आजाद भारत को कुश्ती में पहला पदक दिलाने वाले शख्स हैं उदयचंद
विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में आजाद भारत के लिए पहला पुरस्कार जीतने वाले पहलवान उदय चंद का कहना है कि देश में खिलाड़ियों को पुरस्कार देने के तरीके गलत और दुखद हैं। उन्होंने कहा कि पुरस्कार हकदार को नहीं मिलते, और इसमें काफी धांधली होती है। उदय चंद (81) ने खेल पुरस्कारों पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “देश में जितने भी पुरस्कार हैं, जिस तरह से दिए जाते हैं, उनके तरीके गलत और दुखद हैं। पुरस्कार उन्हें दिए जाते हैं, जो सही हकदार नहीं होते हैं।”
कुश्ती विश्व चैंपियनशिप में पुरस्कार जीतने के अपने अनुभव के बारे में उदय चंद ने कहा, “हिंदुस्तान से एक मां के दो बेटे पहली बार विश्व चैंपियनशिप में गए थे। न तो इससे पहले कभी ऐसा हुआ था और न तो अब तक ऐसा हो पाया है। इस बात का बहुत गर्व है।” गौरतलब है कि उदय चंद ने जापान के योकोहामा में वर्ष 1961 में हुए कुश्ती विश्व चैंपियनशिप में पुरुषों की फ्रीस्टाइल कुश्ती प्रतिस्पर्धा में कांस्य पदक जीता था। विश्व चैंपियनशिप में आजाद भारत का यह पहला पुरस्कार था।
उदय चंद को 1961 में ही कुश्ती के लिए देश का पहला अर्जुन पुरस्कार भी मिल चुका है। उन्होंने इस बारे में कहा, “वैसे तो मैं बहुत खुश हूं कि मुझे देश का पहला अर्जुन पुरस्कार दिया गया, लेकिन फेडरेशन ने इसे न्यायपूर्ण ढंग से नहीं किया, जिसका मुझे दुख है।” उन्होंने आगे कहा, “लड़के कुश्ती के पुरस्कार के लिए फॉर्म भरते हैं और उनसे साक्षात्कार करने वाला अध्यक्ष क्रिकेट का होता है। जिस चीज के बारे में वह कुछ जानता ही नहीं, उसके बारे में वह कैसे बता सकता है। आजकल खेल बिजनेस बन गया है।”
देश में खेलों की स्थिति के बारे में उन्होंने कहा, “खेल देश का पैरामीटर होता है और वर्तमान में चल रही प्रक्रिया के अनुसार ओलंपिक में भारत 10वें या 20वें स्थान पर भी आ जाए तो बहुत बड़ी बात है।” उदय चंद ने कहा, “मैं सभी देशवासियों और खिलाड़ियों से प्रार्थना करता हूं कि जो उच्च कोटि के खिलाड़ी हैं, वे प्रधानमंत्री को लिखें और अपना स्वार्थ छोड़कर देश हित की बात करें। हम देश को छठे स्थान पर लाना चाहते हैं, ताकि हम दुनिया में अपने खेल को आगे ले जा सकें।”
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भारतीय कुश्ती की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए उदय चंद ने कहा, “जब तक देश में राजनेता खेल के प्रभारी रहेंगे, राजनीति खेलते रहेंगे। इससे कुश्ती का भला नहीं होने वाला। खेल के लिए जो भी प्रमुख, डिप्टी डायरेक्टर नियुक्त किए जाएं, खिलाड़ियों की तरफ से नियुक्त किए जाएं।” पिछले ओलंपिक में भारतीय पुरुष पहलवानों की पराजय के लिए भी उन्होंने फेडरेशन की गलती, बेइमानी और राजनीति को जिम्मेदार ठहराया। लेकिन पहलवानों को मिलने वाली सरकारी मदद पर उन्होंने संतोष जाहिर किया।
उदय चंद ने कहा, “सरकारी मदद से बहुत संतुष्ट हूं। पहले इतनी मदद नहीं थी, लेकिन अब सरकार की तरफ से कोई कमी नहीं है। पैसों, उपकरणों, पुरस्कारों की कोई कमी नहीं है। सिर्फ चयन प्रक्रिया ठीक करने की जरूरत है। अनुभवी और योग्य खिलाड़ियों का चयन किया जाना चाहिए।” फेडरेशन में व्याप्त खामियों के बारे में उन्होंने कहा, “एशिया के तीसरे नंबर का कोच हूं, लेकिन फेडरेशन मुझे पास तक खड़ा नहीं होने देता। सीखाने की तो बात दूर, खड़ा तक नहीं होने देता कि यह बच्चों को भड़का देगा।”
लेकिन उदय चंद ने कई सारे योग्य शिष्य तैयार किए हैं। उन्होंने कहा, “आज जिन पहलवानों ने देश की थोड़ी इज्जत रखी हुई है, वे सभी मेरे विद्यार्थी हैं। एक-दो को छोड़कर जितने भी मेडल आएं हैं, मेरे शिष्यों के शिष्यों के हैं। वे आगे भी मेडल लाएंगे। मुझे फक्र है कि मेरे शिष्य मेडल लाने में सक्षम हैं। देश में 500 कोच मेरे सिखाए हुए हैं। मेरे शिष्यों ने जो अखाड़े खोल रखे हैं, वहां जाइए, वे सभी अच्छे हैं।”
कुश्ती में सुधार की गुंजाइश के बारे में उन्होंने कहा, “भारत के नेशनल और इंटरनेशनल खिलाड़ियों की बैठक करें और उनसे सुझाव मांगें। किसी खेल से संबंधित सुझाव उसी खेल से संबंधित खिलाड़ी से ही मांगें।” उदय चंद की अंतिम इच्छा अगले ओलंपिक में देश के नाम छह-सात मेडल देखने की है। उन्होंने कहा, “अगले ओलंपिक में छह-सात पदक आ गए तो समझिए मैंने ओलंपिक जीत लिया। फिर जिंदगी में गम नहीं रहेगा।”
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