बेचता था चूड़ी, बन गया IAS

0

‘चूड़ी ले लो…चूड़ी…’ चूड़ी बेचने वाली यह आवाज कभी ‘महागांव’ की गलियों में हर दिन सुनाई पड़ती थी। हर सुबह जब एक लड़का अपनी मां के साथ चूड़ी बेचने निकलता था, तब दो वक्त की रोटी के लिए उसके जीवन के संघर्ष की कहानी नए सिरे से शुरू होती थी। 10 साल की उम्र तक मां के साथ चूड़ी बेचने वाले उस बच्चे ने कमाल कर दिखाया। उस बच्चे की पहचान आज ‘आईएएस रमेश घोलप’ के रूप में सबके सामने है।

IAS1

महाराष्ट्र के सोलापुर जिला के वारसी तहसील स्थित उनके गांव ‘महागांव’ में रमेश की संघर्ष की कहानी हर जुबान पर है। परिस्थितियों ने जहां रमेश को जीवन के लिए लड़ना सिखाया, वहीं गरीबी, शराबी पिता और भूख ने एक सपने को जन्म दिया। कठिन परिश्रम और सच्ची लगन ने उस सपने को हकीकत का नाम दिया, जो आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है।

दिन में चूड़ी, रात में पढ़ाई

रमेश अभी झारखंड मंत्रालय के ऊर्जा विभाग मे संयुक्त सचिव हैं और उनकी संघर्ष की कहानी प्रेरणा बनकर लाखों लोगों के जीवन में ऊर्जा भर रही है। रमेश दिन भर चूड़ी बेचने के बाद जो पैसे जमा होते थे, उसे पिताजी शराब पर खर्च कर देते थे। रमेश के पास न रहने के लिए घर था और न पढ़ने के लिए पैसे। था तो सिर्फ हौसला, जो उनके सपनों को पूरा करने के लिए काफी था।

ias3

रमेश का बचपन उनकी मौसी को मिले सरकारी योजना के तहत इंदिरा आवास में बीता। वह वहां आजीविका की तलाश के साथ पढ़ाई करते रहे। मैट्रिक परीक्षा से एक माह पूर्व ही पिता का निधन हो गया। इस विपरीत हालात में मैट्रिक परीक्षा दी और 88.50% अंक हासिल किया।

गाय खरीदने के लिए मिले कर्ज से पढ़ा

रमेश बताते हैं कि उन्होंने वह दिन भी देखे हैं, जब घर में एक अन्न नहीं होता था। फिर पढ़ाई का खर्च उनके लिए बहुत बड़ी मुसीबत थी। रमेश आगे कहते हैं कि एक बार मां को सामूहिक ऋण योजना के तहत गाय खरीदने के नाम पर 18 हजार रुपये के कर्ज मिले, जिसको उन्होंने पढ़ाई करने के लिए इस्तेमाल किया।

तहसीलदार से मिला लक्ष्य

रमेश 2005 में इंटर पास करने के बाद 2008 में डिप्लोमा करके शिक्षक की नौकरी की। यहां शिक्षकों के आंदोलन का नेतृत्व किया। आंदोलन करते हुए मांग पत्र देने तहसीलदार के पास जाते थे। बस इसी ने मन में कौतुहल मचा दी। शुरुआत में उन्होने तहसीलदार की पढ़ाई करने का फैसला किया और तहसीलदार की परीक्षा पास कर तहसीलदार बने, लेकिन कुछ वक्त बाद उन्होने आईएएस बनने को अपना लक्ष्य बनाया।

ias2

जिद ने बना दिया IAS

रमेश बताते हैं कि वर्ष 2010 में वे अपनी मां को पंचायत के मुखिया के चुनाव में खड़ा किया, पर उनकी मां हार गईं। इसके बाद उन्होंने गांव छोड़ने का फैसला किया। रमेश ने मन में तय कर लिया कि अब गांव तभी आएंगे, जब अफसर बन जाएंगे। 4 मई 2012 को जब अफसर बनकर गांव पहुंचे, तो जोरदार स्वागत हुआ।

 

 

 

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More