपने जैसा होता है। फिर आयरन मैन में 99 प्रतिशत पेशेवर ऐथलीट होते हैं, जबकि अल्ट्रामैन करना आम आदमी के लिए संभव ही नहीं है। आयरन मैन में ऐथलीट के अलावा ज्यादातर बड़ी-बड़ी कंपनियों के सीईओ भाग लेते हैं, क्योंकि उनके पास इतने संसाधन होते हैं, समय होता है। वह समय निकालकर डाइटीशिन रखते हैं, डॉक्टर रखते हैं, फीजियोथेरेपिस्ट रखते हैं। हम जैसे लोगों के लिए यह बहुत मुश्किल का काम है।‘

इसलिए खामोश नहीं बैठे

कृष्ण प्रकाश के लिए यह मुश्किल कुछ खास वजहों से और भी चुनौतीपूर्ण बन गई थी। उन्होंने पिछले साल अगस्त में आयरन मैन स्पर्धा पूरी की थी। उन्होंने सोचा कि इतना अच्छा आयरन मैन हो गया, तो इसे ऐसे ही छोड़ नहीं देना चाहिए। इसीलिए उन्होंने उसके बाद 4 नवंबर को पुणे से गोवा की एक साइकल चैंपियनशिप में भाग लेने का फैसला किया।

वह जब साइकल पर अपनी पूरी रफ्तार में थे, तो पीछे चल रही उनकी प्राइवेट क्रू गाड़ी के ड्राइवर का कंट्रोल छूट गया और उस गाड़ी ने उन्हें बुरी तरह जख्मी कर दिया। उनके शरीर की तीन हड्डियां फ्रैक्चर हो गईं । उन्हें पहले वहां लोकल और फिर मुंबई के अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने उनसे साफ-साफ कहा कि अगले चार से पांच महीनों तक वह किसी भी तरह के स्पोर्ट्स की प्रैक्टिस नहीं कर सकते।

‘लेकिन मैंने तय किया मैं ऐसे खामोश नहीं बैठ सकता। मुझे आयरन मैन के बाद कुछ तो बड़ा करना ही है। तब मैंने गूगल सर्च करने का फैसला किया, तो मुझे अल्ट्रामैन का पता चला। मैंने फिर से सभी से चर्चा की।‘ सभी ने हतोत्साहित किया, पर एक आर्थोपीडिक सर्जन डॉक्टर आनंद पाटील ने उन्हें प्रोत्साहित किया। उनके सामने फिर उन्होंने अल्ट्रामैन का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाया। दो महीने लगे।

फ्रैक्चर सही नहीं हुआ था, पर जनवरी, 2018 में उन्होंने फिगरेट बैंडेज में ही धीरे-धीरे दौड़ने का फैसला किया और उसी महीने एक दिन 42 किलोमीटर की पूरी मैराथन दौड़ गए। थोड़ा आत्मविश्वास आया लेकिन साइकलिंग से फिर भी उन्हें डर लग रहा था, क्योंकि कंधे का फ्रैक्चर था। उसी दौरान उन्होंने खुद को हौसला बढ़ाने के लिए एक कविता लिखी—

‘हम नि:शब्द रहकर भी संवाद रचते हैं
जहां घोर निराशा है वहीं विश्वास रचते हैं
अंत जहां होता वहीं नई शुरुआत रचते हैं
धरती की मिट्टी से अनंत आकाश रचते हैं
हौसलों के दम पर नये परवाज रचते हैं
गर्दिश में रहकर भी सच्चे ख्वाब रचते हैं
हम घनघोर अंधेरे में आफताब रचते हैं
हर शाम ढलने पर नया प्रभात रचते हैं
हम आम होकर भी कुछ खास रचते हैं
हर कदम पर हम नया इतिहास रचते हैं’

साइकिल ने किया दर्द का इलाज

कृष्ण प्रकाश कहते हैं, ‘उसी दौरान मार्च के किसी रविवार अहमद नगर में एक साइकल कॉम्पिटिशन के उद्घाटन के लिए मुझे बुलाया गया। अहमदनगर का मैं पूर्व एसपी रह चुका हूं। मैंने आयोजकों से कहा कि मैं उद्घाटन भी करूंगा, साथ में साइकलिंग भी करूंगा। दर्द था, पर हिम्मत करके धीरे-धीरे ही सही, मैंने 100 किलोमीटर की साइकलिंग पूरी कर ली। मैं चौथे नंबर पर आया, तीन जवां लोगों के बाद। मुझमें कॉन्फिडेंस आ गया और मैंने फिर से प्रैक्टिस शुरू कर दी। उसी दौरान नौकरी के दौरान वर्तमान पोस्ट के अलावा मेरे पास दो- तीन अतिरिक्त चार्जेज (पद) आ गए।

मुझे मालूम था कि नौकरी में ड्यूटी के दौरान तो मैं दिन में कुछ कर नहीं सकता था, इसलिए मैं रात में तीन बजे उठने लगा। कभी साढ़े तीन बजे पुलिस जिमखाना में स्वीमिंग के लिए निकल पड़ता, कभी मैराथन के लिए दौड़ शुरू कर देता। शनिवार रात 1 बजे मैं साइकल लेकर मुंबई से कभी पुणे, तो कभी नाशिक निकल पड़ता। मेरे पास डेढ़ दो- महीने बचे थे। मुझे मालूम था कि अगर 275 किलोमीटर करना है, तो 200 किलोमीटर की तो प्रैक्टिस रहनी ही चाहिए।‘

उसी दौरान उन्होंने रनिंग की प्रैक्टिस के लिए चीफ मिनिस्टर सिक्यॉरिटी में तैनात अपने इंस्पेक्टर सुनील लाहिगुडे की मदद ली, जिसने दक्षिण अफ्रीका में 89 किलोमीटर की कामरेड्स दौड़ दौड़ी थी। कृष्ण प्रकाश कहते हैं कि कामरेड्स डबल मैराथन से थोड़ी ज्यादा होती है। यह बहुत जमाने से चली आ रही है। यह दुनिया की सबसे पुरानी अल्ट्रा मैराथन है। यह रेस डरबन और पीटर मैरिट्सबर्ग के बीच होती है। भारतीयों को इसमें इसलिए जाना चाहिए, क्योंकि यह वही जगह है कि जहां गांधी जी ने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन किया था, जहां उन्हें ट्रेन से उतार दिया गया था।

आध्यात्मिक आनंद

कृष्ण प्रकाश इंस्पेक्टर सुनील लाहिगुडे के साथ मलाबार हिल से रोज 35 से 40 किलोमीटर दौड़ते थे। बाद में में वे धीरे-धीरे अपनी दौड़ बढ़ाते रहे। उसी दौरान उन्हें पता चला कि कुछ कामरेड्स रनर्स लोनावाला में भी दौड़ते हैं। उनके साथ दौड़ने के लिए वह दो से तीन बार वहां भी गए। रात 1 बजे से दौड़ शुरू की और सुबह 8 से 9 बजे तक दौड़ते रहे।

वह कहते हैं, ’कुछ पाना है, तो कुछ तो खोना पड़ेगा। मैंने कोई शॉर्टकट नहीं अपनाया। सिर्फ मेहनत की। बहुत मेहनत की। मेरे सामने बस चुनौती एक ही थी कि तैयारी के लिए वक्त बहुत कम था । लेकिन मैंने इस चुनौती को इसलिए पार पाया, क्योंकि मैं सभी चीजों को आध्यात्मिकता से भी जोड़ता हूं। मुझे लांग रनिंग में बहुत आध्यात्मिक आनंद मिलता है। शार्ट रनिंग या फास्ट रनिंग में आपको सोचने का वक्त नहीं मिलता है। फिर मुझे योगा और प्राणायाम का अच्छा अभ्यास रहा है।

पुलिस अकादमी में योगा में 120-125 लोगों के बीच मैं रनर अप रहा था। लंबी दूरी की साइकलिंग, रनिंग, स्वीमिंग के दौरान सांसें एक रिदम में चलें, एक नियंत्रण में चलें, मैंने योगा, प्राणायम के जरिए भी इसकी बहुत प्रैक्टिस की। इसका फायदा भी मुझे मिला। इसीलिए मैं कहता हूं कि भारतीय अन्य देशों के लोगों से ज्यादा अच्छा कर सकते हैं, क्योंकि योगा, प्राणायाम हमारे जींस, खून में होता है। ‘

सबक सीखा, अपनी ही हो साइकल

अल्ट्रामैन स्पर्धा से कृष्ण प्रकाश ने एक बड़ा सबक सीखा। वह कहते हैं कि साइकल अपनी ही होनी चाहिए, उधार की नहीं। ऑस्ट्रेलिया में जो उनका ट्रेनिंग शेड्यूल भेज रहा था, उसने उनसे एक खास तरह की साइकल के लिए कहा। वह साइिकल करीब सात लाख रुपये की थी। कृष्ण प्रकाश को यह बहुत महंगी लगी, इसलिए उन्होंने एक मित्र से यह उधार ली और उसे लेकर स्पर्धा में चले गए। उन्हें इसका सिस्टम पता नहीं था, इसलिए उन्हें बहुत दिक्कतें आईं। बाद में इस साइकिल का ब्रेक ही फेल हो गया।

वह कहते हैं, ‘स्पर्धा में रास्ते में कोई मैकेनिक नहीं मिलता है। फिर आपके पास समय भी कम रहता है। तो मुझे स्पीड स्लो करनी पड़ी– खासतौर पर ढलान में। चूंकि मुझे ऐक्सिडेंट का डर था, मुझे बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा और मुझे छोटे गियर में साइकल चलाना पड़ा।‘

कृष्ण प्रकाश को उस दौरान एक बार फिर ऐक्सिडेंट का भी सामना करना पड़ा । जब तक शहर के बाहर का इलाका था, तब तक वह तमाम मुश्किलों में भी कंट्रोल करके साइकिल चलाते रहे, लेकिन जैसे ही वह शहर में आ गए, तो एक चौराहे पर अचानक एक कार आ गई और उनकी साइकल से भिड़ गई। उनका साइकल का हैंडल निकलकर नीचे गिर पड़ा। उन्हें उठाकर उसे कसना पड़ा। उनके एक अंगूठे में हेयर फ्रैक्चर हो गया। उसी में उन्होंने आखिर के 15 किलोमीटर की दूरी तय की बिना ब्रेक, बिना गियर के।

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‘उसके बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि किसी भी इवेंट में जाना है, तो दूसरे की साइकिल लेकर न जाओ। साइकल कैसी भी हो, अपनी लेकर जाओ।‘ वह उस दिन निर्धारित समय से सिर्फ पांच मिनट पहले अपने गंतव्य पर पहुंचे और फिर खुशी में खुद ही से सवाल करने लगे और खुद को ही जवाब देने लगे। बाद में जब अपने कमरे में आए, तो सोने से पहले एक और कविता लिखी—

मुकाबला नहीं मेरा कभी किसी और से ,
ज़िद और जद्दोजहद भी, खुद से खुद्दार की
हसरते गुल नहीं, न गम है मुझको खार की
न चाहते सल्तनत ,है तरबीयत सुकरात की
खुदी का रंग अलहदा ,न जंग आर-पार की
न तीर न तलवार की, न तख्त न हथियार की
न जीत है , न हार है , बस खुद पे ऐतबार है;
ठान ली तो ठान ली , परवाह नहीं तूफान की
ऊरूज और ज़वाल है, फैसला कमाल है,
फ़ासला कोई भी हो, हौसला मिसाल है।

खामोशी का अब शोर

कृष्ण प्रकाश ने जब आयरन मैन में भाग लिया, तब भी परिवार व चंद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के अलावा शायद ही किसी और को उसके बारे में बताया। जब वह अल्ट्रामैन प्रतियोगिता में भाग लेने गए, तब भी कुछ खास लोगों के अलावा किसी और को पता नहीं था।

उन्होंने छुट्टी की जो अर्जी दी, उसमें छुट्टी लेने का कारण लिखा—क्रीड़ा और पर्यटन। वह कहते हैं, ‘लोगों को यदि किसी स्पर्धा में आपके भाग लेने का पहले से पता होता है और यदि आप उस स्पर्धा में असफल हो गए, तो कुछ लोग आपका मजाक उड़ाते हैं। इसीलिए मेरा जिंदगी का सिद्घांत है कि मेहनत इतनी खामोशी से करो कि सफलता शोर मचा दे।‘ इसके बाद वह अल्ट्रामैन स्पर्धा की तैयारी के दौरान लिखी अपनी एक और कविता सुनाने लगते हैं—

कभी न हो लक्ष्य ओझल
कभी न हो मन ये बोझल
आने दो आंधिओं के झंझावात
दो-दो हाथ खेलेंगे
दुरूह रस्ते,सर्द सुबह,तप्त दोपहरी;
पांव-पांव ये लंबी दूरी तय कर लेंगे
गिरने दो मुसीबतों के पहाड़
मेरे मजबूत कंधे ढो लेंगे
अभी विश्राम की मोहलत नहीं
पहले आसमां की बुलंदी को छू लेंगे
दुश्वारियों से विचलित नहीं हैं हम,
अभी विश्राम की मोहलत नहीं है, मेरे मन ;
ये जागने की घड़ी है, फिर कभी सो लेंगे

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