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कोरोना महामारी के दौरान मौत होने के बाद पड़ोसी तो छोडिए रिश्तेदार व परिवार के लोग भी साथ नहीं दे पा रहे हैं. स्थिति ऐसी हो गई है कि दाह संस्कार में अपने भी अब साथ छोडने लगे हैं. इस संक्रमण से जान गंवाने वालों के परिजनों को कोई साथ देने नही आ रहा है. यहां तक की अंतिम दर्शन या फिर अंतिम संस्कार के दौरान भी कई परिवार वाले शामिल नहीं हो पा रहे हैं. हालात ऐसे भयावह हो गये हैं कि मरने वाले परिजनों को संभालने के लिए लोग अपना हाथ नहीं बढ़ा पा रहे हैं. तो वहीं कुछ लोग बिगड़े हालात का फायदा उठाने में जुटे हैं. ऐसी ही तस्वीर देखने को मिल रही हरिश्चंद्र घाट पर. यहाँ पर अंतिम संस्कार के लिए आने वाले शवों को कन्धा देने के नाम पर नया धंधा शुरु हो गया है.
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वैश्विक महामारी कोरोना के बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो आपदा को अवसर बनाकर भुनाने में लगे हैं. ऐसा ही हाल काशी के श्मशान घाट पर भी देखने को मिल रहा है. यहां पर लकड़ियां बेचने वाले दुकानदार और अंतिम संस्कार करने वाले कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के अंतिम संस्कार में मदद की बजाय उनके परिजनों को लूटने में लगे हुए हैं. वे लकडि़यों से लेकर अंतिम संस्कार तक में मनमाने तरीके से धन वसूलने में लगे हैं. मोक्षनगरी काशी के हरिश्चंद्र घाट पर अंतिम यात्रा के दौरान चार कंधे भी अब चार से पांच हजार में उपलब्ध हो रहे हैं. कोरोना संक्रमण के कारण मौत होने पर परिजन भी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो पा रहे हैं. स्थितियां ऐसी बन जा रही हैं कि शव के साथ एक या दो आदमी ही घाट पर पहुंच रहे हैं. ऐसे में शव को सड़क से लेकर चिता तक पहुंचाने के लिए चार कंधों की बोली चार से पांच हजार रुपये में लग रही है. कुछ युवाओं की टोली पैसों के लिए जान हथेली पर रखकर इस काम को अंजाम दे रही है. एक तरफ जरूरत है तो दूसरी तरफ विवशता. मोक्ष की नगरी काशी में अब चार कंधे भी बिना पैसों के उपलब्ध नहीं हो रहे हैं.
इस बीच योगी सरकार ने अंतिम संस्कार फ्री में करने का निर्देश दिया है. लेकिन बनारस के घाटों पर अंतिम संस्कार को छोड़िये अब तो शव को कन्धा देने के लिए भी बोली लग रही है. वाराणसी के मणिकर्निका घाट और हरिश्चंद्र घाट के अलावा दो और अस्थाई घाटों पर अंतिम संस्कार हो रहा है. लेकिन कोरोना काल में जिस तरह शवों के साथ सौदेबाजी हो रही है, ऐसा नजारा पहले कभी नहीं देखने को मिला.