#UPInvestorSummit : यूपी में इन्वेस्टर्स समिट के बाद बदलेगा उत्तर प्रदेश?
आशीष बागची
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 21 व 22 फरवरी को इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया जा रहा है। इस निमित्त तीन हजार से अधिक इन्वेस्टर्स के लखनऊ आने की सूचना है। माना जा रहा है कि यूपी में इंडस्ट्री को तो इससे बढ़ावा मिलेगा ही, साथ ही यह समिट लखनऊ की खूबसूरती बढ़ाने और इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने का काम भी करेगा। राज्य सरकार के कई विभागों ने मिलकर शहर को बेहतर बनाने के लिए डेढ़ सौ करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किया है। इसमें सड़कें दुरुस्त करना, एलईडी लाइट लगवाना, अतिक्रमण मुक्त करना और चौराहों का सुंदरीकरण शामिल है। कुल मिलाकर इन्वेस्टर्स को लुभाना मकसद है। आदित्यनाथ सरकार की इस इन्वेस्टर्स समिट से इसलिए भी उम्मीद है क्योंकि इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने आ रहे हैं।
तीन लाख करोड़ का निवेश आयेगा
उत्तर प्रदेश सरकार यह मान रही है कि इस समिट से उत्तर प्रदेश में तीन लाख करोड़ से ज्यादा का निवेश आ सकता है। समिट शुरू होने से पहले ही 900 से ज्यादा एमओयू साइन होने के लिए तैयार हैं।
18 केंद्रीय मंत्रियों का होगा संबोधन
लखनऊ में होने वाली इन्वेस्टर्स समिट में देश के 18 केंद्रीय मंत्रियों का संबोधन होगा। इसके अलावा इस समिट में नीदरलैंड्स, जापान, थाईलैंड, चेक रिपब्लिक, मॉरिशस कंट्री पार्टनर के रूप में मौजूद रहेंगे।
निवेश में उत्तर प्रदेश फिसड्डी
अगर निवेश का इतिहास देखा जाये तो उत्तर प्रदेश के प्रति निवेशकों का रुझान कम ही रहा है। उत्तर प्रदेश की पूर्व की सपा व बसपा सरकार भी फिसड्डी साबित हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शासनकाल में प्रदेश में निवेश तक़रीबन 16 फीसदी तक घट गया था। यूपी की सत्ता सँभालने के प्रथम 4 वर्षों में मायावती ने यूपी में कुल 32492.85 करोड़ रुपयों का पूंजी निवेश कराया तो वहीं अखिलेश यादव यूपी की सत्ता सँभालने के प्रथम 4 वर्षों में यूपी में महज़ 27374.50 करोड़ रुपयों का ही पूंजी निवेश करा पाए थे।
आरटीआई से हुआ खुलासा
एक आरटीआई कार्यकर्ता ने वितीय वर्ष 2007-08 से वितीय वर्ष 2016-17 तक की अवधि में यूपी में हुए पूंजी निवेश की सूचना माँगी थी।
आरटीआई के मुताबिक माया-काल में वित्तीय वर्ष 2007-08 में 4918.26 करोड़ रुपयों का, 2008-09 में 5176.63 करोड़ रुपयों का, 2009-10 में 11951.93 करोड़ रुपयों का और 2010-11 में 10446.03 करोड़ रुपयों का पूंजी निवेश हुआ तो वहीं अखिलेश-काल में वित्तीय वर्ष 2012-13 में 6659.55 करोड़ रुपयों का, 2013-14 में 5213.03 करोड़ रुपयों का, 2014-15 में 7671.2034 करोड़ रुपयों का, 2015-16 में 7830.7169 करोड़ रुपयों का पूंजी निवेश हुआ। आंकड़ों से पता चलता है कि अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में मायावती ने यूपी में 25052.42 करोड़ रुपयों का पूंजी निवेश कराया था l
योगी मुंबई तक जाकर रोड शो कर चुके हैं
इस समिट से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले दो महीनों में देश के अलग-अलग राज्यों में जाकर उत्तर प्रदेश इन्वेस्टर्स समिट के लिए छह बड़े रोड शो कर चुके हैं। योगी सरकार के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने दावा किया था कि, ‘इन्वेस्टर्स समिट के दौरान उत्तर प्रदेश में एक लाख करोड़ से अधिक का निवेश जुटाने का जो लक्ष्य रखा गया था, निवेशकों के उत्साहजनक रूख के चलते 75 फीसदी निवेश प्रस्ताव पहले ही प्राप्त हो चुके हैं।’
दावे के उलट सरकार का कथन
सतीश महाना जो भी दावे करें वे अपनी ही सरकार के दावों को झुठलाते भी लग रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार कुछ समय पहले 2.53 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव आने का दावा कर चुकी है। दिसंबर में मुंबई रोड शो के बाद उसने यह दावा किया था। सरकार के मुताबिक केवल मुंबई रोड शो से ही सवा लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश प्रस्ताव मिले थे।
आते हैं उत्तर प्रदेश के औद्योगिक इतिहास पर
कभी कानपुर ‘मैनचेस्टर आफ द ईस्ट’ कहलाता था। उस समय कांग्रेस राज था। उस राज में मुरादाबाद, मेरठ, फिरोजाबाद, आगरा, भदोही, बनारस जैसे परंपरागत उद्योग जिन नगरों में था, वहां भी इनका दीवाला पिट गया। नारायण दत्त तिवारी की ओर से ओखला की तर्ज पर न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट अथॉरिटी यानी नोयडा के जरिए एक नई कोशिश जरूर की गई लेकिन वह हिस्सा भी लगे हाथ दिल्ली में चला गया।
संजय, राजीव, इंदिरा, सोनिया और राहुल गांधी के अमेठी-रायबरेली में भी उद्योग लगे पर उनका हस्र सभी जानते हैं।
मुलायम राज का हाल
जब कांग्रेस राज का खात्मा हुआ तो मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश को औद्योगिक प्रदेश में शामिल करने की कोशिश की। 2003 में उन्होंने यूपी डेवलेपमेंट काउंसिल नाम से एक संस्था बनायी और अमर सिंह को इसका अध्यक्ष बनाया। अनिल अंबानी से लेकर तमाम बड़े उद्यमियों ने इस काउंसिल की कई बैठकों में लखनऊ आकर हिस्सेदारी की। रिलायंस का दादरी पावर प्लांट आने को हुआ। शिलान्यास हुआ, भूमि उसी हालत में कई वर्षों और अदालती चक्करों के बाद रिलायंस को वापस छोड़नी पड़ी। अनिल अंबानी ने यूपी से किनारा कर लिया।
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माया राज में हाल बुरा
मुलायम के बाद आयीं मायावती। उन्होंने मुंबई से लेकर लंदन और अमेरिका तक जाकर यूपी में निवेश लाने की कोशिश की लेकिन नतीजा उत्साहवर्धक नहीं रहा।
अखिलेश राज में भी तरक्की नहीं
फिर् आये अखिलेश यादव। 2012 की अपनी नई उद्योग नीति में 11.2 फीसदी की इंडस्ट्रियल ग्रोथ का लक्ष्य तय किया। उन्होंने भी मायावती की तर्ज पर विदेशों से इन्वेस्टमेंट लाने के लिए लंदन आदि के दौरे किए। अखिलेश सरकार द्वारा मार्च 2016 में किये गये 50,793.79 करोड़ के निवेश के दावे के बावजूद सिर्फ साढ़े तीन हजार करोड़ रूपये का ही निवेश यूपी में आ पाया। इसमें भी ज्यादातर बिजली, चीनी जैसे परंपरागत उद्योगों में ही था।
इन्वेस्टर्स मीट का उद्दे्श्य क्या है?
इन्वेस्टर्स मीट का उद्दे्श्य होता है कि विदेशी कम्पनियां प्रदेश में निवेश करें और विकास में सहायक हों। लेकिन पिछली तमाम इन्वेस्टर्स मीट के बाद प्रदेश के हिस्से में क्या आया इसपर गौर किया जाना चाहिये।
इन्वेस्टर्स मीट में करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी सवाल यही सामने आता है कि इन तमाम आयोजनों के बाद प्रदेश में कितना निवेश आया, कुल कितने हस्ताक्षरित होकर जमीन पर उतरे और कितने बेरोजगारों को काम मिला।
देखने वाली बात यह होगी कि वाकई दूसरे प्रदेशों के मुकाबले कितने इन्वेस्टर्स उत्तर प्रदेश् में निवेश करते हैं और कितने रोजगार का सृजन होता है। अगर ऐसा रहा तो इसका लाभ योगी सरकार को 2019 के चुनाव में मिल सकता है।
तो क्या इस बार जो हो रहा है उससे कुछ अलग उम्मीद लगाई जा सकती है? देखना अच्छा रहेगा।
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