यहां शिव से पहले होती है नाग की पूजा, फहराया जाता है तिरंगा

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सावन के पवित्र महीने में भक्त भगवान भोलेनाथ की भक्ति में लीन हैं. झारखंड की राजधानी रांची के केंद्र में रातू रोड इलाके में समुद्र तल से लगभग 2,140 फीट की ऊंचाई और जमीन से लगभग 355 फीट की ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी मंदिर न केवल अपनी शिव भक्ति के लिए बल्कि अपनी देशभक्ति के लिए भी प्रसिद्ध है. रांची का पहाड़ी मंदिर देश का पहला ऐसा मंदिर है, जहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है. यह पहला मंदिर है, जहां धार्मिक ध्वज के साथ-साथ देश का तिरंगा झंडा भी फहराया जाता है.

आदिवासी समाज की मान्यताओं के अनुसार, भगवान भोलेनाथ पर जलाभिषेक करने से पहले वे लोग नाग देवता की पूजा करते हैं, जबकि अन्य श्रद्धालु यहां पहले भगवान भोलेनाथ पर जलाभिषेक करते हैं. इसके बाद नाग देवता के गुफा में प्रवेश कर उनके दर्शन करते हैं. 465 से अधिक सीढ़ियां चढ़कर भक्त बाबा भोलेनाथ के दर्शन के लिए पहाड़ी की चोटी पर पहुंचते हैं. सावन के महीने में यहां न केवल राजधानी रांची बल्कि पूरे झारखंड राज्य के साथ-साथ बिहार, छत्तीसगढ़, बंगाल, ओडिशा से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.

भगवान भोलेनाथ का मंदिर रांची की पहाड़ी पर स्थित है…

शोध के अनुसार, रांची का यह पर्वत हिमालय से भी पुराना है, जहां भगवान भोलेनाथ का मंदिर स्थित है। वैज्ञानिक शोध के दौरान पता चला है कि रांची का यह पर्वत प्रोटेरोज़ोइक काल का है, जिसकी आयु लगभग 4,500 मिलियन वर्ष है. हालाँकि कुछ भूवैज्ञानिकों का मानना है कि इस पर्वत की आयु 980 से 1200 मिलियन वर्ष है. इस पर्वत की चट्टान का भौगोलिक नाम गैनिटिफेरस सिलिमेनाइट है.

पहाड़ी मंदिर के इतिहास की बात करें तो इस मंदिर का इतिहास काफी दिलचस्प है. साल 1842 में ब्रिटिश नागरिक कर्नल ओन्सले ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. देश की आजादी से पहले यह मंदिर अंग्रेजों के अधीन था. अंग्रेज़ इसी स्थान पर स्वतंत्रता सेनानियों को फाँसी देते थे. ब्रिटिश शासन के दौरान, पहाड़ी मंदिर का क्षेत्र “हैंगिंग गैरी” के नाम से जाना जाता था.

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर मंदिर में झंडा फहराया जाता है…

14 अगस्त 1947 की रात जब देश की आजादी की घोषणा हुई तो स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चंद्र दास ने इस मंदिर पर पहली बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया, तब से आज तक यहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस दोनों दिन झंडा फहराया जाता है. दोनों अवसरों पर यहां धार्मिक ध्वज के साथ-साथ भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भी फहराया जाता है.

देवघर में स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध बैद्यनाथ धाम मंदिर की तरह ही सावन के पवित्र महीने में बड़ी संख्या में भक्त कंधे पर कांवर लेकर और नंगे पैर लगभग 30 किलोमीटर की दूरी तय करके जलाभिषेक करने के लिए रांची के पहाड़ी मंदिर में पहुंचते हैं.

सावन में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं…

मान्यताओं के अनुसार, पहाड़ी मंदिर पर स्थित बाबा भोलेनाथ और नाग देवता पर जलाभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. सावन माह के अलावा शिवरात्रि के दौरान यहां लाखों भक्तों की भीड़ जुटती है. सुरक्षा की दृष्टि से श्रद्धालुओं को पहाड़ी की चोटी तक पहुंचने के लिए सीढ़ी का निर्माण कराया गया है. चढ़ाई के कारण श्रद्धालुओं के आराम करने के लिए सीढ़ियों के बीच में बड़ी संख्या में बेंचें लगाई गई हैं.

राजधानी रांची शहर के मध्य में स्थित होने के कारण भक्तों को यहां पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं होती है. बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन की दूरी महज 10 किलोमीटर होने के कारण दूसरे राज्यों से आने वाले श्रद्धालु निजी वाहन, टेंपो या रिक्शा की मदद से यहां आसानी से पहुंच सकते हैं.

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