सिर्फ यौन सुख के लिए मुस्लिम धर्म में होता है मुता निकाह ….

जानें क्या होता है मुता निकाह ?

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हर धर्म में अपनी-अपनी मान्यताएं और रिवाज हैं जिसका पालन हर कोई पूरी श्रद्धा पूर्वक करता है, लेकिन यह भी सच्चाई है कि हर धर्म में कुछ कुप्रथाएं होती हैं जो रूढ़िवादी लोगों द्वारा कमजोर वर्ग का शोषण करने के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. आज बात ऐसी ही एक बुरी आदत की करेंगे जो महिलाओं के लिए एक आघात की तरह है. वह है इस्लाम धर्म में यौन सुख के लिए किया जाने वाला मुताह निकाह जिसे नाम बेशक शादी का दिया जाता हो, लेकिन यह एक समझौता मात्र होता है. मुताह का अर्थ होता है आनंद, मजा या फायदा जो इस तरह की शादी के उद्देश्य पर गहरे सवालिया निशान लगाने का काम करता है. ऐसे में आइए जानते है कि, क्या होता है मुता विवाह….

क्या होता है मुता निकाह ?

इतिहास को उठा कर देखे तो, उसमें मुता निकाह का जिक्र मिलता है. बताते है कि,इस्लाम में यह विवाह तब होता था जब मुगल किसी महिला की तरफ आकर्षित हो जाते थे,लेकिन उसे किसी वजह से बेगम या रानी नहीं बना सकते थे, ऐसे में उस औरत से यौन सुख की प्राप्ति के लिए मुगल मुता निकाह कर लेते थे. अक्सर यह निकाह तभी होता था जब मुगल परिवार का कोई बादशाह या शहजादा दूसरे धर्म की औरत की तरफ आकर्षित हो जाता था. खास तौर पर इस विवाह को यौन सुख और आनंद के लिए किए जाने वाले अस्थायी विवाह के तौर पर जाना जाता था. इस निकाह में औरत को कभी विवाहिता का दर्जा नहीं मिलता था.

मुता विवाह को लेकर प्रचलित है कहानी

मुस्लिम कानून के अनुसार, यह विवाह चार प्रकार से किया जाता था पहला-साहिह, दूसरा-बातिल, तीसरा-फासिद और चौथा व अंतिम मुता होता था. इसमें मुता निकाह हमेशा से ही विवादित रहा है. इसे मुस्लिम समुदाय के कई ब्रांचेज भी नहीं मानते हैं. उदाहरण के लिए, सु्न्नी इस निकाह को नहीं मानते है. इस शादी से जुड़ा एक कहानी भी प्रचलित है. जिसमें बताते है कि, बादशाह शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह का दिल दरबार में नाचने वाली एक हिंदू नर्तकी राना-ए-दिल पर आ गया था और यह दिल इस कदर आया कि शहजादें दिन-रात उसी के बारे में सोचता रहता था. उसके प्यार ने उसे पागल बना दिया. हालांकि, शुरू में राना ने उसके प्यार को नहीं माना.

ऐसे शुरू हुआ मुता निकाह

लेकिन धीरे-धीरे दारा शिकोह को लगने लगा कि वह उसे पाने और आलिंगन में बंद करने के लिए बेतरह उत्सुक है. किसी भी परिस्थिति में शाहजहां इन दोनों को मिलाने के पक्ष में तैयार नहीं था. उसने पूरी कोशिश की कि दारा इस माशूका को भूल जाए. वही राना की कड़ी शर्त थी कि जब वह उससे शादी करेगी तो वह उसके साथ किसी भी तरह का शारीरिक संबंध बनाएगी. शाहजहां ने मन मारकर दारा शिकोह को राना से शादी करने की अनुमति दी, क्योंकि उसे लगता था कि उसे राना से दूर नहीं किया जा सकता था. हालांकि, शाहजहां ने भी शर्त लगाई कि विवाह केवल मुता विवाह ही होगा। तब तक दारा की पत्नी नादिरा बेगम जीवित थी और सबसे बडी बात यह थी कि दारा जिस औरत को रानी बनाना चाहता था वह हिंदू महिला थी.

अंतत: शाहजहां ने राना की शर्त को मानते हुए दारा और राना का निकाह करा दिया, लेकिन यह निकाह मुता निकाह ही हुआ. इस निकाह से राना को दारा की पत्नी नहीं बल्कि उपपत्नी का दर्जा हासिल हुआ. जो दारा की मौत तक जारी रहा. मुगल इतिहास में इस तरह के विवाह कई बार हुए हैं, जो सिर्फ शारीरिक सुख और आनंद के लिए किए जाते थे. उनका विवाह आनंददायक होता है. इस्लाम में मुता विवाह एक निश्चित समय तक चलने वाला विवाह है. निकाह मुत’ह या सिघेह भी इसका नाम है.

मुता निकाह के नियम

– यह एक निजी और मौखिक अस्थायी विवाह अनुबंध है, जिसके लिए दोनों पक्ष को 15 वर्ष से अधिक की आयु होनी चाहिए।
– विवाह का महर और समय पहले से तय होना चाहिए और दोनों पक्षों ने इस पर सहमति बनानी चाहिए। निकाह नामा में समय और मेहर का उल्लेख होना चाहिए।
– पहले से ही संबंध पर सहमति होनी चाहिए
– महिला को धन मिलना चाहिए।
– विवाह एक दिन, एक महीना, एक वर्ष या कई वर्षों के लिए हो सकता है
– मुता पत्नियों की संख्या पर कोई सीमा नहीं है
– मुता विवाह में पूर्ण पत्नी नहीं बन सकती

किन कारणों से रद्द होता है मुता निकाह

– विवाह का एक वर्ष पूरा होने पर
– किसी एक पक्ष की मौत पर
– मुता विवाह की अवधि पूरी होने पर भी महिला का जीवन सामान्य नहीं हो पाता, उसे इद्दत करनी होगी. इद्दत की रस्म चार महीने या दस दिन चलती है. इस दौरान महिला को पुरुष की छाया से दूर रहना चाहिए, तभी वह पुनर्विवाह के योग्य होता है.
– ऐसे विवाह से जन्मे बच्चे वैध हैं, उन्हें माता-पिता की संपत्ति मिलने का अधिकार है.

तलाक और संपत्ति का होता है कितना अधिकार

– विरासत पर पारस्परिक अधिकार नहीं है.
– मुता पत्नी पर्सनल लॉ के तहत भोजन की हकदार नहीं है.
– पत्नी पूरा प्यार पाने की हकदार है अगर पति साथ रहता है, लेकिन अगर नहीं रहता तो आधा प्यार पाने की हकदार है.
– मुता विवाह में तलाक स्वीकार्य नहीं है.

मुता निकाह कब होता है खत्म

मुता विवाह निम्नलिखित में से किसी एक कारण से टूट सकता है:
1. समयावधि समाप्त हो गई
2. किसी एक पक्ष का निधन

मुता निकाह को लेकर क्यों है विवाद ?

मुता निकाह एक ऐसी स्थिति है, जहां इस्लाम के नियमों को छूट मिलती है. मुता निकाह की अनुमति पर बहुत से सुन्नी विद्वानों ने कहना है कि, इस प्रथा को पैगंबर ने समाप्त कर दिया था. दूसरी तरफ बारहवें शिया विद्वानों का कहना है कि, पैगंबर ने मुताह को अनुमोदित किया था, कुछ विद्वान इसे वैध वेश्यावृत्ति भी बताते है.

कौन करते थे मुता निकाह ?

ऐतिहासिक तौर पर मुता निकाह बादशाह, सुल्तान और उनके परिवारों में ऐसे विवाहों में पुरुषों की संख्या अधिक थी. इसके अलावा लंबे समय तक दूर रहने वाले व्यापारी भी ऐसे निकाह करते थे. यह ज्यादातर उन लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता था जो अपनी पत्नी के साथ घर पर नहीं रह सकते थे और लंबी यात्राएं करते थे. उदाहरण के लिए, यात्रा करने वाला व्यापारी एक शहर में पहुंचकर कुछ महीनों तक रुकता था, तो वहाँ इस तरह का मुता निकाह कर सकता था. ये विवाह खत्म हो गया जब वह अगले शहर चला जाता था.

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क्या भारत में मान्य है मुता निकाह ?

यदि बात करें आज के समय में मुता निकाह की तो संवैधानिक तौर पर भारत में मुता निकाह को मान्यता नहीं दी गयी है. इसके बावजूद, भारत में कुछ शिया मुसलमान इसका अभ्यास करते हैं. शिया पर्सनल लॉ (एप्लिकेशन) अधिनियम 1937 जो भारत में शिया मुसलमानों के व्यक्तिगत कानून को नियंत्रित करता है, मुता विवाह का उल्लेख नहीं करता है. लेकिन मुस्लिम लॉ बोर्ड के अधिनियम में मुता विवाह पर रोक का भी कोई प्रावधान नहीं है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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