मजदूर दिवस : कामगारों से रूठी ‘किस्मत’, अब गरीबी के दुष्चक्र में फंसने के डर !
मजदूर दिवस ने इससे अधिक मनहूसियत भरा लम्हा शायद कभी नहीं देखा
मजदूर दिवस ने इससे अधिक मनहूसियत भरा लम्हा शायद कभी नहीं देखा। मजदूर, बेबस और लाचार तो पहले भी थे। फिर भी हौसले की उड़ान की बदौलत हर मुश्किल से पार पा लेते थे। लेकिन कोरोना काल से बने हालात ने उन्हें हारने पर बेबस कर दिया। कल कारखानों में तालाबंदी की वजह से करोड़ों की संख्या में मजदूरों के सामने भूखमरी की स्थिति बन आई है। एक अनुमान के अनुसार लॉकडाउन में भारत में अकेले 40 करोड़ श्रमिक प्रभावित हुए हैं।
गरीबी के दुष्चक्र में फंसते मजदूर-
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (अईएलओ) की रिपोर्ट कहती है कि भारत में करीब 90 प्रतिशत लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। ऐसे में करीब 40 करोड़ कामगारों के रोजगार और कमाई प्रभावित होने की आशंका है। इससे वे गरीबी के दुश्चक्र में फंसते चले जाएंगे। इसमें कहा गया है, ‘भारत में मौजूदा ‘लॉकडाउन’ का इन कामगारों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है….कामकाज बंद होने से उनमें से कई अपने गांवों को लौट गये हैं।’ आईएलओ ने कहा कि वैश्विक स्तर पर इस महामारी से कामकाजी घंटों और कमाई पर प्रभाव पड़ा है।
थम सकती है आर्थिक रफ्तार-
कामगारों के गांव लौटने का सिलसिला लगातार जारी है। लॉकडाउन के बावजूद मजदूर पैदल ही सैकड़ों मील चलने को तैयार हैं। उनका कहना है कि कोरोना से बचने के चक्कर में भूख से मरने की नौबत आ गई है। दिल्ली, पंजाब, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में फंसे मजदूर हर कीमत पर अपने गांव लौटने की जिद्द पर अड़े हैं।
हालांकि दूसरे लॉकडाउन की मियाद के आखिरी हफ्ते में गृह मंत्रालय भी इन्हें अपने गांव भेजने की व्यवस्था कर रहा है। माना जा रहा कि शहरों से भागकर गांव लौटने वाले कामगार अगले 6 महीने या एक साल तक काम पर लौटने की शायद ही हिम्मत जुटा सके। ऐसे में मिल मालिकों के सामने कामगारों की समस्या आनी लाजमी है। इसका असर सीधे तौर पर आर्थिक रफ्तार पर दिख सकता है।
क्या है मजदूर दिवस का इतिहास?-
हर साल 1 मई को दुनिया भर में ‘अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस’, श्रम दिवस या मई दिवस (International Labour Day) मनाया जाता है। इसे पहली बार 1 मई 1886 को मनाया गया था। भारत में इसे सबसे पहले 1 मई 1923 को मनाया गया था। जब लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने चेन्नई में इसकी शुरुआत की थी। इसका मुख्य उद्देश्य मजदूरों को सम्मान और हक दिलाना है। 1 मई 1886 को अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत एक क्रांति के रूप में हुई थी। जब हजारों की संख्या में मजदूर सड़क पर आ गए।
ये मजदूर लगातार 10-15 घंटे काम कराए जाने के खिलाफ थे। उनका कहना था कि उनका शोषण किया जा रहा है। इस भीड़ पर तत्कालीन सरकार ने गोली चलवा दी थी, जिसमें सैकड़ों मजदूरों की मौत हो गई थी। इस घटना से दुनिया स्तब्ध हो गई थी। इसके बाद 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की दूसरी बैठक हुई। इस बैठक में यह घोषणा की गई हर साल 1 मई को अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जाएगा और इस दिन मजदूरों को छुट्टी दी जाएगी। साथ ही काम करने की अवधि केवल 8 घंटे होगी। इसके बाद से हर साल 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है।
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत-
भारत में इसे पहली बार 1 मई 1923 को मनाया गया था। इसकी शुरुआत लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान के नेता कामरेड ‘सिंगरावेलू चेट्यार’ ने की थी। जब उनकी अध्यक्षता में मद्रास हाईकोर्ट के सामने मजदूर दिवस मनाया गया। उस समय से हर साल देशभर में मजदूर दिवस मनाया जाता है।
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