कासगंज में दशकों से 4 मुस्लिम परिवार बना रहें गंगाजली, फूंक मारकर कांच को देते हैं आकार

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सावन मास जहां हिंदुओं के लिए बेहद खास महीनों में एक होता है। वहीं उत्तर प्रदेश के कांसगंज के निवासी अरमान मियां के लिए भी यह मास किसी वरदान से कम नही होता। सावन मास में कांवड़िये और श्रद्धालु जिस गंगाजली भगवान भोलेनाथ का अभिषेक  करते हैं। उस गंगाजली का निर्माण कासंगज के अरमान मियां बड़े समर्पित भाव से करते हैं। अरमान मियां फूंक मारकर कांच को बोतल का आकार दे देते हैं। इसी कांच की बोतल में गंगाजल भरकर श्रद्धालुओं को दिया जाता है। गंगाजली बनाना अरमान मियां का रोज का काम है। पुरखों से उनका परिवार गंगाजली के निर्माण में लगा हुआ है।

तीन पीढ़ियों से बना रहें हैं गंगाजली 

कासगंज के चार मुस्लिम परिवार हर सावन मास में कांवड़ के लिए गंगाजली तैयार करने में जुट जाते हैं। कांवड़ के लिए गंगाजली तैयार करना अरमान मियां के लिए रोजी-रोटी का कार्य है। इसके साथ ही अरमान मियां का यह कार्य समाज के लिए सर्वधर्मसंभाव के प्रति इनके समर्पण की सराहनीय गाथा भी है। रोजी के प्रति समर्पण भी इतना कि तीन पीढ़ियों से हुनर की ये विरासत इन्हीं जैसे चार मुस्लिम परिवारों के पास रही है। क्योंकि ये परिवार केवल अपनी पीढ़ी को ही यह कला सिखाते हैं। ये इस कला के बारे में अन्य मुस्लिम परिवारों को भी नहीं बताते हैं।

अरमान मियां की फूंक से कांच लेता है आकार

कासगंज में ये कहावत बड़ी ही प्रचलित है कि अरमान मियां के फूंक मारते ही कांच बोतल का आकार ले लेता है। फिर यही गंगाजली बनती है। धधकती भट्ठी में आग उगलते ही कांच को पाइप के जरिए मुंह से हवा फेंककर बोतलनुमा दिया जाता है। फिर इसी कांच की बोतल से गंगाजली तैयार करते हैं। ये गंगाजली हिदुओं के पवित्र कांवड़ का अहम पात्र है। इसे बनने पर ये मुस्लिम परिवार खुदा का भी शुक्रिया अदा करते हैं।

गंगाजली क्या है 

सावन का महीना शुरू होते ही भक्ति की राहों पर कांवड़ की कतारें नजर आने लगी हैं। इस कांवड़ में गंगा घाट से जल ले जाकर भक्त शिवालयों में अर्पित करते हैं। गंगाजल को खास तरह के पात्र (गंगाजली) में भरा जाता है। ये गंगाजली कांच की बोतल जैसी होती है। कांवड़ के लिए गंगाजली तैयार की जाती है। यह कांच की बोतल की बनी होती है। कांच को बोतलनुमा आकार देकर गंगाजली को तैयार किया जाता है। इसमें गंगाजल भरकर श्रद्धालुओं को बेचा जाता है।

 

धधकती आग में बनती है गंगाजली

भट्ठी पर गंगाजली बनाते समय अरमान मियां के हाथ किसी मशीन की तरह चलते हैं। भट्ठी से गर्म कांच निकालने के बाद पाइप के जरिए मुंह की हवा से उसे फुलाते हैं। लोहे की सरिया के सपोर्ट से दबाव बनाकर घुमाते हैं, जिससे यह कांच लंबा आकार ले लेता है। फिर से मुंह की फूंक से बोतल का आकार देकर तपने के लिए दूसरी भट्ठी में रखते हैं।

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दशकों से मुस्लिम कर रहें गंगाजली का निर्माण

पिछले 30 सालों से गंगाजली का निर्माण यहां के चार मुस्लिम परिवार कर रहे हैं। सोरों क्षेत्र के कादरवाड़ी में ही चार मुस्लिम परिवारों की ओर से गंगाजली बनाई जाती है। कासगंज के सोरों क्षेत्र में स्थित गांव में केवल 10 भट्टियां हैं। ये 10 भट्टियां चार मुस्लिम परिवारों द्वारा चलाई जा रही हैं। इन मुस्लिम परिवारों के पुरखों ने करीब सौ से डेढ़ सौ साल पहले इस कला को धामपुर के नगीना में सीखा था। तब से गंगाजली बनाने की यह कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चली आ रही है।

औरों को सिखाने से डरते हैं अरमान मियां

दशकों से यह कला केवल इन्हीं चार मुस्लिम परिवारों तक ही सीमित है। इस पर अरमान मियां बताते हैं कि दूसरों को कांचनली यानी गंगाजली बनाने की कला सिखाने से धंधे को खतरा रहता है। इस डर से यह कला केवल चार मुस्लिम परिवार की पीढ़ी को ही सिखाते आ रहे हैं। अरमान मियां बताते हैं कि दादा के जमाने से काम चल रहा है। हमारे दादा लोग धरामई, सहसवान और जलेसर से आकर यहां बसे थे। तब से यह कला यहीं सीमित रह गई है। इसके बाद उन्होंने यहां पर काम करना शुरू किया। वर्तमान में चार परिवारों में दस भट्ठियां चल रही हैं। विरासत में मिला ये सिर्फ अपने को ही सिखाते हैं औरों को सिखाने पर हमारे हाथ से ये काम छिनने का खतरा रहेगा।

गंगाजली निर्माताओं को सरकारी मदद की आस

कादरवाड़ी से गंगाजली निर्माता सलीमने कहा कि क्षेत्र में इस कार्य को काफी समय हो गया है। हाथ से होने वाले इस काम को करने में 12 घंटे से भी जायदा समय लग जाता है। इस काम को बढ़ावा देने के लिए सरकारी मदद की आस है। कादरवाड़ी से गंगाजली निर्माता ईशुभ ने बताया कि वह बचपन से यह काम कर रहे हैं। दिन भर काम करने के बाद मात्र 200 से 300 रुपये की मजदूरी हो पाती है। सरकार को इस काम को बढ़ावा देने के लिए कुछ प्रयास भी करने चाहिए।

निर्माता राशिद ने कहा कि दादा परदादा की पीड़ी से गंगाजली बनाने का कार्य किया जा रहा है। दादा ने गंगाजली बनाना सिखाया था। तभी से गंगाजली बनाते आ रहे हैं। सावन और शिवरात्रि से एक महीने पहले काम शुरू कर देते हैं। निर्माता नाजिम ने कहा कि हमारे पूर्वज दूरदराज से आकर यहां बस गए। उसके बाद से गंगाजली बनाने का कार्य शुरू हो गया था। इसी कार्य पैदावार का मुख्य जरिया बना लिया। पिता ने गंगाजली बनाने का कार्य सिखाया था।

कासगंज से दूर-दूर तक जाती है गंगाजली

इन चारों मुस्लिम परिवारों द्वारा तैयार गंगाजली कासगंज से दूर-दूर तक भेजी जाती है। कासंगज के सोरों से लेकर रामघाट एवं राजघाट नरौरा, कछला, फर्रुखाबाद के रामपुर सहित अन्य जगह पर गंगाजली की बिक्री की जाती है। यहां से फिर यह गंगाजली उत्तर भारत में सप्लाई होती है। इसी गंगाजली में पावन गंगा जल भरकर कांवड़िये भगवान शिव का अभिषेक करते हैं।

 

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