यूपी में सत्ता की गलियों में कई टोटके दशकों से कायम हैं | 2 The Point

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यूपी में सत्ता की गलियों में कई टोटके दशकों से कायम हैं… अपशगुन बंगला हो, मुख्यमंत्री के नोएडा जाने मसला हो… सियासत में टोटके, अंधविश्वास, किवदंतियो का भी खूब बोलबाला रहा है… अभी भी बरकरार है।

इसी कड़ी मे एक नयी सियासी किवदंती ने जन्म लिया है। वो है यूपी के नेताओं का मध्यमप्रदेश के गर्वनर पद से कनेक्शन। दरअसल मौजूदा गर्वनर लालजी टंडन का पद पर रहने के दौरान ही निधन हो गया। इससे पहले यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्ता 2003 में एमपी के गर्वनर बनाए गए थे। कार्यकाल पूरा भी नहीं कर पाए। 2004 को उनका निधन हो गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामनरेश यादव वर्ष 2011 में एमपी के गवर्नर बनाए गए, कार्यकाल 2016 में पूरा भी कर लिया लेकिन कार्यवाहक गर्वनर का जिम्मा संभाले हुए थे कि उनकी मौत हो गयी।

लालजी टंडन ने बीते साल 20 जुलाई को पद संभाला था जिसके ठीक एक साल बीतने के बाद 21 जुलाई 2020 को राज्यपाल पद पर रहते हुए ही उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद ये चर्चा आम हो गई है कि क्या यूपी के नेताओं के लिए मध्य प्रदेश के राज्यपाल का पद शुभ नहीं है?

बहरहाल, एक बड़ा टोटका जुड़ा है लखनऊ मे मुख्यमंत्री आवास से सटे छह नंबर के बंगले को लेकर कभी यहां मुलायम के बगलगीर अमर सिंह रहते थे। पर बंगले में रहने के दौरान मनमुटाव हुआ उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया, बाबू सिंह कुशवाहा मायाराज में आए पर सीएमओ मर्डर केस में नाम आया बाद में बसपा से निकाले गए जेल गए।

अखिलेश राज में जावेद आब्दी को बंगला मिला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में चेयेरमैन बने राज्यमंत्री का दर्जा मिला लेकिन भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त हो गए, 2012 में वकार अहमद शाह को ये बंगला मिला। कुछ दिनो में ही उनकी तबियत खराब हुई फिर वे कभी बिस्तर ने नहीं उठ सके बाद में उनके परिवार ने भी बंगला छोड़ दिया।

पशुधन एसपी सिंह बघेल को मिला, बाद में वे भी सांसद बन गए और बंगला छोड़ दिया। कई साल पहले यहां रही पूर्व मुख्य सचिव नीरा यादव नोएडा में जमीन घोटाले में जेल गयीं। पूर्व प्रमुख सचिव स्वास्थ्य प्रदीप शुक्ला भी यहां रहे और उन्हें भी एनआरएचएम घोटाले में जेल जाना पड़ा।

एक अंधविश्वास यूपी के सबसे विकसित जिले नोएडा को लेकर भी रहा है। दरअसल 23 जून 1988 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह नोएडा गए थे जिसके अगले ही दिन उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा, कल्याण सिंह भी नोएडा गए उन्हें भी कुर्सी छोड़नी पड़ी।

इसके बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मायावती से लेकर अखिलेश यादव….सभी नोएडा से डरते रहे।

राजनाथ सिंह ने नोएडा में एक फ्लाईओवर का उद्घाटन भी दिल्ली से किया था।

निठारी कांड के बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव नोएडा नहीं गए।

मुख्यमंत्री रहीं मायावती ने इस मिथक को तोड़ने का साहस किया और साल 2011 में वह नोएडा गई, लेकिन इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में बसपा हार गई।

एडीबी की महत्वपूर्ण बैठक में अखिलेश यादव नोएडा जाने का साहस नहीं जुटा सके।

हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मिथक को तोड़ा कई दफे नोएडा गए।

जाहिर है दकियानूसी परंपराए, अंधविश्वास सियासत का हिस्सा हैं। इस हकीकत से इंकार नहीं किया जा सकता है।

चूंकि सियासत दान कुर्सी को लेकर बेहद लगाव रखते हैं किसी भी दशा मे छोडना नहीं चाहते हैं।

ऐसे में तमाम जोड़तोड़ तिकड़म उठा पटक के बीच टोटकों और अंधविश्वास को भी नकारने का साहस नहीं कर पाते हैं।

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