भीमा कोरेगांव हिंसा : कोर्ट ने कहा, साजिश की जड़ें बहुत गहरी

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एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे पुलिस कई कार्यकर्ताओं की जांच पड़ताल कर रही है। बॉम्बे हाई कोर्ट का इस मामले में कहना है कि इस साजिश की जड़ें बहुत गहरी हैं, जिसके नतीजे भी बेहद गंभीर हैं। बता दें कि यह टिप्पणी न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति एसवी कोतवाल की खंडपीठ ने इस मामले में एक आरोपी आनंद तेलतुंबडे की उस याचिका पर विचार करते हुए की, जिसमें आरोपी ने अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया है।

तेलतुंबडे ने दावा किया था कि उन्हें मामले में फंसाया जा रहा है। अपनी याचिका में कार्यकर्ता ने अपने खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया। पुलिस ने दावा किया कि उसके पास कार्यकर्ता के खिलाफ काफी सबूत हैं। पीठ ने कार्यकर्ता की याचिका को 21 दिसंबर को खारिज कर दिया। इसका आदेश सोमवार को प्राप्त हुआ।

अभियोग चलाने के लिए है पर्याप्त सामग्री

पीठ ने कहा कि तेलतुंबडे के खिलाफ अभियोग चलाने लायक सामग्री है। पीठ ने इन सबके इतर यह भी कहा, ‘अपराध गंभीर है। साजिश गहरी है और इसके बेहद गंभीर प्रभाव हैं। साजिश की प्रकृति और गंभीरता देखते हुए, यह जरूरी है कि जांच एजेंसी को आरोपी के खिलाफ सबूत खोजने के लिए पर्याप्त मौका दिया जाए।’ जांच के प्रति संतोष व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा कि पुणे पुलिस के पास तेलतुंबडे के खिलाफ पर्याप्त सामग्री है और उनके खिलाफ लगाए गए आरोप आधारहीन नहीं हैं।

प्रतिबंधित संगठन से संबंधों की होनी चाहिए जांच

हाई कोर्ट ने रेखांकित किया कि शुरू में पुलिस की जांच इस साल (2018) एक जनवरी को हुई हिंसा तक सीमित थी, जो पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में हुई एलगार परिषद के एक दिन बाद हुई थी। पीठ ने कहा, ‘बहरहाल, अब जांच का दायरा कोरेगांव-भीमा घटना तक सीमित नहीं है लेकिन घटना की वजह बनी गतिविधियां और बाद की गतिविधियां भी जांच का विषय हैं।’ पीठ ने कहा कि तेलतुंबडे के प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) से संबंध की जांच की जानी चाहिए।

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हाई कोर्ट को सौंपे गए आपस में लिखे गए पत्र

न्यायमूर्तियों ने कहा, ‘मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता (तेलतुंबडे) के खिलाफ आरोप और सामग्री, एक प्रतिबंधित संगठन के सदस्य होने के आरोप से ज्यादा है। पुलिस की ओर से इकट्ठा की गई सामग्री में उनकी भागीदारी और सक्रिय भूमिका बताई गई है।’ तेलतुंबडे की याचिका का विरोध करते हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक अरुणा कामत-पाई ने हाई कोर्ट को पांच पत्र सौंपे, जो आरोपियों ने कथित रूप से आपस में लिखे थे। इनमें तेलतुंबडे का नाम सक्रिय सदस्य के तौर पर उल्लेखित है।

पत्र में किया गया कॉमरेड आनंद नाम के व्यक्ति का जिक्र

तेलतुंबडे के वकील मिहिर देसाई ने दावा किया कि इन पत्रों से कार्यकर्ता की संलिप्तता को साबित नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्होंने इसमें आनंद या कॉमरेड आनंद नाम के व्यक्ति का जिक्र किया है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि पत्रों में जिस व्यक्ति का हवाला दिया जा रहा है वह असल में याचिकाकर्ता ही है।

एल्गार परिषद सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों की वजह से हिंसा

गौरतलब है कि पुणे पुलिस ने पिछले महीने एक स्थानीय अदालत में एल्गार परिषद मामले में दस कार्यकर्ताओं और फरार माओवादी नेताओं के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। एक जनवरी 2018 को 1818 में हुई कोरेगांव-भीमा की लड़ाई को दो सौ साल पूरे हुए थे। पुलिस ने आरोप लगाया कि 31 दिसंबर 2017 को हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में भड़काऊ भाषणों और बयानों के कारण कोरेगांव भीमा गांव में एक जनवरी को हिंसा भड़की।

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