जानें, कब और क्यों मनाते हैं रमजान

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हमारे देश में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं, और सभी धर्मों के अलग-अलग रिति-रिवाज और अपनी परंपराएं होती हैं। कोई धर्म पुराणों के हिसाब से चलता है तो कोई कुरान-हदीस में विश्वास कर उसके बताए रास्तों को अपनाता है।

हर धर्म के लोग अपने धर्म में एक अटूट विश्वास और श्रद्धा रखते हैं। सभी धर्मों में अलग-अलग त्यौहार भी होते हैं जो उनके अनुसार मनाए जाते हैं। हिंदुओं में होली–दिवाली नवरत्रि जैसे त्यौहार होते हैं तो वहीं मुसलमानों में मुहर्रम, रमजान, ईद जैसे त्यौहार बड़ी खुशी के साथ मनाए जाते हैं।

फिलहाल आप को बताते हैं मुसलमानों के सबसे पवित्र माह रमजान के बारे मे जिसकी शुरूआत आज से यानी 28 मई से हो गई है। मुसलमानों में इस पूरे महीने को पाक महीने के रुप में मनाया जाता है। जिसमें हर मुसलमान रोजे रखकर खुदा की इबादत करता है। रोजे शुरू होने के साथ ही मस्जिदों में तरावीह शुरू हो जाएंगी। ऐसा माना जाता है कि इस महीने में पुण्य के किए गए कार्यों में 70 गुना सबाव बढ़ जाता है।

कब शुरु होते हैं रमजान

रमजान इस्लामी महीने का नौवां महीना है। इसका नाम भी इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने से बना है। यह महीना इस्लाम के सबसे पाक महीनों में शुमार किया जाता है। रमजान के महीने को और तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से में दस-दस दिन आते हैं। हर दस दिन के हिस्से को अशराश् कहते हैं जिसका मतलब अरबी में 10 है। कुरान के दूसरे पारे के आयत नंबर 183 में रोजा रखना हर मुसलमान के लिए जरूरी बताया गया है।

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रमजान में जकात का महत्व

हर मुसलमान के लिए जकात देना भी इस्लाम में वाजिब (फर्ज) बताया गया है। जकात उस पैसे को कहते हैं जो अपनी कमाई से निकाल कर खुदा की राह में खर्च किया जाए। इस पैसे का इस्तेमाल समाज के गरीब तबके की सेवा के लिए किया जाता है। मान्यता है कि जकात रमजान के महीने में बीच में ही दे देनी चाहिए ताकि इस महिने के बाद आने वाली ईद पर गरीबों तक यह पहुंच सके और वह भी ईद की खुशियों में शरीक हो सकें। रमजान के अगले महिने की पहली तारीख को ईद-उल-फित्र का त्यौहार मनाया जाता है।

तीन हिस्से में पूरा होता है रमजान का महीना

रमजान इस्लामी महीने का नौवां महीना है। इसका नाम भी इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने से बना है। यह महीना इस्लाम के सबसे पाक महीनों में शुमार किया जाता है। रमजान के महीने को और तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर हिस्से में दस-दस दिन आते हैं। हर दस दिन के हिस्से को अशराश् कहते हैं जिसका मतलब अरबी में 10 है। कुरान के दूसरे पारे के आयत नंबर 183 में रोजा रखना हर मुसलमान के लिए जरूरी बताया गया है।

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