Huranga Festival: मथुरा मेें हुरंगा पर्व आज, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन विधि
Huranga Festival: होली खुशी, उत्साह और रंगों का त्योहार है. यह पूरी दुनिया में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है. भारत में होली को कई अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, जो सांस्कृतिक रूप से अलग-अलग हैं. पूरे भारत और विश्व भर में ब्रज की होली प्रसिद्ध है. अकेले ब्रज में दस दिवसीय होली का पर्व मनाए जाने की परंपरा है. वृन्दावन ब्रज में होली मनाने के अलग-अलग तरीके हैं, जैसे बरसाना की प्रसिद्ध लट्ठमार होली से लेकर बांके बिहारी जी मंदिर की फूलों की होली आदि.
इसी के साथ ही इस दस दिवसीय पर्व के अंतिम दिन बलराम के गांंव में हुरंगा पर्व मनाए जाने की परंपरा है. यह इस साल 26 मार्च मंगलवार को मनाया जा रहा है. इस दिन पुरूष और महिलाएं एक साथ होली खेलते हैं और पुरूषों को हुरियारे और महिलाओं को हुरियारिन कहा जाता है. दाऊजी का हुरंगा 26 मार्च 2024 को मथुरा यूपी के दाऊजी मंदिर बल्देव गांव में पूरी धूमधाम से मनाया जाएगा.
हुरंगा पर्व का शुभ मुहूर्त
इस हुरंगा को खेलने के लिए देश और दुनिया भर से भी लोग यहां आते हैं. यह अक्सर हुरंगा दाऊजी मंदिर में दोपहर 12 बजे शुरू होता है. बलदेव जी की पूरी कहानी अब मंदिर में दिखाई देती है. हुरंगा का आनंद लेते हुए लोग एक-दूसरे पर अबूर-गुलाल फेंकते हैं, हुरंगा की महिमा पंडा समुदाय खुले मन से गाते हैं.
हुरंगा पर्व का इतिहास
दाऊजी का हुरंगा मथुरा के बलदेव गांव में खेला जाता है, जिसका नाम श्रीकृष्ण के बड़े भाई भगवान बलदेव या दाऊजी महाराज के नाम पर रखा गया है. स्थानीय भाषा में दाऊ जी का मतलब बड़ा भाई है. भगवान बलदेव शेषनाग, भगवान विष्णु की दो सवारी में से एक के अवतार थे. ऐसा कहा जाता है कि महारास या महालीला में भगवान बलदेव भगवान कृष्ण का स्थान लेते हैं. कहा जाता है कि हुरंगा, होली का अधिक आक्रामक संस्करण, केवल भगवान बलदेव जी ही खेलते हैं. मंदिर में हुरंगा खेलने की अनुमति केवल गोस्वामी कल्याण देव जी के वंशजों को है.
कल्याण देव जी के वंशजों द्वारा हर साल हुरंगा खेलना अब एक परंपरा बन गया है. इस स्थान पर अकबर के राजाओं ने बल्लभ कुल संप्रदाय के आचार्य गोकुल नाथ जी की मूर्ति स्थापित की थी. इसके बाद हर साल, धुलंडी या बड़ी होली के बाद हजारों लोग बसों में होली खेलने और देखने आते हैं. बलराम, भगवान कृष्ण का बड़ा भाई, होली को सबसे महत्वपूर्ण त्योहार मानते हैं. भागवत पुराण में कहा गया है कि, बलराम (कृष्ण के बिना) एक बार अकेले ब्रज पर लौट आए और गोपियों के साथ खेलने लगे थे. मंदिर में हर साल चैत्र मास की पूर्णिमा पर इस घटना को मनाने और भगवान बलराम को याद करने के लिए हर साल होली के दूसरे दिन हुरंगा पर्व मनाया जाता है.
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कैसे मनाया जाता है हुरंगा पर्व ?
हुरंगा होली खेलने का एक अधिक आक्रामक रूप है. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के साथ वृन्दावन और बरसाना में होली खेली थी. बलराम (दाऊजी) एक बार अकेले जाकर होली खेलने और कुछ शरारतें करने का निर्णय लिया था, इस दिन की याद मेे हर साल ब्रजवासी हुरंगा पर्व मनाते है.
इस हुरंगा को खेलने के लिए देश भर से लोग आते हैं और दुनिया भर से भी आते हैं. यह अक्सर हुरंगा दाऊजी मंदिर में दोपहर 12 बजे शुरू होता है. बलदेव जी की पूरी कहानी अब मंदिर में दिखाई देती है. ग्वालों ने बलराम को सबसे पहले हुरंगा खेलने के लिए बुलाया, वे मंदिर का शिखर पार करते हैं. गोप हुरियारिनों पर गुलाल-अबीर फेंकते हैं, जिससे हुरियारिनें उनके कपड़े फाड़ देते हैं. वे गोपों के कपड़े से कोड बनाकर उनके नग्न शरीर पर मारते हैं. हुरंगा का आनंद लेते हुए लोग एक-दूसरे पर अबूर-गुलाल फेंकते हैं. हुरंगा की महिमा पंडा समुदाय में स्वतंत्र कंठ से गाते हैं