कोरोना और बाढ़ ने सीधी तौर पर पेट पे मारी लात

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आसमान से गिरे और खजूर पे अटके हैं। नदी का पानी गांव में प्रवेश कर गया है। न ही गांव से बाहर जा सकते हैं और न ही कोरोना डर के चलते लोग एक दूसरे से मिल रहे। 2017 के बाद बाढ़ की ऐसी स्थिति बानी हुई है। यह आधा गांव दिल्ली, मुंबई, कर्नाटक जैसे शहरों में अपनी रोजी-रोटी कमाता है। खेती में मजदूरी से उम्मीद बंधी थी तो बाढ़ के कारण ठप हो गई। गांव में मनरेगा का काम शुरु हुआ था, लेकिन वह भी बारिश और बाढ़ के बाद से बंद है। अब घरों में कैद हैं लोग दाने-दाने के लिए मेहेंगे हो चुके है।

उम्मीद की कोई राह नहीं आ रही है नजर

गोरखपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर करजही गांव की यह स्थिति बन पड़ी है। काश्तकार परेशान हैं। ज्यादातर बाहरी प्रदेशों में मजदूरी पर आश्रित लोग यहां लॉकडाउन के दौरान लौट आए थे। सभी पेंट-पुताई आदि का काम करते हैं। कुछ दिन मनरेगा के तहत सड़क मरम्मती के काम ने पेट को सहारा दिया, लेकिन बारिश शुरू होते ही यह काम ठप हो गया गया। खेत बाढ़ में डूबे हैं और उम्मीद की कोई राह नजर नहीं आ रही।

उफान पर हैं पूर्वोत्तर की नदियां

दक्षिण-पश्चिमी मानसून के चलते उत्तर भारत में गंगा और उसकी सहायक नदियों (घाघरा, राप्ती, गंडक) समेत पूर्वोत्तर की नदियां उफान पर हैं। खासतौर से पश्चिम बंगाल,असम, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में नदी किनारे मौजूद गांवों का हालत बेहद खराब हैं।

इन्हीं गांवों से रोजगार की तलाश में बाहर प्रवास भी खूब होता है। फिलहाल कुछ जगहों पर गांव के नेटवर्क टूट गए हैं और खेतों में बाढ़ का पानी इतना ज्यादा भर गया है कि कुछ गांवों में धान की खेती शुरु नहीं हो सकी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत में घाघरा, राप्ती और क्वानो नदी समेत बिहार में कोसी इलाके में नदियां खतरे के निशान को पार कर गई हैं। मौमस विभाग के अनुमान के तहत यदि उप-हिमालयी क्षेत्र समेत तराई में कुछ दिन और जोरदार वर्षा का अनुमान है। खेतों में मजदूरी का एकमात्र विकल्प भी खत्म होने के कारण परिवार फाकाकशी पर आ गए हैं।

कोरोना

उत्तर प्रदेश में ही बाराबंकी जिले में घाघरा नदी के कारण एल्गिन-ब्रिज, फैजाबाद में अयोध्या, वहीं राप्ती के कारण गोरखपुर में बर्डघाट और बलिया में तुर्तीपार व लखीमपुर खीरी जिले में शारदा नदी के कारण पलियाकलां में बाढ़ के कारण स्थिति खराब है। इनमें से ज्यादातर जगहों पर बीते ही वर्ष योगी सरकार ने ड्रेजिंग के जरिए नदी मार्ग परिवर्तन करके गांवों को बाढ़ के प्रकोप से बचाने की जुगत की थी, लेकिन बाढ़ ने उनको तमाम कामों को अपने सामने टिकने नहीं दिया।

वहीं बिहार में कोसी अंचल में स्थिति और भयानक बन गई है। ग्रामीणों के बीच चेतावनी जारी है। लोग रिलीफ के लिए एकजुट हो रहे हैं और प्रशासन से राहत कार्यों के लिए लॉकडाउन में छूट की मांग कर रहे हैं। तटबंध के बीच लगभग सभी घरों और आंगन में पानी भरा हुआ है। पशु भी पानी में ही खड़े हैं। ऊंचे स्थानों की तरफ लोग भाग रहे हैं ताकि उनका जीवन बच सके। आरोप लगया जा रहा है कि 9 जून से ही राहत कार्यों के लिए कमर कसने को कहा गया था लेकिन प्रशासन ने इसकी अनदेखी की है।

कोसी अंचल के गांवों में लोग जिनके घरों में पानी घुस गया है नव निर्माण मंच के लोग पीड़ित लोगों की सूची बनाकर एक दूसरे के पास पहुंचा रहे हैं। वहीं, अभी और ज्यादा बारिश इस इलाके में हो सकती है जिसकी वजह से बाढ़ की समस्या जानलेवा साबित होगी।

जलभराव की समस्या

मध्य प्रदेश में जुलाई के शुरुआत तक काफी अच्छी करीब 88 फीसदी अधिक बारिश हुई, लेकिन जुलाई के बाद से तीन हफ्ते बेहद सूखे निकल गए और इस बीच दिल्ली में एक दिन की भारी वर्षा ने मिंटो रोड पर बाढ़ जैसे जलभराव की समस्या को फिर से सामने ला दिया। फिलहाल, मध्य प्रदेश में बारिश जारी है। अभी तक सर्वाधिक नुकसान पश्चिम बंगाल में हुआ है।

नेशनल इमरजेंसी रिस्पांस सेटंर (एनडीएमआई) के 20 जुलाई की रिपोर्ट के मुताबिक वतर्मान मानसून की वजह से अब तक पश्चिम बंगाल में 142 की मृत्यु, असम में 111, गुजरात में 81, महाराष्ट्र में 46, मध्य प्रदेश में 44, केरल में 25, उत्तराखंड में 19 और उत्तर प्रदेश में 2 की मृत्यु हुई है। वहीं 91,950 लोग विस्थापित हुए हैं, जबकि बिहार को जोड़कर ऊपर के इन आठ राज्यों में कुल 6,085,400 लोग प्रभावित हुए हैं।

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