पत्रकारिता के लिए रेड जोन बना भारत, चौंका देगें आंकड़े ?

पत्रकारिता के लिए रेड जोन बना भारत, चौंका देगें आंकड़े ?

आज का मीडिया अपना अस्तित्व भूलता जा रहा है. इस बात का दावा तो सब कर रहे हैं लेकिन क्यों बनाता जा रहा है, इसका दावा कर रहा है बीते सोमवार को सोशल मीडिया पर वायरल होता एक जख्मी पत्रकार का वीडियो, जिसमें वह किसी अस्पताल में बुरी तरह से जख्मी हालात में कराहता हुआ नजर आ रहा है. इस वीडियो को देखकर भले ही आपको लगा हो कि, उसे किसी तरह की चोट लगी है. लेकिन ऐसा नहीं है यह हाल उसका सत्ताधारी पार्टी द्वारा किया गया है, वो बस इसलिए क्योंकि वो जनता को सच दिखा रहा था.

जख्मी हालत में अस्पताल की बेड पर पड़ा यह पत्रकार अपनी इस हालत का जिम्मेदार भारतीय जनता पार्टी को बता रहा है. उसका कहना है कि, वह उत्तर प्रदेश के रायबरेली में चुनावी दौरे की कवरेज के लिए पहुंचा था. जिस दौरान पत्रकार ने चुनावी जनसभा में आयी महिला से सवाल किया कि, क्या उन्हें पैसा देकर लाया गया है. इस सवाल से नाराज भाजपा कार्यकर्ताओं ने पत्रकार की मार – मार के बुरी हालत कर दी है, लेकिन यह मामला यही कहां खत्म होने वाला था. इस मामले पर अब सियासत गर्मा गयी है और इस पत्रकार के वीडियो को साझा करते हुए कांग्रेस ने इस पूरे मामले पर केंद्र की भाजपा सरकार को आडे हाथ लिया है.

पत्रकार ने बताया क्या है आखिर पूरा मामला ?

यूट्यूब चैनल ‘मॉलिटिक्स’ के पत्रकार राघव त्रिवेदी का आरोप है कि, रैली के दौरान सवाल पूछने से नाराज बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने उनके साथ मारपीट की है. राघव दावा करते हैं कि, वे रायबरेली में अमित शाह की चुनावी जनसभा को कवर करने पहुंचे थे, इस दौरान उन्होने एक महिला से सवाल किया की क्या आपको पैसा देकर लाया गया है, जिसमें महिला ने जवाब दिया की हां हमें 100 रूपए देकर लाया गया है. इस बात को लेकर पत्रकार ने भाजपा कार्यकर्ताओं से सवाल किया तो वे उठकर जाने लगे और पत्रकार ने उन्हें रोक कर जवाब मांगा तो उन्हे पत्रकार का कैमरा बंद करवाकर 20-25 लोगों ने मिलकर उसे पीटना शुरू कर दिया. पत्रकार के अनुसार, भाजपा कार्यकर्ताओं नें कम से कम डेढ़-दो सौ घूंसे मारे.

पत्रकार को न्याय दिलाने को आगे आए पत्रकार संगठन और राजनेता

इस मामले के सामने आते ही चुनावी दौर में सियासत गर्मायी है, वही पत्रकार संगठनों का गुस्सा फूटा है. इस पूरे मामले पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने चुनाव आयोग व स्थानीय अधिकारियों से सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए कहा है कि, ”ये घटनाएं बता रही हैं कि बीजेपी के लोग सामने दिख रही हार से बौखला चुके हैं. अब अन्याय का अंत होने को है.”

वही कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने इस मामले में केंद्र की भाजपा सरकार को आडें हाथ लेते हुए कहा है कि, “पत्रकार को सिर्फ़ इसलिए पीटा गया क्योंकि उन्होंने कुछ महिलाओं से बात की थी जो कह रही थीं कि सभा में आने के लिए उन्हें पैसे दिए गए. पूरे देश के मीडिया का मुंह बंद कर देने वाली भाजपा को यह बर्दाश्त नहीं है कि उनके ख़िलाफ़ कहीं कोई आवाज़ उठे.”

गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी ने इस मामले को लेकर एक्स पर लिखा है कि, ”राघव त्रिवेदी अमित शाह की रैली में आई महिलाओं से सवाल-जवाब कर रहे थे. महिलाओं ने बातचीत में बताया कि उन्हें रैली में आने के लिए पैसे दिए गए थे.” “जिनका अस्तित्व ही झूठ की बुनियाद पर टिका हो उनको यह सच कैसे स्वीकार होता. इसलिए भाजपा के गुंडों ने उन्हें पीट दिया ताकि सच को छुपाया जा सके.”

कांग्रेस नेता पप्पू यादव ने भी इस मामले पर एक्स पोस्ट लिखा है कि, ”रायबरेली में गृह मंत्री अमित शाह की रैली में निर्भीक पत्रकार राघव त्रिवेदी पर बीजेपी वालों ने हमला कर बुरी तरह घायल कर दिया. अस्पताल में उनका उपचार हो रहा है, मैं उनसे मिलने जा रहा हूं. भाजपा में हार की बौखलाहट है. ज़बरदस्त है. भयभीत भाजपा पत्रकारों की पिटाई कर खीज उतार रही है.”

पत्रकारिता के लिए असुरक्षित है भारत

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की एक रिपोर्ट में पत्रकारिता के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में भारत को भी शामिल किया गया था. साल 2021 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 142 स्थान हासिल हुआ है, जो देश की मीडिया स्वतंत्रता की सबसे कमजोर स्थित को बताता है. इसी साल, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने 37 विश्व नेताओं की सूची जारी की, जो मीडिया पर निरंतर हमला करते हैं. उनमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं.

पोलीस प्रोजेक्ट की सुचित्रा विजयन कहती हैं कि भारत में बढ़ते दमन और बढ़ते पाबंदियों ने मीडिया की आजादी को खतरा पैदा कर दिया है. उन्होंने कहा, “जो पत्रकार सरकार से सवाल करते हैं उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने का अभियान चलाया जाता है. कई बार तो बलात्कार या हत्या जैसी धमकियां भी दी जाती हैं.”

30 जनवरी इसी साल किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग करने वाले स्वतंत्र पत्रकार मनदीप पूनिया को दिल्ली के सिंघु बॉर्डर से गिरफ्तार कर लिया गया. उनका मुकदमा IPC की धारा 34 के तहत दर्ज किया गया, साथ ही साथ IPC की धारा 186 (सरकारी काम में बाधा पहुंचाना), IPC की धारा 353 (सरकारी अधिकारी पर हमला करना), IPC की धारा 332 (लोकसेवकों को चोट पहुंचाना) और IPC की धारा 34 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था, हालांकि, इसके बाद में उन्हें जमानत दे दी गई.

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पत्रकार हमलो पर हैरान कर देने वाले आंकडे

साल 2019 से लेकर 2021 तक आंकडो को उठाकर देखे तो, अब तक भारत में 228 पत्रकारों पर हमला किया गया है. वही कई सारे पत्रकार आज भी भारत की जेलों में सजा काट रहे हैं. न्यू यॉर्क स्थित पोलीस प्रोजेक्ट ने यह निष्कलर्ष एक विस्तृत अध्ययन के बाद निकाला है. इस अध्ययन में पिछले मई 2019 से लेकर इस साल अगस्त तक की घटनाओं को शामिल किया गया है.

यह आंकड़ा पोलीस प्रोजेक्ट ने एक विस्तृत अध्ययन के बाद निकाला है. जिसमें मई 2019 से लेकर अगस्त 2021 तक की घटनाओं का उल्लेख किया गया है. पोलीस प्रोजेक्ट ने अलग-अलग विषयों पर कवरेज करने के दौरान गिरफ्तारी और हमले अध्य यन किया है. इसके अनुसार, जम्मू कश्मीर में 51, सीएए के खिलाफ 26 , दिल्ली दंगों के दौरान 19, कोविड मामलों के दौरान 46 और अब तक किसान आंदोलन के दौरान पत्रकारों पर हिंसा की दस घटनाएं सामने आयी है. बाकी 104 घटनाएं देश भर में अलग-अलग समय और विषयों से जुड़ी हैं.