अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ एक बार फिर सुर्खियों में छाई हुई हैं। आईएमएफ ने भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़त के अनुमान को काफी घटा दिया है। आईएमएफ ने दावोस में चल रहे विश्व आर्थिक मंच की बैठक के दौरान इस अनुमान को जारी किया।
आईएमएफ की मुख्य इकोनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ ने कहा कि भारत सहित कई देशों में छाई सुस्ती का असर दुनिया भर में देखने को मिल रहा है। उनका कहना है कि 2020 में वैश्विक वृद्धि में तेजी अभी काफी अनिश्चित बनी हुई है।
कौन हैं गीता गोपीनाथ—
गीता गोपीनाथ ने जनवरी 2019 में आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में कार्यभार संभाला था। वह इस पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला हैं। उन्हें आईएमएफ के अनुसंधान विभाग का निदेशक भी बनाया गया। वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्टडीज एंड इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर हैं।
वह राष्ट्रीय आर्थिक अनुसंधान ब्यूरो में अंतर्राष्ट्रीय वित्त और मैक्रोइकोनॉमिक्स कार्यक्रम की सह-निदेशक भी हैं। वह केरल सरकार की आर्थिक सलाहकार के तौर पर काम कर चुकी हैं।
डीयू की छात्रा है गीता गोपीनाथ—
8 दिसंबर 1971 को कोलकाता में जन्मीं गीता गोपीनाथ ने मैसूर से अपनी स्कूली शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 1992 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वूमेन से अर्थशास्त्र में स्नातक और 1994 में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से परास्नातक की डिग्री ली। उनके पास यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन की परास्नातक डिग्री भी है।
जी-20 सलाहकार समिति की रहीं सदस्य—
वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अंतराष्ट्रीय अध्ययन और अर्थशास्त्र की प्रोफेसर रही है। इससे पहले उन्होंने असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में पढ़ाया है। वह भारत के वित्त मंत्रालय के जी-20 सलाहकार समिति में प्रतिष्ठित सदस्य के रूप में भी शामिल रही है।
उन्होंने 2001 में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय व्यापक अर्थशास्त्र और व्यापार में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। गोपीनाथ को 2019 में शैक्षणिक वर्ग में राष्ट्रपति से प्रवासी भारतीय सम्मान मिला था।
आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री चुने जाने के बाद गीता गोपीनाथ ने भारत में नोटबंदी की कड़ी शब्दों में आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि कोई भी बड़ा अर्थशास्त्री नोटबंदी को जायज नहीं ठहरा सकता है। उनका कहना था कि न तो सभी नकदी कालाधन होती है और न भ्रष्टाचार।
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