डोकलाम विवाद : कूटनीतिक संपर्कों और मजबूती से खड़े रहने की जरुरत
डोकलाम सीमा पर भारत और चीन द्वारा सैन्य शक्ति बढ़ाए जाने से जुड़ी खबरें आने के साथ ही दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के शांत होने के आसार नजर नहीं आ रहे। हालांकि बीजिंग में नियुक्त रहे एक पूर्व राजनयिक का कहना है कि भारत को धैर्य से काम लेना चाहिए, सीमा पर दमदार तरीके से बने रहना चाहिए और साथ ही अपने कूटनीतिक संपर्को को भी सक्रिय रखना चाहिए।
डोकलाम से पहले भी हुए हैं विवाद
जनवरी, 2016 में सेवानिवृत्त हुए भारतीय राजदूत अशोक कांठा का कहना है कि दोनों देशों के बीच डोकलाम कोई पहला सीमा विवाद नहीं है। अरुणाचल प्रदेश की सुमडोरोंग चू घाटी में वांगडुंग को लेकर 1986 तक विवाद उठते रहे, जब तक कि वार्ता के जरिए इसे हल नहीं कर लिया गया।
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इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के निदेशक कांथा ने कहा, “अगर चीन इस विवाद पर आपसी समझ हासिल करने में कुछ समय लेता है तो उसे लेने दें। भारत को मौजूदा वस्तुस्थिति में अपनी पूरी ताकत के साथ बने रहने की जरूरत है और आपसी समझदारी विकसित होने का इंतजार करने की जरूरत है।”
1986 के गतिरोध को याद करते हुए कांथा कहते हैं, “मैं वांगडुंग विवाद से उसके समाधान तक जुड़ा रहा। 1986 के मध्य से इस मुद्दे को लेकर आपसी समझदारी विकसित होनी शुरू हुई थी। हमने 1987 के आखिर में जाकर सैन्य तैनातियां कम करनी शुरू कीं। लेकिन वास्तव में दोनों देशों की सेनाओं के बीच तकरार में कमी आने में नौ वर्ष लग गए।”
डोकलाम विवाद जल्द सुलझे
हालांकि कांथा का मानना है कि डोकलाम विवाद के समाधान में इतना लंबा वक्त नहीं लगना चाहिए। वह कहते हैं, “और अगर लंबा वक्त लगता है तो हमें इंतजार करना होगा। हमें धैर्य रखना होगा।” भारत द्वारा पूर्वी सेक्टर में सैन्य तैनातियां बढ़ाए जाने की खबरों पर वह कहते हैं कि भारत ने तैनातियों के मामले में एहतियाती कदम उठाए होंगे, लेकिन ‘बड़े पैमाने पर कुछ नहीं हो रहा है’।
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कांथा का कहना है, “मुझे नहीं लगता कि इलाके में किसी तरह की तकरार बढ़ेगी।” कांथा के अनुसार, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संपर्क सक्रिय हैं और बीजिंग तथा नई दिल्ली में इस समय तैनात दोनों ही राजनयिक बेहद अनुभवी हैं, जिनके पास भारत-चीन संबंधों का लंबा अनुभव है।
पिछले महीने एनएसए डोभाल चीन दौरे पर थे
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पिछले महीने बीजिंग दौरे पर थे, जहां उन्होंने ब्रिक्स सुरक्षा बैठक से इतर अपने चीनी समकक्ष स्टेट काउंसिलर यांग जिएची के साथ द्विपक्षीय वार्ता में हिस्सा लिया था।
कांथा कहते हैं, “बातचीत बाधित नहीं हुई है। अमूमन चीन के साथ हमारा संपर्क बेहतर ही है। वे यह भी कह सकते थे कि भारत जब तक सैनिकों को वापस नहीं बुलाएगा, कोई बातचीत नहीं हो सकती। लेकिन व्यवहारिक धरातल पर बातचीत होती है। नाथू ला में सैन्य अधिकारियों की बैठक होती है। कूटनीतिक स्तर पर विभिन्न संपर्क सक्रिय हैं।”
चीन मामलों के विशेषज्ञ श्रीकांत कोंडापल्ली के अनुसार, उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच उपजे तनाव के चलते डोकलाम मामला थोड़ा शांत हो सकता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चीनी अध्ययन विभाग में प्रोफेसर कोंडापल्ली ने आईएएनएस से कहा, “बीजिंग के सामने उत्तर कोरिया की दूसरी स्थिति भी है।
उत्तर कोरिया अगर परमाणु हथियार का इस्तेमाल करता है तो बीजिंग पर असर पड़ेगा। संभव है हमें तकरार की तीव्रता में कमी दिखाई दे, क्योंकि कोई भी देश दो-दो मोर्चो पर युद्ध नहीं लड़ सकता।” चीन ने उत्तर कोरिया से लगी 1,415 किलोमीटर लंबी सीमा पर पहले ही सैन्य तैनातियां बढ़ा दी हैं। कोंडापल्ली के अनुसार, उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच चल रहा तनाव ‘वाइल्ड कार्ड’ जैसा है।
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